नैसर्गिक मिलन
धूल- धूसरित सुस्त पड़े पेड़ को जोर- जोर से हिलाती हुई हवा आई. हवा भागी- भागी ये संदेश लेकर आई थी कि उनकी सखी वर्षा रानी बस आने ही वाली है.
अलसाए पेड़ ने अचानक लगे धक्के से चिढ़ते हुए कहा,- "ऐ बावली हवा ! तू अपनी ख़ुशी दबा क्यूँ नहीं पाती. ये संदेश तू हल्की सरसराहट के साथ भी तो दे सकती थी."
हवा ने पेड़ को और जोर का धक्का लगाया और कहा- "सरसराहट के साथ तो प्रियतम के आगमन की सूचना दूँगी. सखी वर्षा का आगमन तो उत्सव है उत्सव.
पेड़ अपने मोटे तने और पतली टहनियों का तारतम्य चंचल बावली हवा के साथ बिठाने की कोशिश कर ही रहा था कि वर्षा रानी आ पहुँची.
अब पेड़ पर दोहरी मार पड़ी. हवा तो पहले से ही पेड़ को जोर- जोर से धक्के लगा रही थी; उसकी सखी वर्षा भी अब पेड़ को भिगोने लगी. हवा का व्यवहार बिलकुल उन निश्छल बच्चो सा था, जो अपनी सखियों/ सखाओं के आगमन पर इतने खुश हो जाते हैं कि काबू में नहीं आते.
वर्षा रानी भी अपना कोष खाली करने के इरादे से आई थी. उसने झमाझम अपने अलसाये दोस्त को भिगो डाला. धूल- धूसरित सुस्त पेड़ अब नहा- धुलाकर और हरा, और जवान, और चुस्त हो उठा.
हवा भी भींग गई. भींगी हुई हवा की खुशबू भी बदल गई. वर्षा रानी की मादक बूँदो ने चंचला- अबोध- बालिका सी हवा को अचानक युवती बना डाला. अब वो शायद शर्माने लगी, और शांत हो गई.
पेड़ अब हौले से मुस्काया और युवती हवा को गले लगा लिया. अब दोनों ने एक- दूसरे को साध लिया. वर्षा रानी भी अब धीमे- धीमे से बरसने लगी. हवा मंद गति से बहने लगी और पेड़ मंद गति से डोलने लगा.
यह उनके मिलन की सरसराहट थी.
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