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Thursday, October 26, 2023


एक प्रेमकथा 



सुबह-सुबह सूरज उससे मिलने आया. वो आलस की बाँहों में सो रही थी. सूरज ने बुरा नहीं माना. उसको पता है अक्टूबर में भले ही वो आलस को गले लगाए, दिसंबर- जनवरी में सूरज से मिलने को बेताब वो भागी- भागी छत पर जरूर आएगी, प्रतीक्षा करेगी; गोल- गोल घूम- घूमकर सूरज की किरणों से लिपटने की कोशिश करेगी. अपने प्रारब्ध पर सूरज को यकीन है. सूरज निश्चिन्त है उसके जीवन में अपने स्थान को लेकर. अतः उसके आलस की बाँहों में सोते रहने का उसने बिलकुल बुरा नहीं माना. सुबह- सुबह भागा- भागा आया तो था उससे  मिलने, पर वो  नहीं मिल पाई तो नाराज नहीं हुआ. चुपचाप उसके पीले दुपट्टे की स्वर्णिम आभा को और बढ़ा गया. पास लटकते बाकी दुपट्टों  की चमक भी बढ़ा गया. 

सूरज एक अनोखा प्रेमी है. वो insecure बिलकुल नहीं है. अपने प्रारब्ध से उसको शिकायत बिलकुल नहीं है. उसको पता है उसकी प्रेमिका सिर्फ दिसंबर- जनवरी में उसको गले लगाती है. फ़रवरी बीतते- बीतते प्रेमभरे दिन भी बीतने लगते हैं. अधिक- से- अधिक होली के त्योहार वाले दिन रंगो से सरोबार प्रेमिका उसको गले लगाती है और फिर कई महीनों की जुदाई शुरू हो जाती है. एक संयमित प्रेमी है सूरज. प्रेमिका से मिलने की बेताबी में अपनी तपिश कभी नहीं खोता. जगत के प्रति अपने कर्तव्य को कभी नहीं भूलता. सूरज को पता है उसकी दिनचर्या पर ब्रह्मांड की दिनचर्या निर्भर है. अगर प्रेमिका से मिलने की चाह में उसने सालोभर अपनी तपिश दिसंबर- जनवरी जितनी कम रखी तो क्या परिणाम हो सकते हैं. विश्व की आबादी जिस प्रकृति की आदि है, प्रतिकूल वातावरण मिलने पर नष्ट हो सकती है. ध्रुवों पर दिखनेवाले जिन northern lights की दुनिया दीवानी है, अगर वो सालोंभर दिखने लगा तो महत्ता कम हो जाएगी. प्रेम भी तो ऐसा ही है. निरंतर प्रेम से ऊब हो सकती है. सूरज को ये सब पता है, अतः वह संयमित है. एक दबी हुई चाह ये भी है कि तपिश बढ़ाने पर ही तो उसकी प्रेमिका को प्रिय तरबूज और आम जैसे फल मिलेंगे. अतएव ये सबके हित में है कि ये प्रेम- कहानी अक्टूबर में रंगबिरंगे दुप्पटों की निखार बढ़ाने से शुरू हो और होली के रंगो से सरोबार होकर कुछ महीनों के विश्राम पर चला जाए. 

आज वो सुबह- सुबह ये बताने भी आया है कि तुम्हे प्रिय चीजें जैसे आंवला, सनई, गाजर, मटर और गन्ने अब मिलने लगे हैं, तुम इनका सेवन करके मुस्कुराओगी और तुम्हे देखकर मैं मुस्कुराऊंगा. पर, जब वो उससे मिल नहीं पाया क्यूँकि वो आलस की बाँहों में सो रही थी, तो वो बस उसके रंग- बिरंगे दुपट्टों की चमक और बढ़ा गया. सूरज को विश्वास है कि दुपट्टों के निखार से प्रेमिका को संदेश मिल जाएगा. आखिर सूरज प्रेम में विश्वास जो करता है.  

 

Saturday, October 14, 2023

मैडम आपका तख्त आ गया

"मैडम आपका तख्त आ गया"- दिनभर में इतनी ज्यादा बार ये वाक्य सुना कि मुझे महसूस होने लगा मानो मेरे लिए 'तख्त- ए- ताऊस' आया हो. 

तो हुआ यूँ कि कार्यस्थल पर कुछ तख्तों की आवश्यकता थी. उस कार्य की प्रभारी मैं थी. इसी वजह से कॉन्ट्रैक्टर से बात करना और उस से भी पहले मैनेजमेंट के अधिकारियों और प्रिंसिपल मैडम से बात कर के इस कार्य को गति प्रदान करना मेरा काम था. इसी क्रम में इतनी ज्यादा बार ऑफिस में तख्त के बारे में बात हुई थी कि सबको ये बात याद हो गई थी. 

अब जब सुबह सुबह कार्यस्थल पहुँची तो देखा कि जिन तख्तों की आवश्यकता थी उनकी डेलिवरी कॉन्ट्रैक्टर ने कर दिया था और वो नीचे गलियारे में रखी थी. तख्त सुई जैसी चीज तो है नहीं जो दिखाई ना दे, लेकिन तबतक ऑफिस में जितने लोग पहुंचे थे, सबने मुझे बताया कि मेरा तख्त आ गया. 

उसके बाद मैं ऊपर चली गई और दो घंटे अपने कामों में व्यस्त रही. इस बीच सहकर्मिओ से मेरे तख्त और इसकी सही समय पर डेलिवरी के बारे में बात हुई. मुझे ये बताया गया कि मेरे तख्त पर और लोग बैठे हैं और ये भी कि मेरे नए तख्त पर हुए पेंट की खुशबू दूर- दूर तक फैली हुई है. इन बातों पर चर्चा करने में मजा तो मुझे भी आ ही रहा था. छात्राओं ने भी बताया कि नया तख़्त आ गया. 

फिर और कामों से मैं नीचे वाले ऑफिस में पहुंची. तबतक और लोग भी आ चुके थे. एक स्टाफ मुझे देखते ही बोल पड़े, "और मैडम, आपका तो चौकी- वौकी आ गया". मैं मुस्कराई. इस से पहले मैं कुछ कहती पास खड़े एक और सज्जन बोल पड़े, "ये ना कहिए मैडम कि टाइमली डेलिवरी हो गया आपके तख्त का, नहीं तो बहुत दिक्कत होता". मैंने कहा, "जी ये बात तो  है". 

(शाम को फ़ोन पर जब  मैंने दीदी को "और मैडम, आपका तो चौकी- वौकी आ गया" वाली बात बताई तो दीदी का  रिमार्क आया, "तुम्हारी चौकी- वौकी आ गई, नवरात्रि आ ही रही है; चौकी पर विराजमान हो जाओ".) 

अबतक ये तख्त नीचे ही था. मैं प्रिंसिपल मैडम के पास गई. उनके बोलने से पहले मैंने ही बता दिया कि मेरा तख्त आ गया. मैंने मैडम से ये भी विनती की कि मेरे तख्त को ऊपरी मंज़िल तक पहुँचवा दिया जाए.

उसके बाद मैंने कॉन्ट्रैक्टर को फ़ोन किया. वो छूटते ही बोल पड़े, "मैडम, आपका तख्त हम पहुँचवा दिए है". मुझे हँसी आ गई. मैंने कहा, "हाँजी हाँजी, बस उसी लिए कॉल किया था कि मेरा तख्त मिल गया है, लेकिन इसके साथ कुछ और ऑर्डर किया था वो नहीं मिला है". दरअसल बड़े तख्त के साथ कुछ छोटे तख्तों की भी आवश्यकता थी, जो अभी भी नहीं आया था. कॉन्ट्रैक्टर साहब मानों नींद से जागे. कहने लगे, "अच्छा वो$$$, वो तो अभी नहीं बना है". मैंने उनको निर्देश देकर फ़ोन रख दिया. 

इसके बाद मेरी ड्यूटी परीक्षा- वीक्षक के तौर पर थी, यानी दोपहर ढेड़ बजे से शाम पाँच बजे तक मैं इधर- उधर नहीं जा सकती थी. इसी बीच तख्त को ऊपरी मंजिल पर पहुँचाया जाने लगा. मैंने पहले ही काफी लोगों को बता रखा था कि तख्त कहाँ रखा जाना है, बावजूद इसके एक सहकर्मी ने कहा, "मैडम, आपका तख्त ऊपर रखा जा रहा है, आप चेक कर लीजिये सही जगह पर रखा या नहीं." मेरे ये कहने पर कि अभी फिलहाल मैं कहीं नहीं जा सकती, उन्होंने जोर देकर कहा कि मैडम परीक्षा के बाद जरूर ऊपर जाकर अपना तख़्त देख लीजिए. 

परीक्षा समाप्त होने के बाद कंट्रोलर रूम में एक स्टाफ ने फिर से बताया, "मैडम, आपका तख्त वहाँ रख दिए हैं जहाँ आपने बताया था". अब परीक्षा- नियंत्रक ने चुटकी ली, "मैडम का तख्त मैडम के घर पर न पहुँचाना चाहिए था, इधर- उधर कहाँ रख दिए"

तो ये थी मेरी 'तख़्त- ए- ताऊस' की दास्तां, जो अब मेरे सपने में भी आने लगा है. 

अगर आपको ये जानने में रूचि है कि तख़्त का कार्यस्थल पर क्या काम तो इस फोटो में उत्तर छुपा है. 


भोजपुरी संस्कृति और गारी  YouTube पर TVF का एक नया शो आया है, "VERY पारिवारिक".  इस शो का गाना "तनी सून ल समधी साले तब जइहा त...