आधुनिक भारतीय हिन्दू विवाह संस्कार एवं इसकी जटिलता (भाग- 1) में जो भूमिका बांधी जा चुकी है, उसके आगे चर्चा शुरू कर रही हूँ.
हमलोग पहले ही इस बात पर चर्चा कर चुके हैं कि विवाह सर्वाधिक जटिल एवं ताम- झाम वाला संस्कार है और इसके कई चरण होते है. मोटे तौर पर वे चरण हैं-
- सुयोग्य वर- वधू की तलाश
- छेंका, रोक्का अथवा अंगूठी पहनाने की रस्म
- शुभ तिलकोत्सव
- शुभ- विवाह
- वर- वधू स्वागत समारोह
- हनीमून
2. छेंका, रोक्का अथवा अंगूठी पहनाने की रस्म
फिल्मों और टेलीविज़न धारावाहिकों के अलावा आम जीवन में भी बहुतायत में प्रयुक्त एक संवाद (डायलॉग) है- "चलें, मुँह मीठा करे. अब रिश्ता पक्का." तो यह जो प्रक्रिया है, वो मुँह मीठा करके रिश्ता पक्का करने वाला चरण है.
कई बार मुँह मीठा करके भी शुरू किया गया रिश्ता कड़वाहट से बच नहीं पाता. जरा विचार करें उसके पीछे कारण क्या होता है.
क्या बासी मिठाई इसका कारण होती है ?
अथवा,
लोगों के बासी से भी ज्यादा बासी विचार ?
मेरे ख्याल से अनगिनत अपेक्षाओं का बोझ सामने वाले पर डालते रहने वाले लोग ही बोते है कड़वाहट का बीज. ऐसी अपेक्षाओं का कोई ओर- छोर नहीं होता.
हमारे यहाँ सामान्य तौर पर स्वजातीय विवाह की परंपरा है. अंतरजातीय विवाह भी प्रचलन में आ रहे हैं, पर मेट्रो शहरों की बात छोड़ दें तो ऐसे विवाहों की संख्या आज भी नगण्य है. स्वजातीय विवाह हों अथवा अंतरजातीय विवाह; मन का जुड़ाव एवं सम्मान की भावना अति- आवश्यक है.
मैंने स्वजातीय विवाह परंपरा की बात इसलिए की, क्योंकि मुझे इसके पीछे के तार्किक आधार की चर्चा करनी थी. मेरे अवलोकन के अनुसार स्वजातीय विवाह परंपरा के पीछे का तर्क ये रहा होगा की एक ही तरह के परिवेश में रहे लोगों को एक- दूसरे के साथ सामंजस्य बैठाने में आसानी होगी. जैसा कि हम जानते हैं, हमारे यहाँ वैदिक काल से ही प्रत्येक जाति की कुछ विशेषताएँ तय की गई हैं एवं उनके कार्य भी निर्धारित हैं. विवाह आज भी मुख्यतः वैदिक रीति- रिवाजों से ही संपन्न होता है. अब इन दोनों तर्कों को एक साथ जोड़े तो स्वजातीय विवाह पर जोर देने का कारण यह होना चाहिए कि आपसी सामंजस्य से रिश्ता शोभित हो. परन्तु ऐसे विवाहों में भी कड़वाहट घोलने का काम अनगिनत अपेक्षाओं का बोझ सामने वाले पर लादने वाले लोग कर हीं डालते हैं, जिनकी चर्चा मैंने शुरू में की.
यदि हम एक- दूसरे के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को बिना बदलाव किये स्वीकार करना सीख लें तो स्वजातीय विवाह हों अथवा अंतरजातीय विवाह; दोनों सफल रहेंगे. परन्तु दखलअंदाजी तो हमारी विशेषता है. जबतक हम एक- दूसरे के उठने- बैठने, खाने- पीने, बोलने- चालने, कपड़े- लत्ते इत्यादि असंख्य चीजों पर टिप्पणी अथवा छींटाकशी ना कर लें, हमें चैन कहाँ मिलता है. अब इतने शब्द बाणों से बेधे गए रिश्ते कड़वे तो होंगे हीं, बेचारी मिठाई ताजा रहकर क्या कर लेगी.
हाँ तो विवाह संस्कार के इस दूसरे चरण यानी छेंका, रोक्का अथवा अंगूठी पहनाने की रस्म के दौरान ही दोनों खानदानों के काफी लोगों का मिलन हो जाता है, छींटाकशी की शुरुआत हो जाती है और मिठाई खा कर शुरू किये गए रिश्ते में नमक डलना भी चालू हो जाता है.
'छेंका' नाम पर हीं हंसी आती है. इस रस्म में फल, मिठाई, कुछ आभूषण, कपड़े- लत्ते, रुपये- पैसे इत्यादि सांसारिक वस्तुओं को उपहारस्वरूप देकर अपना कब्ज़ा सिद्ध किया जाता है. 😁
'रोक्का' भी ऐसे ही मिलते- जुलते रस्म का नाम है, जिसमे फल, मिठाई, कुछ आभूषण, कपड़े- लत्ते, रुपये- पैसे इत्यादि सांसारिक वस्तुओं को उपहारस्वरूप देकर विवाह योग्य पक्ष को किसी और का होने से रोक लिया जाता है. 😄
'अंगूठी पहनाने की रस्म' या 'ENGAGEMENT' की रस्म मुख्यतः संचार- क्रांति की देन है. एक दशक पीछे जाएं तो यह रस्म नगण्य थी. आम आदमी के जीवन में इस रस्म का आगमन कराने में टेलीविज़न धारावाहिकों का प्रमुख योगदान है.
मुझे यह रस्म बड़ी मनोरंजक लगती है. दोनों खानदानों के चुनिंदा सम्बन्धियों का मिलन तो हो ही जाता है इस रस्म के दौरान, और बड़े बजट की शादियों में तो पूरे कुटुंब का मिलन अभी हीं हो जाता है. रिश्तेदारों को वर- वधू के प्रथम दर्शन हो जाते है. सजने- सँवरने का शौक रखने वालों को फैशन- परेड का एक और अवसर मिल जाता है, और मेरे जैसे तथाकथित ख़राब 'ड्रेसिंग- सेंस' वाले व्यक्ति की सांसत हो जाती है. 😅
ये सजने- सँवरने का बाजार पहले सिर्फ लड़कियों एवं महिलाओं तक सीमित हुआ करता था, अब लड़के इसमे मात देते नज़र आ रहे हैं. मेरे भाइयों के 'हेयर- जेल' से सँवारे गए बालों की वजह से और ज्यादा नुमायां होते मेरे 'झाड़- झंखाड़ बालों' को देखकर मुझे इस बात का शिद्दत से एहसास हुआ. 😂
'अंगूठी पहनाने की रस्म' का एक और परिणाम ये होता है कि रिश्तेदारों के नीरस जीवन में थोड़ा रस आ जाता है. भले ही आँखों पर मोटा चश्मा लगा हो, दृष्टि बाज की हो जाती है. वर- वधू के समस्त गुणों- अवगुणों को वो लोग चश्में के पीछे से तोल लेते है. मसलन-
अब कोई उनसे पूछे कि गाउन पहनकर सर पर पल्लू कैसे रखा जाता है. इस बात को भविष्य में सास- ससुर की इज्जत से जोड़ने का क्या तुक है. आखिर वो कन्या अभी 'मिस' ही है, 'मिसेस' नहीं बनीं. शादी के बाद ऐसे टोकने का कुछ औचित्य भी है, पर पहले ही क्यों?
वैसे तो किसी भी समय यह व्यक्तिगत चुनाव का मामला होना चाहिए, ना कि थोपे गए तथाकथित आदर्श का. इस मुद्दे पर हर कोई व्यक्तिगत विचार रखने को स्वतंत्र है.
ऐसी बेतुकी टिप्पणियों से वर का सामना भी होता है. उसके सर पर थोड़े से भी कम बाल देखकर कुछ रिश्तेदार मुँह बिचकाते नज़र आते हैं; भले ही उनका खुद का दामाद पूरी तरह से 'उजड़ा चमन' क्यों न हो, बर्ताव ऐसे करेंगे जैसे वो 'केश- किंग' का 'ब्रांड- एम्बेसडर' हो. 😹
कुछ रिश्तेदारों को ये जानने में दिलचस्पी होती है कि नौकरी सरकारी है या प्राइवेट. कुछ को खानदानी संपत्ति की जानकारी चाहिए होती है, तो कुछ को खानदानी इतिहास- भूगोल की.
ऐसे ही अनगिनत सवालों- जवाबों एवं फोटोग्राफर द्वारा सुझाए गए अजीबोगरीब पोज़ करने के असफल प्रयास के बीच कुछ खट्टी- कुछ मीठी यह रस्म संपन्न होती है.
नोट- मैंने कहा था न मुख्य संस्कार यानि विवाह तक पहुंचने की प्रक्रिया काफी लंबी, नाज़ुक एवं उलझाऊ होती है. मैंने अपने विचार साझा किए हैं. यदि किसी की भावना आहत हुई हो तो अग्रिम रूप से ही क्षमाप्रार्थी हूँ.
विवाह संस्कार के अगले चरणों की चर्चा अगले रविवार के पोस्ट में की जाएगी. आधुनिक भारतीय हिन्दू विवाह संस्कार एवं इसकी जटिलता (भाग- 1) पढ़ने के लिए यहाँ click करें. उस आलेख को आपका प्यार देने के लिए धन्यवाद.
इस पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया का नीचे कॉमेंट सेक्शन में इन्तजार रहेगा. कॉमेंट करने के लिए email- id की जरुरत होती है, जो सार्वजनिक नहीं की जाएगी.
पोस्ट पसंद आ रहा हो तो इसे शेयर अवश्य करें एवं ब्लॉग को सब्सक्राइब करें.
🖊 प्राची कुमारी
DISCLAIMER:- Click here to know Copyright- Policies.
हाँ तो विवाह संस्कार के इस दूसरे चरण यानी छेंका, रोक्का अथवा अंगूठी पहनाने की रस्म के दौरान ही दोनों खानदानों के काफी लोगों का मिलन हो जाता है, छींटाकशी की शुरुआत हो जाती है और मिठाई खा कर शुरू किये गए रिश्ते में नमक डलना भी चालू हो जाता है.
'छेंका' नाम पर हीं हंसी आती है. इस रस्म में फल, मिठाई, कुछ आभूषण, कपड़े- लत्ते, रुपये- पैसे इत्यादि सांसारिक वस्तुओं को उपहारस्वरूप देकर अपना कब्ज़ा सिद्ध किया जाता है. 😁
'रोक्का' भी ऐसे ही मिलते- जुलते रस्म का नाम है, जिसमे फल, मिठाई, कुछ आभूषण, कपड़े- लत्ते, रुपये- पैसे इत्यादि सांसारिक वस्तुओं को उपहारस्वरूप देकर विवाह योग्य पक्ष को किसी और का होने से रोक लिया जाता है. 😄
'अंगूठी पहनाने की रस्म' या 'ENGAGEMENT' की रस्म मुख्यतः संचार- क्रांति की देन है. एक दशक पीछे जाएं तो यह रस्म नगण्य थी. आम आदमी के जीवन में इस रस्म का आगमन कराने में टेलीविज़न धारावाहिकों का प्रमुख योगदान है.
मुझे यह रस्म बड़ी मनोरंजक लगती है. दोनों खानदानों के चुनिंदा सम्बन्धियों का मिलन तो हो ही जाता है इस रस्म के दौरान, और बड़े बजट की शादियों में तो पूरे कुटुंब का मिलन अभी हीं हो जाता है. रिश्तेदारों को वर- वधू के प्रथम दर्शन हो जाते है. सजने- सँवरने का शौक रखने वालों को फैशन- परेड का एक और अवसर मिल जाता है, और मेरे जैसे तथाकथित ख़राब 'ड्रेसिंग- सेंस' वाले व्यक्ति की सांसत हो जाती है. 😅
ये सजने- सँवरने का बाजार पहले सिर्फ लड़कियों एवं महिलाओं तक सीमित हुआ करता था, अब लड़के इसमे मात देते नज़र आ रहे हैं. मेरे भाइयों के 'हेयर- जेल' से सँवारे गए बालों की वजह से और ज्यादा नुमायां होते मेरे 'झाड़- झंखाड़ बालों' को देखकर मुझे इस बात का शिद्दत से एहसास हुआ. 😂
'अंगूठी पहनाने की रस्म' का एक और परिणाम ये होता है कि रिश्तेदारों के नीरस जीवन में थोड़ा रस आ जाता है. भले ही आँखों पर मोटा चश्मा लगा हो, दृष्टि बाज की हो जाती है. वर- वधू के समस्त गुणों- अवगुणों को वो लोग चश्में के पीछे से तोल लेते है. मसलन-
"लड़की के माथे पर आँचल नहीं है, पता नहीं सास- ससुर की इज्जत करेगी भी या नहीं."
वैसे तो किसी भी समय यह व्यक्तिगत चुनाव का मामला होना चाहिए, ना कि थोपे गए तथाकथित आदर्श का. इस मुद्दे पर हर कोई व्यक्तिगत विचार रखने को स्वतंत्र है.
ऐसी बेतुकी टिप्पणियों से वर का सामना भी होता है. उसके सर पर थोड़े से भी कम बाल देखकर कुछ रिश्तेदार मुँह बिचकाते नज़र आते हैं; भले ही उनका खुद का दामाद पूरी तरह से 'उजड़ा चमन' क्यों न हो, बर्ताव ऐसे करेंगे जैसे वो 'केश- किंग' का 'ब्रांड- एम्बेसडर' हो. 😹
कुछ रिश्तेदारों को ये जानने में दिलचस्पी होती है कि नौकरी सरकारी है या प्राइवेट. कुछ को खानदानी संपत्ति की जानकारी चाहिए होती है, तो कुछ को खानदानी इतिहास- भूगोल की.
ऐसे ही अनगिनत सवालों- जवाबों एवं फोटोग्राफर द्वारा सुझाए गए अजीबोगरीब पोज़ करने के असफल प्रयास के बीच कुछ खट्टी- कुछ मीठी यह रस्म संपन्न होती है.
नोट- मैंने कहा था न मुख्य संस्कार यानि विवाह तक पहुंचने की प्रक्रिया काफी लंबी, नाज़ुक एवं उलझाऊ होती है. मैंने अपने विचार साझा किए हैं. यदि किसी की भावना आहत हुई हो तो अग्रिम रूप से ही क्षमाप्रार्थी हूँ.
विवाह संस्कार के अगले चरणों की चर्चा अगले रविवार के पोस्ट में की जाएगी. आधुनिक भारतीय हिन्दू विवाह संस्कार एवं इसकी जटिलता (भाग- 1) पढ़ने के लिए यहाँ click करें. उस आलेख को आपका प्यार देने के लिए धन्यवाद.
इस पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया का नीचे कॉमेंट सेक्शन में इन्तजार रहेगा. कॉमेंट करने के लिए email- id की जरुरत होती है, जो सार्वजनिक नहीं की जाएगी.
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🖊 प्राची कुमारी
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बासी मिठाई भी एक कारण हो सकती है, अब किसी को मिल गयी हो बासी मिठाई और उसका मूड खराब हुआ हो तो उसी दिन वो प्रतिज्ञा करता होगा कि अब भर जिंदगी इस मिठाई के बदले तुम्हारा हिसाब लेगें मूड खराब कर के 🤣 आख़िरकार मिठाई महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteसलाह यह है कि मिठाई के बदले चॉकलेट दिया जाये तो उसके ख़राब होने की संभावना नगण्य हो जाती है। 😉
एक बार की बासी मिठाई के बदले ज़िन्दगी भर हिसाब लेना कहाँ का न्याय है भाई 😑 वैसे दीदी कह रही कि चॉकलेट भी पिघल सकती है तब क्या होगा 😅
DeleteBilkul shi kaha vivah me mann ka jurao Or samman ki bhawna ati Aawasyak h... Or muh bichkana, karwaht gholna kuchh chuninda rishtedaron ka adhikaar hota h Or es se shadi me mahaul v to bnta h😂😂
ReplyDeleteअब बताओ भला, माहौल बनाने के लिए मूड ख़राब करें 😏
Deleteवाकई मन का जुड़ाव एवं सम्मान का होना ज्यादा जरुरी है। बाकी जो छींटाकशी करने वाले ये वही चार लोग होते हैं जिनका जिक्र हर नसीहत में माता-पिता द्वारा किया जाता है। और मिठाई के संबन्ध में शुक्ला जी के सुझाव विचारणीय है।😉
ReplyDeleteHmmmmmm, "मन का जुड़ाव एवं सम्मान का होना ज्यादा जरुरी है" समझ रहे हैं हम 😎
Deleteमन का जुड़ाव एवं सम्मान की भावना अति- आवश्यक है.
ReplyDelete♥️👍
मेरे जैसे तथाकथित ख़राब 'ड्रेसिंग- सेंस' वाले व्यक्ति की सांसत हो जाती है. 😅
💅👠👛💄🛍️🙆💆
अब कोई उनसे पूछे कि गाउन पहनकर सर पर पल्लू कैसे रखा जाता है.
👰🤓