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Tuesday, May 11, 2021

भगवान जी फोटो खींच रहे हैं

 

रविवार की सुबह  ब्रह्म बेला में ईश्वर की नेमतें बरसी. बारिश की बूंदों के साथ तेज हवाएं भी चली. इस प्राकृतिक कूलर की ठंडक का वाकई कोई जोड़ नहीं है. ऐसे दिव्य वातावरण में मेरा घर के बारजे पर खड़े होकर प्रकृति के चमत्कार को निहारना लाज़िमी ही था. बिजली गुल थी तो चारों तरफ की कृत्रिम लाइटे भी ऑफ थीं. मुझे ऐसे दृश्य सदैव से बड़े लुभावने लगते हैं. बीच- बीच में बिजली चमक रही थी और मानों एक अलग ही एंगल (कोण) से आसपास के वातावरण को दिखा रही थी. सचमुच उतने ऊँचे उठकर नीचे देखना मनुष्यों के बस की बात कहाँ... यह तो ईश्वर ही कर सकते हैं. 

मुझे बरबस ही बचपन की याद आ गई. अब शहर के बिना खिड़की वाले कमरे में रहते हुए जब कभी भी एक टुकड़ा प्रकृति के दर्शन होते हैं, मुझे अपना गांव और गांव में गुजरा बचपन याद आ जाता है. खेत, नहर, पोखर, पगडंडी, बिना बिजली चांदनी  प्रकाश में घर की छत से उनको निहारना और कभी- कभी बिजली चमकने पर दिव्य दृश्यों का आनंद... 😊

बचपन में मेरी अंतरंगता भईया (पीयूष गिरि) के साथ ज्यादा थी. उस समय दीदी (पल्लवी गिरि) हमें मुँह नहीं लगाती थीं. 😑 पूरे खानदान में हमारी पीढ़ी की सबसे प्रथम व्यक्ति होने के कारण दीदी को प्रथम नागरिक से प्रोटोकॉल मिले हुए थे, बल्कि यूँ कहें कि ये प्रोटोकॉल्स दीदी ने खुद ओढ़े हुए थे. 😂😜

वजह चाहे जो भी हो, दीदी हम छोटे भाई- बहनों के साथ खेलने की बजाय एक पीढ़ी ऊपर के लोगों के साथ बैठकर तथाकथित बौद्धिक चर्चाएँ किया करती थीं, क्योंकि वे बड़ीईईई थीं. 💪😆 यह डायलॉग आज भी तक़रीबन रोज ही सुनने को मिल जाता है. 

दीदी- "हम बड़ेएएए हैं."

           हीहीही 

खैर, अब दीदी बहुत अंतरंगता से रहती हैं और हमारे साथ भी लम्बी चर्चाएं कर लेती हैं. अब ये चर्चाएं बौद्धिकता के किस स्तर को छू पाती हैं, यह तय करना दीदी का काम है, क्योंकि वे बड़ीईईई हैं. 😜

हाँ, तो बचपन में भईया मेरे अभिन्न मित्र थे. अभी भी हैं, पर तब वो इकलौते मित्र थे. मेरे अंतर्मुखी स्वभाव के कारण बचपन में मेरे ज्यादा मित्र न थे. कहने को थे भी, तो ऐसे बिल्कुल न थे, जिनसे 'मन की बात' की जा सके. 'मन की बात' सिर्फ भईया से कर पाती थी मैं. भईया मुझे कहानियाँ पढ़कर भी सुनाते थे, और फिर दिनभर हमलोग चीकू खरगोश और मीकू चूहे के डायलॉग दुहराते थे. 😊 दीदी अकेले पढ़ती थीं कहानियाँ और सुनाने को कहने पर बोलती थीं,- "भागो, अपनेआप पढ़ लो". 😭

बचपन में जब ऐसे बिजली चमकती थी तो उसके तुरंत बाद भईया मुझे बताते थे कि भगवान जी फोटो खींच रहे हैं. नब्बे के दशक में जन्मे बच्चों के लिए फोटो खींचना प्रतिदिन की घटना नहीं होती थी, बल्कि हमें गाहे- बगाहे तैयार होकर स्टूडियो जाकर सावधान मुद्रा में खड़े होकर फोटो खिचाने का अभ्यास था. 

#wokeuplikethis या  #partyhorahihai से हमारा दूर- दूर तक परिचय नहीं था. इसलिए किसी भी हालत में जब भगवान जी बिना 'READY' बोले हमारी फोटो खींच लेते थे तो हम डर कर भागते थे. वो आतंकित करने वाला डर नहीं होता था, बल्कि उलझन वाला डर होता था कि पता नहीं भगवान जी हमारी फोटो का करते क्या होंगे. 

हमारे पास तब सोशल मीडिया पर फोटो अपलोड करने का कोई ज्ञान नहीं था. फोटो का बस इतना मतलब पता था कि या तो फ्रेम करा के दीवार पर सजा लो या फिर एलबम में लगा के रखो और घर आए मेहमान को जबरदस्ती दिखाओ. 😝 शायद भगवान जी का सोशल मीडिया अकाउंट होता होगा तब, और फोटोग्राफी उनका पैशन. 😶 ये तो मेरा आज का अनुमान है. बचपन में ऐसा कोई अनुमान न लग पाता था. 

उन दिनों भईया का हाथ पकड़ कर भागते हुए मैं यही सवाल पूछा करती थी कि भगवान जी हमारी फोटो का क्या करेंगे, तो भईया बड़ी मासूमियत से कह देते थे,- "पता नहीं, अब ये तो भगवान जी ही जानें". 

एक तो ये बड़े भाई- बहन पता नहीं क्यों ऐसे होते हैं. कहीं से एक जानकारी इकठ्ठा कर लाएँगे और 'क्या, क्यों' इत्यादि प्रश्नों का उत्तर नहीं देंगे. 😠 भईया को जरूर ये बात दीदी ने बताई होगी. 

तो दीदी- भईया, आज तुमलोग इस सवाल का जवाब दे ही दो कि अज्ञात सूत्रों से ज्ञात अधूरा ज्ञान क्यों प्रवाहित करते थे. वरना हम रोज- रोज एक पोस्ट लिखकर एक- एक सूचना का वर्णन माँगेंगे, जो बचपन से अबतक तुमलोग हमको देते आए हो. मसलन 

  1. नाना- नानी के घर के सामने वाले पेड़ पर चुड़ैल रहती है और जो बच्चा तकिया लगाकर सोता है उसको उठा ले जाती है. (वैसे, इस बात की शुरुआत छोटे मामाजी ने की थी और बेबी दीदी, बिट्टू दीदी, चुन्नू भईया, नीसू भईया, सोनी दीदी, सुधांशू भईया और तुम दोनों ने हाँ में हाँ मिलाया था. बल्कि बाद में और बढ़ा- चढ़ा कर बताया था. आपलोग अपने बाहुबल से वैसे ही तकिया ले लेते हमसे, अफवाह फैलाने की क्या जरुरत थी. अफवाह फैलाना कानूनन जुर्म है.) 😡
  2. स्कूल के बरामदे में जो खंबे लगे हुए हैं, उनके अंदर राजा ने लोगों को चुनवा रखा है, और वो लोग भूत और चुड़ैल बनकर घूमते हैं, और जो बच्चा अपने लंचबॉक्स का पूरा खाना नहीं खाता,उसको उठा ले जाते हैं. 😡
  3. मसान (श्मशान घाट) के पास से होकर जो पगडंडी जाती है, उधर से जाओगी तो भूत तुम्हारे पीछे घर तक आ जाएगा और रात में तुम्हे उठा ले जाएगा. 😡
  4. बहुत दूर एक जगह है, जहाँ बहुत बड़े- बड़े राक्षस रहते हैं, कभी आएँगे तो तुम्हे उठा ले जाएँगे. 😡

एक तो हर कहानी में ये भूत- प्रेत- चुड़ैल- राक्षस हमको काहे उठा ले जाते थे. आपलोगों के पास ऐसा कौन सा खजाना था, जिसको फिरौती के रूप में लेने के लिए ये लोग हमको उठा ले जाते थे. 😠 अब तो लग रहा है जरूर आपलोग ही किसी खोह- कंदरा- गुफा से उनकी कोई चीज उठा लाए होंगे, और बाद में खौफ से ऐसी कहानियाँ दिमाग में आती थीं.

वैसे मुझे याद है, इनमे से ज्यादा अफवाहें दीदी लाती थीं, और भईया हाँ में हाँ मिलाते थे. स्कूल के बारे में तो ऐसी- ऐसी खौफनाक बातें बताई थी इनलोगो ने कि शुरुआत में मैं रोज रोते- रोते ही स्कूल जाती थी. वो तो बाद में अपने अनुभव से समझ आया कि स्कूल अच्छी जगह है तो रोना बंद हुआ. 

भईया के अलावा बाकी लोग जब ऐसी बातें बता रहे होते थे तो मेरी डरी हुई शकल देखकर उन्हें शायद आनंद आता था, पर भईया को शायद दया आ जाती थी, इसीलिए वो मेरी पीठ थपथपा कर कह देते थे,- "अरे, कुछ नहीं होता". 

उन भयानक सूचनाओं के बाद ये आश्वासन ऐसे ही काम करता था, जैसे covid 19 के मरीज को ऑक्सीजन सिलिंडर करता होगा. 

THANK YOU भईया, उस आश्वासनके लिए, और उसके बाद जीवन के हर मोड़ पर ऐसे आश्वासन देने के लिए. 

THANK YOU दीदी, मेरे बचपन को इतना खौफनाक और उसकी यादों को इतना चटपटा बनाने के लिए.

THANK YOU प्रकृति माता, ब्रह्म बेला की बारिश के लिए, जिसने धुंधली पड़ी यादों को धो- पोछकर ताजा कर दिया; और बिजली चमकाने के लिए, जिनके प्रकाश में मुझे मेरे बचपन के अनुत्तरित प्रश्न दिख गए, जिनका उत्तर अब मैं दीदी- भईया से पूछ- पूछकर उनका सर खाऊँगी और अबतक हुई नाइंसाफियों का बदला लूंगी. 😈

वैसे बचपन का कौन कहे, दीदी अभी भी यदा- कदा ऐसी सूचनाएं प्रवाहित करती रहती हैं; भईया अभी भी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोल उठते हैं,- "हाँ बाबू". कारण पूछने पर दीदी कहती हैं,- "तुम ढ़क्कन हो" और भईया फिर बोल उठते हैं,- "हाँ बाबू". 😖

कोई इन बड़े भाई- बहनों की शिकायत फोटो खींचने वाले भगवान जी से लगाओ. 🙏

10 comments:

  1. Wah beta.Esi ko kahte hai ulta chor kotwal ko daante. Waise khud k es tarikhi statement ke baare me kya khyal hai,"Main Paida hi Samjhdaar Hui Thi".

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    1. Iss muhaware ka yaha kya auchitya banta hai, koi samjhae 🤔 waise, aapse vyakhya apekshit hai

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  2. बचपन की यादों को बहुत ही अच्छे शब्दों में पिरोई हो👌😊
    वैसे ये सारे भूत प्रेत तुमको ही उठा कर ले जाने के लिए थे क्या.. भैया दीदी को नहीं ले जा सकते थे क्या 😜😜😂😂😂

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  3. ऐ दोस्त तुमको भूत प्रेत उठा कर ले जायेगा तो हम आएंगे बचाने के लिए😃तुमको भूत के चुंगल से छुरा कर लाएंगे भरोसा रखो हम पर दोस्त 😜😀😀😀😀

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    1. A Dost, tum hi log k bachane se toh hm bache hai aaj tk, warna ye didi bhaiya hmko bhoot pret ko petha aaye hote... Hmko poora bharosa hai, aage v tum hi bachaogi

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