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Sunday, October 4, 2020

परीक्षा- कक्ष में वीक्षक महोदय


परीक्षा- कक्ष में बैठे- बैठे वीक्षक महोदय पर नज़र चली  गई जो अपनी बड़ी तोंद पर टेक लगाए अजीब सी मुद्रा में बैठे ऊँघ रहे थे. बेचारे को देख कर बड़ी दया आई कि 27 अप्रैल की गर्मी में उन बेचारे को भी सजा झेलनी  पड़ रही है. अगले ही पल अपनी बेरोजगारी से अफ़सोस घटा. हम बेचारे बेरोजगार विद्यार्थी तो किसी भी मौसम में परीक्षा में शामिल होने को मज़बूर हैं , पर उन रोज़गार वाले वीक्षक महोदय को गर्मी से लद- फद देखकर अपने हाल पर संतोष हुआ कि ये घर पर भले ही AC/Cooler का खर्च वहन कर सकते हैं, पर दिन की गर्मी उनको हम बेरोजगारों के साथ धीमी गति वाले पंखे के नीचे ही गुजारनी पड़ेगी .
 
बहरहाल, इस से पहले कि विचारो का रथ मुझे सुखद कल्पना लोक का सफर कराए, मन पर लगाम लगा कर प्रश्नो का उत्तर लिखना आवश्यक था वरना ... 😓😓
 
परिणाम की भयंकरता से सिहरन हुई और मैंने अपना ध्यान उत्तर- पुस्तिका पर केंद्रित कर लिया .
 
मन पर लगाम कसना दुनिया के सबसे कठिन कार्यो में शुमार है. परीक्षार्थी का मन परीक्षा- कक्ष में बैठे- बैठे उत्तर- पुस्तिका पर कम और बाकी दुनिया पर ज्यादा लगता है. इन बाकी चीजों में यह विचार भी शामिल रहता है कि अगली परीक्षा में अच्छा करुँगी/ करूँगा. 
 
हाँ, तो इस बार मेरा ध्यान तब भंग हुआ जब वीक्षक महोदय अपनी तोंद समेत कुर्सी से उठे. अँगराई लेते हुए उन्होंने चौक उठाकर श्यामपट्ट पर कुछ सफ़ेद अक्षर लिखे, "27 अप्रैल 2020, सोमवार".
 
एक परीक्षार्थी का चंचल मन तुरंत ही इन अक्षरों को लिखे जाने का कारण ढूंढने लगा. परीक्षा समाप्त होने में अब बस आधा घंटा ही शेष था और सभी परीक्षार्थी अपनी उत्तर- पुस्तिका में दिन, दिनांक इत्यादि सूचनाएँ भर चुके थे. जिनको याद नहीं था, उन्होंने सह- परीक्षार्थिओं से या वीक्षक महोदय से ही पूछ- पूछकर लिख लिया था. बल्कि यह सूचना यदि पहले लिख दी गई होती तो उत्तर रटने के चक्कर में दिन और दिनांक भूलने वाले परीक्षार्थिओं को उतनी पूछ- ताछ नहीं करनी पडती.
 
फिर क्या वजह हो सकती है कि वीक्षक महोदय ने अपनी तोंद समेत पूरे शरीर को कष्ट दिया और अपने हाथो की हरकत से श्यामपट्ट को सफेदी चखाई ???
 
मुझे लगने लगा कि सिर्फ परीक्षार्थी ही नहीं बल्कि वीक्षक का मन भी परीक्षा- कक्ष में चंचल हो जाता है. परीक्षा- कक्ष जगह ही ऐसी होती है जहाँ ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता।
 
या फिर दूसरी वजह ये हो सकती है कि वीक्षक महोदय को उन दिनों की याद आ गई हो जब वे परीक्षार्थी हुआ करते थे. अब वीक्षक बनकर उत्तर लिखना तो संभव नहीं था. अपना नाम श्यामपट्ट पर लिखने का मतलब था हँसी का पात्र बनना। क्रमांक (रोल- नंबर) जैसी परीक्षार्थी- सुलभ चीजें अब  वीक्षक महोदय के लिए दुर्लभ थीं. इसलिए उन्होंने दिन और दिनांक लिखकर पुरानी यादों को ताजा किया होगा, क्योंकि हो सकता है कि किसी परीक्षा में वो सिर्फ नाम, क्रमांक , दिन और दिनांक लिखने के अलावा वो कुछ ना लिख पाए हों और कोरे उत्तर पुस्तिका पर मिले लड्डू की वजह से उनके बाबूजी ने उनपर कोड़े बरसाए हों और उनके माथे पर लड्डू निकल आया हो. 
कहते हैं, मन में जिस बात का भय हो, वह काम कर ही डालना चाहिए, ताकि भय मिट जाए.
 
शायद वीक्षक महोदय इसी टोटके को आजमा रहे हों. बैठे तो वो परीक्षा- कक्ष में ही थे. अब आज उन्होंने सिर्फ दिन और दिनांक लिखा. ऐसा लिखने पर भी उनके बाबूजी उनको कोड़े नहीं मारेंगे, यह बात तो तय है. एक पंथ दो काज- वीक्षक महोदय के मन का भय मिट गया होगा और पुरानी यादे भी ताजा हो गई होंगी. 
 
वैसे वीक्षक महोदय की इज्जत को ध्यान में रखते हुए पुरानी यादें ताजा होने वाला अनुमान ज्यादा सटीक है. आख़िरकार 'नॉस्टैल्जिया' (NOSTALGIA)  एक प्रचलित शब्द है.

नोट- इस पोस्ट का उद्देश्य किसी को अपमानित करना या किसी की भावनाएँ आहत करना नहीं है. अतएव एक सत्य घटना होने के बावजूद दिन और दिनांक बदल दिए गए हैं ताकि कोई भी व्यक्ति लक्षित वीक्षक महोदय के नाम का अंदाजा ना लगा सके. यह पोस्ट एक स्वस्थ मनोरंजन के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है. 
 
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🖊 प्राची कुमारी


2 comments:

  1. Hahahahahaha.... Ye to human rights hai... sorry human nature 🤣

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    1. Human rights bole toh 'suitable environment' ya fir 'right to get Roll number and Enrollment Number'... thora detail me samjhae :p

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