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Thursday, September 12, 2024

कर्मभूमि

कर्मभूमि 

(कथा सम्राट प्रेमचंद रचित उपन्यास "कर्मभूमि" का नाट्य- रूपांतरण )


 
नोट:- लेखिका का कथा सम्राट प्रेमचंद से संबंध --दूसरी कक्षा में थी जब दीदी की पाठ्यपुस्तक से ईदगाह पढ़ा था और प्रेमचंद से पहला परिचय हुआ था. आठवीं कक्षा में थी जब इनका पहला उपन्यास 'गबन' पढ़ा था. उसके बाद से प्रेमचंद का साथ कभी नहीं छूटा. उनका रचा हर पात्र मेरे जीवन में साकार रूप में यहाँ- वहाँ टकराता रहता है. कहने की जरुरत नहीं कि कथा सम्राट प्रेमचंद की लेखनी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उस काल में थी जब ये कथानक लिखा गया था. 
(लेखिका की क्षमा याचना:- सबसे जरुरी बात सबसे पहले.
अपनी छोटी सी बुद्धि से प्रेमचंद के रचे पात्रों को modern twist देने का सम्मान भरा साहस कर रही हूँ. मकसद सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन है. वरना कथा सम्राट की लेखनी से छेड़छाड़ करने की न ही मेरी मंशा है और न ही उतना हुनर. औकात तो बिलकुल नहीं. )

 दृश्य 1 

(समय की तितली मंच पर आती है. )

समय की तितली:- मैं समय नहीं हूँ. मैं समय की तितली हूँ. उड़ते- फुदकते यहाँ वहाँ मंडराते मैंने देखी है युगों- युगों की कर्मभूमि. कर्मभूमि, जहाँ मनुष्यों ने किया है संघर्ष और सींचित किया है इस भूमि को अपने लहू से. कभी ये लहू पसीने के साथ बहा है और धरती को समृद्ध किया है तो कभी ये लहू किसी का सर काट के बहा है और धरती का सीना छलनी किया है. बहरहाल, हर युग में मनुष्य के कर्मों की साक्षी हूँ मैं.
आइये आपको दिखती हूँ अतीत की कर्मभूमि. 

(तितली फुदकते फुदकते मंच से चली जाती है. दूसरी तरफ से सलीम और अमरकांत मंच पर आते हैं. )

सलीम- अरे अमर, मेरे जिगर. किस बात की परेशानी है तुम्हें? मुँह क्यों लटकाए हो ?
अमर- ऐसा है सलीम, शादीशुदा आदमी का मुँह लटका ही रहता है. 
सलीम- भाईजान, नाशुक्रापन ठीक नहीं होता। इतनी अच्छी तो है भाभी. 
अमर- तुम्हे तो अच्छी ही लगेंगी, सच्चाई तो मैं जानता हूँ. 
सलीम- तो उस हकीकत से हमें भी रूबरू कराओ. 
अमर- भाई, मैं पराधीन भारत के स्वंत्रता संग्राम में भाग लेना चाहता हूँ. गरीबों के उत्थान के लिए कार्य करना चाहता हूँ जबकि सुखदा देवी और बाबूजी गरीबों का पैसा हड़प कर स्वयं ऐश्वर्य और भोग विलास का जीवन जीना चाहते हैं. ये लोग देश का नहीं सोचते. 
सलीम- देखो, बाबूजी का कुछ नहीं किया जा सकता. और भाभी को भी एक मुकम्मल जहाँ की खोज है तो इसमें गलत क्या है ?
            सुनो, भाभी आती हैं एक well- to- do family से. ग़ुरबत उन्होंने देखा नहीं. लेकिन तालीम हांसिल की है. तुम सही तरीके से अपना point of view उनके सामने रखो तो सही. she will understand. 
अमर- भाई, मैं देश के लिए शहीद होना चाहता हूँ. बाबूजी ने जबरदस्ती शादी करवा दी. वो भी ऐसी लड़की से, जिससे मेरे सिद्धांतों का कोई मेल नहीं. 
सलीम- भाई मेरे, वतन के लिए शहादत ही इकलौता तरीका नहीं है. 

(तभी पीछे से प्रोफेसर शांता आ जाती हैं )h

प्रोफेसर शांता- Yes, this is what I have taught you. 

(दोनों प्रोफेसर को greet करते हैं.)

प्रोफेसर शांता:- You can serve the nation by other ways also. Sacrificing your life is not always required. You can take care of your family and country both. Think of different ways my child. 
दोनों एक साथ- Yes Professor.
प्रोफेसर शांता:- Anyways, मैं जा रही हूँ बस्ती में साक्षरता mission पर. because freedom without education would be of no use. 
                And Salim, Congratulations for cracking Civil Services Examinations. You are one of the few Indians who have cleared it. 
सलीम:- Thank you Professor. I am your student. 
प्रोफेसर शांता:- You both are my brightest students... and Salim, avail this opportunity to serve the nation. This service is predominantly occupied by the English, who are not empathetic towards Indians. You can bring the Change.
and Amar, you also think of certain ways to reform the society instead of sacrificing your life. Bless you my kids. 

(प्रोफेसर  चली जाती हैं. )

अमर:- क्या बलिदान किया है न प्रोफेसर ने. विलायत से पढाई करके आई हैं, यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं, अच्छी तनख्वाह है. ऐश- आराम की ज़िंदगी जी सकती थी, पर ज़मीनी स्तर पर काम कर रही हैं. 
सलीम:- तुम भी ऐसे ही काम करो मेरी जान. अपनी जान लेने पर क्यों उतारू हो?
अमर:- हम्म्म, चलो कम से कम तुम्हे तो जीवन की दिशा मिल गई. अब training के लिए England जाओगे और गोरी मेम से आँखे लड़ाओगे दिलफेंक आशिक़ कहीं के. 
आँखे लड़ाने से याद आया, उनकी क्या खबर है, जिनसे तुम्हारी आँखे चार हुई थीं ?
सलीम:- हम तो फ़िदा हो गए उनकी तिरछी निगाहों पर, हमें क्या पता था सनम टेढ़ा ही देखते हैं। 
अमर:- (सर पकड़ लेता है) 
यानि वहाँ भी बात नहीं बनी. अबे इतनी जल्दी तो भारत में मौसम नहीं बदलते, जितनी जल्दी तुम्हारे दिल का मौसम बदल जाता है. छोड़ो, अब गोरी मेम लाना. नौकरी पर ध्यान दो. 
सलीम:- नौकरी करना कौन चाहता है. और गोरी मेम कौन लाना चाहता है. मैं नज़्मे लिखना चाहता हूँ और सक़ीना के सामने उन्हें गुनगुनाना चाहता हूँ बस. निक़ाह करना चाहता हूँ सक़ीना से. 
अमर:- हाँ तो करो जो करना चाहते हो, रोका किसने है?
सलीम:- अब्बा नहीं मानेंगे. 
अमर:- (नाउम्मीदी से सर हिलता है)   
चलो मेरे घर चलते हैं. 

दृश्य 2 

(मंच पर प्रकाश दूसरी ओर पड़ता है, जहाँ सुखदा, नैना, सकीना और सकीना की अम्मी मंच पर आती हैं.)  
सुखदा:- आओ सबलोग आँगन में ही बैठते है. अंदर काफी घुटन हो रही है. 

(सब चटाई पर बैठ जाते हैं. सुखदा के हाथ में किताब है. सकीना कढ़ाई कर रही है. सकीना की अम्मी आलू छील रहीं हैं और नैना आलू के चिप्स काट रही है. )

सुखदा:- आजकल मौसम ऐसा होने लगा है कि हरपल जी घबराता है. सकीना, अपनी सुरीली आवाज में कुछ सुनाओ, शायद कलेजे को ठंडक पड़े. 
सक़ीना:-  जी, शेख मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक़ का कुछ सुनाती हूँ. 
"अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे।
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे. "

सुखदा:- वाह, वाह, वाह. क्या बात है सक़ीना। कितना अच्छा सुनाया. तुम हर काम में निपुण हो. घरदारी के सारे काम जानती हो, सिलाई- कढ़ाई करती हो और सबसे बढ़कर इतनी सुंदर नज़्में सुनाती हो. सलीम भाई को इश्क़ है तुम्हारे इस हुनर से. देखा नहीं, कितनी प्यार भरी निगाहों से वो तुम्हे देखते हैं. कहो तो बात चलाऊँ।
सक़ीना:- ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया भाभी, लेकिन हमारा और उनका कोई मेल नहीं. वो महलों में रहनेवाले और हम  झोंपड़ी में. निकाह हो भी जाए तो आगे गुज़ारा नहीं हो पाएगा. हमें अपनी खुद्दारी बहुत प्यारी है. ऐसे इश्क़ को ठुकराना ही बेहतर. 
सुखदा:- देख रहीं हैं चाची। 
सक़ीना की अम्मी:- सुखदा बेटी, बात तुम्हारी दुरुस्त है लेकिन हम अपनी सक़ीना का कहा मानेंगे. जहाँ इसका दिल चाहेगा, वहीं निक़ाह पढ़वाएंगे. हुनर दिया है अल्लाह ने मेरी बेटी को. और पढ़ना- लिखना तुमने सिखा दिया.  झोपड़ी में छिपा खजाना है मेरी बेटी. कोई शहजादा भेजेंगे अल्लाह इसके लिए. 
सक़ीना:- मेरी प्यारी अम्मी. (गले लग जाती है.) 
सुखदा:- अरे- अरे. माँ- बेटी का प्यार देखकर मुझे मेरी माँ की याद आ गयी. बड़े नाज़ो से पाला है उन्होंने मुझे। अब ससुराल आकर पति ने मेरा मान नहीं रखा. वरना एक दौर था...

(उसकी बात अधूरी रह जाती है. बीच में हीं नैना उसके गले लग जाती है.)

नैना:- अरे भाभी, हम आपसे बहुत प्यार करते हैं. 
सुखदा:- जानती हूँ नैना. एक तुम ही हो जिसे मेरी कद्र है, वरना बाबूजी ने मुझे मेरी दौलत के लिए अपनी बहू बनाया था और तुम्हारे भईया, हुँह, पिता के सामने ना नहीं कर पाए तो बस शादी कर ली. समझने की कोशिश  भी नहीं की मुझे. बस अपनी धारणा बना ली कि मैं अमीर घर की हूँ तो गरीबों का शोषण ही करुँगी. अरे मुझसे बात तो करते. उन्हें क्या पता मैं कितनी आतुर हूँ देश सेवा के लिए. लेकिन नहीं, बाबूजी का गुस्सा मुझपर उतारते हैं. 
नैना:- हाँ भाभी, बाबूजी ने कभी हम दोनों भाई- बहनों की नहीं सुनी. भईया इसीलिए विद्रोही स्वभाव के होते जा रहे. 
    अच्छा, वो सब छोड़िए। मेरी प्यारी भाभी का मन अच्छा करने के लिए मैं एक गाना सुनाती हूँ. 

(नैना गाना गाती है. "जो मांगी थी दुआ" सभी वाह वाह करते हैं.  तभी अमर और सलीम घर पहुंचते हैं. सब आपस में दुआ- सलाम करते हैं.  )

अमर:- वाह मेरी प्यारी बहन, कितना मधुर गाती हो, कलेजे को ठंडक पड़ जाती है. 

( तभी सलीम सक़ीना की तरफ देखकर कहता है.)

सलीम:- सुना है बोले तो बातों से फूल झरते हैं,
            ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं. 
सुखदा:- वाह भाईसाहब, क्या सुनाया है. जवाब देने के लिए हमारी सक़ीना कोई कम है क्या? जवाबी शेर पेश करो बहन. 
सक़ीना:- कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से,
                ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो. 
सलीम:-  तू खुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तो जैसा,
                दोनों इंसां हैं, तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें. 
सक़ीना:-  उस अदा से भी हूँ मैं आशना, तुझे जिस पे इतना गुरुर है,
                मैं जिऊंगी तेरे बगैर भी, मुझे ज़िंदगी का शऊर है. 

(सभी वाह वाह कर ही रहे होते हैं कि लाला समरकांत घर आ जाते हैं. )

लाला समरकान्त:- नैना, बेटी कहाँ हो? 

(नैना जल्दी से कुर्सी खींचकर बाबूजी को बैठने को कहती है. सुखदा पानी का लोटा लेकर आती है. अमर थोड़ी दूर खड़ा हो जाता है.  सक़ीना और उसकी अम्मी भी थोड़ा दूर जाकर पीछे खड़े हो जाते हैं. 

लाला समरकान्त:- बहू, एक बहुत शुभ समाचार लाया हूँ. नैना बेटी का विवाह लाला मनीराम से तय कर दिया है. तुम तैयारियों में लग जाओ. 
सुखदा:- किंतु बाबूजी, लाला मनीराम काफी बड़ी उम्र के हैं. और तो और लोग कहते हैं, उन्होंने अपनी पहली पत्नी को मार डाला था. 
लाला समरकान्त:- सब अफवाह है बहू. लाला मनीराम ऊँची रसूख वाले व्यक्ति हैं. अरे उनकी उठना- बैठना लार्ड मिंटो तक के साथ है. जलन के मारे लोग उनको बदनाम करने की साजिश में लगे रहते हैं. लाला मनीराम से नैना का लगन करा के हमारा उठना बैठना भी अंग्रेज अफसरों के साथ हो जाएगा. हमारे व्यापार में मुनाफ़ा होगा। 
अब अमरकांत की तरह देशसेवा का बीड़ा उठाने से पेट नहीं पलता। पहले अपनी सेवा, फिर देश की सेवा. 
सुखदा:- बाबूजी, एक बार नैना की मर्ज़ी भी पूछ लेते. 
लाला समरकान्त:- ये तुम क्या कह रही हो बहू. बच्चों की मर्ज़ी नहीं पूछी जाती. यही है हमारे घर की परंपरा, प्रतिष्ठा, अनुशासन. 
तुम तैयारी करो. 

(लाला समरकान्त बाहर चले जाते हैं. अमर और सलीम निराशा से सर हिलाते खड़े रहते हैं. सुखदा अंदर से शादी की चुन्नी ले आती है. )

नैना सक़ीना से कहती है:- कितनी भाग्यशाली हो बहन. तुम्हारी माँ तुम्हारी मर्ज़ी का ध्यान रखती हैं. 

(सक़ीना सांत्वना से नैना का हाथ सहलाती है. सुखदा नैना को शादी वाली लाल चुन्नी ओढ़ाती है. सक़ीना की अम्मी  फूलों की टोकरी ले आती है.  नेपथ्य से बैंड बाजे की आवाज आती है और मंच पर लाला मनीराम, लार्ड मिंटो, लाला समरकान्त आते है. लाला समरकान्त बारात का स्वागत करते हुए आते हैं. बीच मंच पर मनीराम और नैना सात फेरे लेते हैं. सभी फूल फेंकते हैं. लाला समरकान्त का ध्यान बेटी के विवाह से ज्यादा लार्ड मिंटो की चापलूसी पर है. विवाह संपन्न हो जाता है. नैना और मनीराम को छोड़कर सभी लोग मंच से चले जाते हैं. मनीराम दारु की बोतल उठा लेता है. नैना हैरानी से देखती है. )

मनीराम:- ऐसे क्या घूर रही हो समरकान्त की बेटी. आँखे फोड़ दूँगा। कई सालों से तुम्हारा बाप व्यापार में मुझसे आगे निकल रहा था. उसकी बेटी से शादी करके मैं उसको नीचा दिखाऊंगा. समरकान्त की सारी दौलत अब मेरी. अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे। 

(मनीराम क्रूरता से हँसता है और नैना को धक्का मारकर गिरा देता है. उसके बाद दारू की बोतल नैना के हाथ में पकड़ा देता है और मंच के दूसरी तरफ जाता है, जहाँ लार्ड मिंटो बैठा है. ) 

मनीराम:- हुजूर हुजूर हुजूर, कैसे हैं आप. 
लार्ड मिंटो:- अरे मनीराम, टुम्हारा अभी अभी शाडी हुआ, और टुम हमसे मिलने चला आया. 
मनीराम:- अरे हुजूर, शादी- ब्याह तो लाला समरकांत की धन दौलत हड़पने के लिए किया है मैंने. असली आनंद तो हुजूर की सेवा में है. आप बस हमारा टेंडर पास करवा दें, हम आपको... 

(लार्ड मिंटो मनीराम की बात बीच में हीं काट देता है. )

लार्ड मिंटो:- Speaking of ढ़न- डौलत, did you collect tax  ? टुम tax collect किया ? Don't make excuses like rain नहीं हुआ, crop नहीं ऊगा. टुम tax collect करके लाएगा तभी हम टुम्हारा tender का सोचेगा. नहीं टो हम ये tender लाला समरकान्ट को डेगा।
मनीराम:- नहीं नहीं हुजूर, नाराज़ क्यों होते है. मैं कुछ भी करके लगान वसूल करूँगा. लाला समरकांत को ये टेंडर मत दीजिए. 

(मनीराम हाथ जोड़ता हुआ चला जाता है. )

लार्ड मिंटो:- Stupid Indians, It is so easy to rule this country. Just divide and rule.

(लार्ड मिंटो मंच से चला जाता है. मंच पर सुखदा, सक़ीना और सक़ीना की अम्मी आती हैं. )

सुखदा:- पता नहीं नैना ससुराल में कैसी होगी? 

(तभी सामने से नैना आ जाती है. )

सुखदा:- अरे नैना कैसी हो? (गले लगा लेती है. )
नैना:- भाभी, बचपन से बाबूजी का कहा माना, उसका ये परिणाम हुआ. अब मैं अपने दिल की सुनूंगी. मैं जा रही हूँ प्रोफेसर शांता की मुहीम में शामिल होने. अब ना मैं बाबूजी की सुनूंगी ना ही पति की. स्त्रियों को अपनी मर्जी से रहने दे, ऐसा समाज बनाने के लिए संघर्ष करना ही होगा.
सुखदा:- मैं भी यही सोच रही हूँ. घर की चारदीवारी में घुटने से अच्छा है, समाज के उत्थान के लिए कर्म किया जाए. 
सक़ीना और अम्मी एक साथ:- हम भी चलेंगे. 

(सब एकसाथ आगे बढ़ते हैं. सामने से प्रोफेसर शांता, अमर और सलीम आते हैं. सब एकसाथ मिल जाते हैं.)

सुखदा:- हम सब भी आपकी मुहीम में शामिल होना चाहती हैं. (अमर सम्मान भरी नज़रों से सुखदा को देखता है.)
प्रोफेसर शांता:- बहुत अच्छी बात है. 
नैना:- जी, हमें लगता है अगर आज हम अच्छे कर्म करेंगे तो हमारा भविष्य अच्छा होगा. 
            जाने कैसा होगा हमारा भविष्य 

(नैना सपनों में खो जाती है, तभी समय की तितली आकर चुटकी बजाती है.)

समय की तितली:- मैं दिखा सकती हूँ कैसा होगा भविष्य. ... मैं समय की तितली हूँ. परदे के गिरते ही परदे के उठते ही मैं दिखा सकती हूँ भविष्य. ये देखो. 

(तितली चुटकी बजाती है. पर्दा गिरता है. 
पर्दा उठता है. न्यूज़ एंकर ढोलकी शर्मा न्यूज़ पढ़ रही है. ) 

ढ़ोलकी शर्मा:- नमस्कार, न्यूज़ ताबड़तोड़ पर आपका स्वागत है. मैं हूँ आपकी होस्ट एंड दोस्त ढोलकी शर्मा. अब तक की सबसे बड़ी खबर आ रही है राष्ट्रपति भवन से. भारत के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर माननीय राष्ट्रपति श्रीमती आनंदिता भारतीय राष्ट्र को सम्बोधित करने वाली है. बस चंद पलों का इन्तजार और ये लीजिये... 

मंच पर दूसरी तरफ प्रकाश पड़ता है, जहाँ  माननीय राष्ट्रपति श्रीमती आनंदिता भारतीय बैठीं हैं.)  

श्रीमती आनंदिता भारतीय :- मेरे प्यारे देशवासियों
                                            नमस्कार 
भारत के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश और विदेश में रहनेवाले आप सभी भारत के लोगों को मैं हार्दिक बधाई देती हूँ. हमारी सीमाओं की रक्षा में तैनात सशस्त्र सेनाओं और अर्धसैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बलों के जवानों को मैं विशेष रूप से शुभकामनाएं देती हूँ. मैं राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में योगदान देने के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग के सभी नागरिकों को बधाई देती हूँ. 
जब हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं, तब एक राष्ट्र के रूप में हमने मिल- जुलकर जो उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, उनका उत्सव मनाते हैं. इन उपलब्धियों को प्राप्त करने में वर्तमान समाज के नागरिकों के योगदान के साथ- साथ स्वतंत्रतता- सेनानियों के योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं. हम पराधीन भारतीय समाज के उन सभी व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जिनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं है, किंतु जिनके त्याग की बदौलत हीं आज विश्व- मानचित्र पर हमारी सम्मानजनक उपस्थिति है.
संविधान के लागू होने के दिन से लेकर आजतक हमारी यात्रा अदभुत रही है. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास से हमारी सामरिक शक्ति अत्यंत सुढृढ़ हुई है तथा अंतरिक्ष में उपग्रहों की स्थापना से संचार प्रणाली में अभूतपूर्व परिवर्तन आये हैं. आज भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यस्थाओं में से एक है. ओलिंपिक जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भारतीय खिलाडियों विशेषकर महिलाओं ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है. हर क्षेत्र में अपना देश सफलता की नयी ऊंचाइयों को छू रहा है, तथापि कुछ चुनौतियां अभी भी हैं. 
मैं देशवासियों से निवेदन करती हूँ कि अपनी इस कर्मभूमि पर ईमानदारीपूर्वक अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते रहें। 
आप सबको पुनः गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ।
जय हिन्द, जय भारत. 

(पर्दा गिरता है. 
पर्दा उठता है. न्यूज़ एंकर ढोलकी शर्मा न्यूज़ पढ़ रही है. )

ढ़ोलकी शर्मा :- जी हाँ, पूरे देश में जश्न का माहौल है. लेकिन देश के कुछ हिस्सों में किसानों की स्थिति को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं, तो कहीं पर समाज में महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहें है. आखिर कबतक भारत का समाज ऐसा रहेगा.

इन्ही बड़ी खबरों के बीच एक और बड़ी खबर आ रही है मुंबई शहर से जहाँ Business tycoon निवेदिता अंबानी अपने आलीशान, भव्य Cultural Centre के उद्घाटन समारोह पर आ रहीं हैं.

(निवेदिता अंबानी मंच पर आती हैं. बहुत सारे मीडिया वाले उनकी फोटो वीडियो लेते मंच पर एक तरफ से दूसरी तरफ चले जाते हैं. )

निवेदिता अंबानी:- जय श्री कृष्णा
कैसे हैं आप सब ? Thank you so much for coming and being the most spectacular audience. You know मैंने बचपन से सोचा था कि I will create some place like this to preserve Indian culture and Indian heritage क्योंकि कहते हैं ना India is where it all started.
This world class Cultural Centre is my dream come true. 
And now, with immense pride and joy, I declare the Nivedita Ambani Cultural Centre open. It is my humble dedication to new India. 

(ठीक इसी वक्त नेपथ्य से गाना बजना शुरू होता है, "तन आनंदित मन आनंदित..." और निवेदिता अंबानी नृत्य करती हैं. 
जब इनका नृत्य समाप्त होता है तो समय की तितली चुटकी बजाकर इनको फ्रीज कर देती है) 

समय की तितली: अपने समय में जाओ
(निवेदिता अंबानी और ढोलकी शर्मा शरीर में कोई हरकत किए बिना सिर्फ पैर हिलाते हुए मंच से बाहर चली जाती हैं)

नैना: कितना सुंदर भविष्य है हमारा.
अम्मी: हां, पर ऐसा मुकम्मल आज़ाद हिंदुस्तान पाने के लिए हमें आज लड़ाई लड़नी होगी. 
सुखदा और अमर एकसाथ: तो चलो अपने कर्म करें.

(इतने में नैना सबसे आगे आ जाती है.)

नैना: अंग्रेजो, भारत छोड़ो 
सभी एक साथ: अंग्रेजो, भारत छोड़ो 

(तभी सामने से लॉर्ड मिंटो और लाला मनीराम आते हैं)

लॉर्ड मिंटो: टूम हमको ढ़ोखा दिया. टूम कहता टूम हमारा साठ है and your family is protesting against me. हम टूम्हारा टेंडर cancel करता 

मनीराम: नहीं हुज़ूर, ऐसा ना करें.
इसको तो...

(मनीराम बंदूक निकलता है और नैना को गोली मार देता है. नैना गिरती है. समरकान्त दौड़ता हुआ आता है) 

समरकान्त: मेरी बेटी को मार डाला (विलाप करता है) अब होगी क्रांति

समरकान्त और बाकी सब लोग लॉर्ड मिंटो और मनीराम पर टूट पड़ते हैं, तभी तितली सबको फ्रीज कर देती है. लॉर्ड मिंटो और मनीराम मंच से बाहर खिसक लेते हैं) 

समय की तितली: और इस तरह नैना जैसे असंख्य लोगों का लहू इस कर्मभूमि पर बहा और देश स्वतंत्र हुआ. 

(नेपथ्य से प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू जी की आवाज आती है : At the stroke of midnight hour, when the world sleeps, India will awake to life and freedom.
सभी लोग अनफ्रीज हो जाते है और गले मिलते हैं)

समय की तितली: ये थी कल और आज की कर्मभूमि. जवां दिल तब भी धड़कते थे, अब भी धड़कते हैं. पति पत्नी में मतभेद तब भी होते थे, अब भी होते हैं और सबसे बढ़कर... किसी भी युग में चुनौतियों से खाली नहीं होती है ये कर्मभूमि.
ये तुम्हारी कर्मभूमि है.

सभी एक साथ: ये हमारी कर्मभूमि है. 

पर्दा गिरता है.











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कर्मभूमि

कर्मभूमि  (कथा सम्राट प्रेमचंद रचित उपन्यास "कर्मभूमि" का नाट्य- रूपांतरण )   नोट:- लेखिका का  कथा सम्राट  प्रेमचंद से संबंध --दू...