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Sunday, April 5, 2020

आधुनिक भारतीय हिन्दू विवाह संस्कार एवं इसकी जटिलता (भाग- 1)

   आधुनिक भारतीय हिन्दू विवाह संस्कार एवं इसकी जटिलता (भाग- 1)


यहाँ सर्वाधिक महत्व से मेरा तात्पर्य बेवजह की ताम- झाम एवं सर्वाधिक ध्यानाकर्षण से है. जवान होते लड़के- लड़कियों की तरफ हर किसी का ध्यान रहता है कि कब होगी शादी? कभी- कभी तो यह सवाल इतने ज्यादा मुखर रूप में सामने आता है मानों जीवन का चरम लक्ष्य शादी हीं हो. 

कन्या और वर का विवाह निश्चित होने यानि दोनों पक्षों के राज़ी होने से लेकर वास्तव में विवाह सम्पन्न होने तक की प्रक्रिया काफी लम्बी होती है. 

हाल ही में परिवार में एक विवाह समारोह के प्रमुख कर्ता- धर्ता के रूप में नजदीक से अवलोकन करके मैंने यह महसूस किया कि विवाह- संस्कार सर्वाधिक जटिल संस्कार है और संपूर्ण प्रक्रिया कई चरणों में संपन्न होती है

आज लॉकडाउन की स्थिति में जब शुभ लग्न होने के बावजूद कईयों के विवाह स्थगित करने पड़े हैं, मैंने सोचा क्यों ना लेखनी के माध्यम से एक आधुनिक भारतीय हिन्दू विवाह समारोह का आनंद उठाया जाए. 

वैसे भी टेलीविज़न पर 'रामायण' का पुनः- प्रसारण और राम- सीता विवाह प्रसंग देखने के बाद इस प्रसंग का वास्तविक जीवन से तुलनात्मक अध्ययन तो अवश्यंभावी है. (वैसे तो त्रेता- युग के प्रसंग का कलयुगी प्रसंग से तुलनात्मक अध्ययन एक दृष्ट्ता है, फिर भी विनम्र भाव से प्रयत्न कर रही हूँ. उम्मीद है किसी की भावना आहत ना होगी.

हाँ, तो मैं कह रही थी कि विवाह की संपूर्ण प्रक्रिया कई चरणों में संपन्न होती है. मोटे तौर पर वे चरण हैं-
  • सुयोग्य वर- वधू की तलाश 
  • छेंका, रोक्का अथवा अंगूठी पहनाने की रस्म 
  • शुभ तिलकोत्सव 
  • शुभ- विवाह 
  • वर- वधू स्वागत समारोह 
  • हनीमून  
इसके बाद बात प्रथम संस्कार की तरफ मुड़ जाती है. 😜

यूँ तो देखने में ये सिर्फ कुछ चरण हैं, पर इनमें से प्रत्येक अपने आप में बहुत सारी प्रक्रियाओं को समाहित किए हुए है. तो आइये प्रत्येक चरण का पृथक अवलोकन करते है.


1. सुयोग्य वर- वधू की तलाश:- 

यह प्रक्रिया कभी ख़त्म ना होनेवाली खोज जैसी लगती है. हालांकि आस-पास हो रहे सैकड़ो विवाह समारोहों को देखकर तो यही लगता है कि यह एक आसान कार्य होगा, तभी इतने लोगों की जोड़ियां मिली; पर वो जोड़ीदार ज्यादातर मामलों में ऐसे रहते हैं, मानों योग्य साथी ना मिलने की स्थिति में समझौता कर रहें हों. कुछ मामलों में अवश्य 'चाँद- सूरज की जोड़ी' वाला केस रहता है, बाकी में "और बेहतर मिल सकता/सकती था/थी" वाला केस रहता है. 

मेरे हिसाब से ऐसी मनोस्थिति तब आती है, जब लोग स्वयं का आकलन किए बिना 'डिमांड' और अपेक्षाएँ बहुत ज्यादा रख लेते हैं. और कुछ जोड़ियां वाकई बेमेल होती हैं. 

हमारे यहाँ प्राचीनकाल से ही स्वयंवर की प्रथा रही है. सीता- स्वयंवर के आयोजन का उद्देश्य भी यही था कि सीता से कम योग्य वर से उनका विवाह ना हो. सीताजी शिवजी का धनुष उठा पाने में सक्षम थीं. यह कार्य कोई और ना कर पाता था. अतः उनका विवाह एक ऐसे वर से ही हो सकता था, जो शिवजी का धनुष उठा पाने में सक्षम हो. 

सम्पूर्ण रामायण में सीता- स्वयंवर मेरा सर्वप्रिय प्रसंग है, क्योंकि यह घटना प्रतीकात्मक रूप से यह दर्शाती है कि विवाह हेतु कन्या एवं वर को सामान रूप से सामर्थ्यवान होना चाहिए. यह कथा प्रतीकात्मक रूप से बेमेल विवाह का विरोध भी करती है. ये कथा यह भी दर्शाती है कि कन्या का विवाह उस से कम योग्य वर से करना शास्त्र- सम्मत नहीं है. 

मुझे आज के युग में यह कथा और भी प्रासंगिक लगती है, जब दहेज़ प्रथा की वजह से सुयोग्य किन्तु गरीब कन्या का विवाह उस से बहुत कम योग्य वर के साथ होते देखती हूँ. 

स्त्री के मान- सम्मान की स्वरचित आधुनिक परिष्कृत परिभाषा को मुखर रूप से व्यक्त करने वाली स्वाभिमानिनी अपराजेय ध्रुवस्वामिनी के देश को सीता- स्वयंवर- प्रसंग से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है. 

आधुनिक भारतीय समाज में विवाह के प्रथम चरण का वर्णन करते हुए रामायण का एक और संवाद याद आता है; जिसका सार है:- "विवाह दो व्यक्तियों का नहीं बल्कि दो कुटुम्बों का मिलन होता है."  

अब यह कुटुम्बों का मिलन अपने- आप में एक जटिल प्रक्रिया है. जब एक घर में, एक ही परिवेश में पले- बढ़े मुठ्ठी भर व्यक्तियों में मतांतर हो जाता है; तो यहाँ तो दो खानदानों के एक बड़े समूह को आपस में मिलाना होता है. मतभेद तो स्वाभाविक है. कभी- कभी यही मतभेद मनभेद में बदल जाता है और मोतीचूर चकनाचूर होने की नौबत आ जाती है

हाँ, तो योग्य वर- वधू को मिलाने में रिश्तेदार अहम भूमिका का निर्वाह करते हैं. घर में लड़की या लड़का के बालिग होने के पहले से ही ये लोग या तो टोकना शुरू कर देते हैं कि कब होगी शादी, अथवा अजीबोगरीब रिश्ते सुझाना शुरू कर देते हैं. तर्क ये होता है कि अभी से 'छेंक' लो, इस से पहले की कोई और 'छेंक' ले. सलाह देनेवाले ऐसे अति- उत्साही लोगों को 'अगुआ' कहते हैं, जो सहर्ष बिचौलिए की भूमिका अदा करने को तैयार रहते हैं. मुझे तो लगता है इसके पीछे मूल भावना आपके ऊपर एहसान लादना होता है कि मैंने आपके बच्चे की शादी कराई, बदले में आप भी मेरे लिए कुछ करो. 

कुछ 'अगुआ' खैर निःस्वार्थ भाव से काम करते है. उन्हें लगता है कि रिश्ते जोड़वाना पुण्य का काम है. पुण्य कमाने की इस धुन में उनकी नज़रे सदैव लड़के- लड़कियों पर टिकी रहती हैं और कल्पनाओं में उन्हें सिर्फ 'सुयोग्य सुमेल' यानि 'परफेक्ट मैच' दिखते रहता है. मुझे तो डर लगता है कि कहीं उनकी बाज़ नज़र 'पानीपुरी' के ठेले पर हँस- हँस कर स्वाद लेती लड़की और दाँत निपोरे ठेलेवाले पर पड़ गई तो वहाँ भी 'परफेक्ट मैच' ना घोषित कर दें; आखिर इनकी सक्रियता शादी- विवाह समारोहों में कुछ ज्यादा ही बढ़ी रहती है. 

कुछ अगुआ तो वर या कन्या के रास्ते से 'कांटा' हटाने के लिए उस 'तथाकथित कांटे' का 'टांका' किसी और से भिड़ाने का बीड़ा लिए घूमते हैं. वो अपनी खुली हुई चुटिया तभी बाँधते हैं,जब लक्षित कार्य संपन्न हो जाता है. 
अलग- अलग भेष में ऐसे अगुआ मुझे सर्वव्याप्त नज़र आते हैं. 


प्रेम- विवाह की स्थिति में अगुआ लोगों को अपने अस्तित्व पर संकट नज़र आने लगता है और वो लोग ऐसे विवाह का विरोध कभी खुलकर तो कभी दबी ज़ुबान में करते हैं. 

संचार- साधनों के विकास के साथ- साथ 'वर्चुअल अगुआ' अर्थात 'मैट्रिमोनियल- साइट्स' का बाजार में पदार्पण हुआ. हज़ारो की तादाद में सुमेल शादियाँ कराने का दावा करने वाले ये 'वर्चुअल अगुआ' भी मानव अगुआ के समान हीं प्रतीत होते है क्योंकि यहाँ भी बढ़ा- चढ़ा कर सूचनाएँ लिखी जाती हैं और लोग बहुत अच्छे होने का अभिनय करते हैं. हालांकि अपने आस- पास कोई शादी होते देखा नहीं है मैंने इस अगुआ के माध्यम से, तो व्यक्तिगत राय अभी सीमित है. 

खैर, प्रेम विवाह हो अथवा अगुआ के सहयोग से माता- पिता द्वारा तय किया गया विवाह; सुयोग्य वर- वधू की खोज (अथवा सुयोग्य कहे जा सकने योग्य वर- वधू की खोज) पूरी होते हीं विवाह- संस्कार की ओर अग्रसरित पहला चरण पूरा होता है. 

नोट- विवाह संस्कार के अगले चरणों की बात अगले रविवार के पोस्ट में होगी. एक ही बार में काफी लम्बा पोस्ट पढ़ने में बोरियत हो सकती है.
इसके अलावा विवाह जैसी जटिल प्रक्रिया पर धीमी गति से चर्चा में ही आनंद आएगा.
आप नीचे कॉमेंट- सेक्शन में अवश्य बताएं कि आपको यह पोस्ट कितना प्रासंगिक लगा. यह भी बताएं कि सबसे मजेदार कौन सा वाक्य लगा. अपने अनुभव भी साझा करें.
मेरा उद्देश्य किसी की भावनाएँ आहत करना कतई नहीं है. एक स्वस्थ मनोरंजन के उद्देश्य से अपना नजरिया बता रही हूँ.
    
 
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12 comments:

  1. Replies
    1. I was planning to write this post since long, but yes Ramayana can be said to be the aggravating factor.

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  2. सही बात है। लोग रामायण के बाकी उदाहरण देंगे लेकिन ये बात नजर नहीं आती उन्हें

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    1. उसी काम के लिए तो हम लेखक लोग बने हैं भईया 😂

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  3. Prachi aise post ka intezar tha... Aaj k samay me es prasang pe charcha nitaant aawasyak ho gya h... Mujhe to zyadatar shadiya bemel hi dikhti h😄 "Dahej k karan kisi suyogy prantu garib larki ki shadi km yogya larke k sath ho jati h" Ye baat tumne bilkul shi khi.. Dukh hota h aisa dekh kr😟😟 "wo apni khuli hui chuttiyan tb hi badhte h jb lakshit karya sampann ho jata h" Ye mst line h👌😄😄😄 Waise pratyek line mujhe achha qki pratyek line satik likhi h tumne👌 Aage k prasang ka besabri se intezaar rhega😊😊 Aage ki kahani agle ank me padhe😄😄

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    1. हाँ पूजा, इस बात का इन्तजार हमको खुद भी था कि मेरी कलम इस मुद्दे पर चले. 😂

      इतनी लंबी टिप्पणी एवं प्रशंसा के लिए धन्यवाद. उद्देश्य यही था कि हल्के- फुल्के हँसी- मजाक के बीच गंभीर मंथन किया जाए ताकि बोरियत न हो; अथवा पोस्ट उपदेश न लगे.

      जी हाँ, आगे की कहानी अगले अंक में पढ़ें. 😄

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    2. उस सुयोग्य कन्या को कम योग्य वर के साथ बाध कर ये चुटियासुर लोग ताउम्र के लिए एक बड़ा एहसान लाद देते है कि देख़ो तुम इतने क़ाबिल थे नहीं पर हमने तुम्हे इस क़ाबिल बनाया। 😉

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  4. सूक्ष्म अवलोकन.👌👌 यह समाज के चार लोगों द्वारा पढ़ा जाना चाहिए

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    1. समाज के चार लोग यह सूक्ष्म अवलोकन पढ़ें इसके लिए इस पोस्ट को वायरल करें 😜 पोस्ट को शेयर करें एवं ब्लॉग को सब्सक्राइब करें 😂😂

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    2. समाज के चार लोग़ क्या कहेंगे इसे पढ़कर, कभी सोचा है आपने, ये लेख एक पूरी प्रजाति को विलुप्त करने की साज़िश के तहत लिखा गया है, यही चार लोग समाज के दर्पण होते है, इनके बिना चैन कहा रे 🤣🤣

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  5. "मुझे तो लगता है इसके पीछे मूल भावना आपके ऊपर एहसान लादना होता है कि मैंने आपके बच्चे की शादी कराई, बदले में आप भी मेरे लिए कुछ करो. "

    Aajkal koi aapki help kre samajh jao ki unhe aapse koi kaam niklwani h

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    1. उन काम निकलवाने वाले लोगों से अपना काम निकलवा लेने की कूटनीति सीखनी पड़ेगी. 😅😈

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