Total Pageviews

Saturday, March 14, 2020

नोटबंदी, एटीएम की पंक्ति और समानता का अधिकार

नोटबंदी, एटीएम की पंक्ति और समानता का अधिकार

बात नोटबंदी के दिनों की है. कुछ दिनों तक पड़े नोटों के अकाल के बाद अवतरित हुए गुलाबी नोट का मूल्य उसके वास्तविक मूल्य से बढ़कर प्रतीत हो रहा था. 

जिसप्रकार अकाल पड़ने पर लोग "काले मेघा, काले मेघा पानी तो बरसाओ ..." गीत गाते थे, उसी प्रकार एटीएम की पंक्तियों में लगे लोगों को देख कर मुझे ऐसा लगता था, मानो वो लोग गा रहे हों, "आउट ऑफ सर्विस की तलवार नहीं, गुलाबी नोटों के बाण चलाओ ..." पंक्ति में खड़े हर व्यक्ति के मन का न मिटने वाला भय यही होता था कि कहीं उसकी बारी आते आते नोट ख़त्म ना हो जाएं.

एक तो भगवान के मंदिर में दर्शन को पंक्ति में खड़ा व्यक्ति; रेलवे काउंटर पर टिकट लेने को खड़ा व्यक्ति; और एटीएम की पंक्ति में खड़ा व्यक्ति दुनिया का व्यस्ततम मनुष्य होता है. ये बात नहीं है कि वो किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष होता है, अथवा राष्ट्रीय सलाहकार होता है अथवा गूगल का सीईओ होता है. उसके किसी पंक्ति में देर तक खड़ा रह जाने से न तो सेंसेक्स पर कोई असर पड़ना होता है, न ही जलवायु- परिवर्तन या भूकंप जैसी कोई घटना घटित होने की आशंका होती है. फिर भी वह जताता ऐसे है, जैसे अगर उसको जल्द- से- जल्द पिछली पंक्ति से पदोन्नत करके आगे नहीं भेजा गया तो ये सारी घटनाएँ एकसाथ घटित हो जाएंगी. 

वैसे तो हर व्यक्ति ईश्वर की अनन्य कृति होने के कारण महत्वपूर्ण होता है. उसके ऊपर घर- परिवार और अन्य सम्बंधित लोगों, मित्रों इत्यादि की जिम्मेदारी होती है. किसी को भी पूर्णतः निकम्मा नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यहाँ बात एक व्यक्ति के समय का समाज के एक बड़े वर्ग पर पड़ने वाले प्रभाव की हो रही है. हां, तो स्वयं को व्यस्त बताने वाले इन व्यक्तियों में कुछ अपवादों को छोड़ कर मुख्यतः ये वही लोग होते हैं जो कभी बिजली के खंभे पर चढ़े मरम्मत करते मिस्त्री को देखने रुक जाते हैं, कभी भौंकते कुत्तों की लड़ाई का कारण समझने रुक जाते हैं; तो कभी प्रशासन द्वारा तोड़े गए अवैध ईमारत की टूटी हुई ईंटे गिनने के लिए घंटों रुक जाते हैं. 

अगर इन सारे कार्यों के लिए समय निकल आता है, तो पंक्ति में खड़े होते ही कौन सी आफत आ जाती है. यह तो आपका व्यक्तिगत कार्य है. 

ऐसे ही एक व्यस्त मनुष्य से मेरा सामना हुआ नोटबंदी के दिनों में. ठण्ड के मौसम में सुबह के सात बजे नींद को तोड़कर और घने कुहासे को चीरकर जब मैं SBI मुख्य शाखा के एटीएम पहुंची तो वहाँ पहले से ही एक किलोमीटर लंबी लाइन लगी हुई थी. चूंकि मैंने कभी भी टूटी हुई अवैध ईमारत की ईंटे गिनने में अपना समय नहीं गवाया, मेरे पास एटीएम की पंक्ति में खड़े होने का पर्याप्त समय होता है. अतएव एक किलोमीटर लंबी पंक्ति को दो किलोमीटर लंबा बनाने की की दिशा में कदम बढ़ाते हुए मैं सबसे पीछे जाकर खड़ी हो गई. मोदीजी की नीतियों की प्रशंसा और आलोचना की गर्मागर्म बहस के बीच भोर की ठंडक का एक अलग ही मजा था.

तभी गार्ड समेत कुछ अन्य संजीदा लोगों ने बताया कि, "आप यहाँ क्यों खड़ी हैं, महिलाओं की लाइन दूसरी है". घने कुहासे में मुझे 10- 12 लड़कियों की छोटी सी पंक्ति नज़र नहीं आई थी. 

खैर, नोटबंदी के दिनों की एक खास बात यह भी थी कि इन दिनों आमतौर पर निष्क्रिय से दिखने वाले 'एटीएम के गार्ड्स' काफी सक्रिय नज़र आ रहे थे. 

SBI मुख्य शाखा के बाहर चार एटीएम थे, जिनमे से सिर्फ एक पर गुलाबी लक्ष्मीजी की कृपा थी; अर्थात सिर्फ उसी में कैश था. इसप्रकार उस एटीएम रूपी लक्ष्मी की रखवाली के लिए तीन अतिरिक्त गार्ड मुफ्त में उपलब्ध हो गए थे. 

गुलाबी लक्ष्मी-माता के अति- सक्रिय रखवालों ने न्याय के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए जो नियम बनाया था, वो ये था कि पहले पुरुषों की पंक्ति से चार व्यक्ति अंदर जाकर पैसे निकालेंगे, फिर महिलाओं की पंक्ति से एक को अवसर मिलेगा और फिर पुरुषों की पंक्ति से चार, फिर एक महिला... 

इसप्रकार अपनी पंक्ति में दसवें स्थान की वास्तविक स्थिति के बावजूद मेरा क्रम पचासवां था. 

आमतौर पर जनसंख्या- नियंत्रण के विज्ञापनों में एक लालच दिया जाता है कि यदि आपकी आबादी कम रहेगी तो संसाधनों का ज्यादा उपयोग करने को मिलेगा. यहाँ तो उल्टी बात हो गई. एक किलोमीटर लंबी पुरुषों की पंक्ति की बनिस्पत 10- 15 लड़कियों की कम आबादी वाली पंक्ति को प्रतीक्षा तो उतने ही समय करनी पड़ी. 

तभी मेरे दिमाग में ये विचार आया कि यदि इसी प्रकार की व्यवस्था पूँजीवाद के खिलाफ की जाती तो कार्ल मार्क्स खुश ही हो जाते. यानि, यदि मुट्ठीभर पूँजीपतियों बनाम बुर्जुआ वर्ग द्वारा संसाधनों के उपयोग के समय यही व्यवस्था लागू होती की पहले चार बुर्जुआ उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करेंगे, फिर एक पूँजीपति तो इतिहास कुछ और होता. 

बहरहाल, जब मुझसे पहले 49 लोग पैसे निकाल चुके और गार्ड ने मुझे ईशारा कर दिया कि अब मैं अंदर जाऊँ; उसी वक्त एक युवक जो मेरे बाद तीसरे नंबर पर था, बिफर पड़ा. उसकी शिकायत ये थी कि भारतीय संविधान भी समानता का अधिकार देता है तो फिर यहाँ महिलाओं को विशेषाधिकार क्यों मिल रहा है. वैसे तो चार पुरुषों के बाद एक महिला को पैसे निकालने का अवसर देने में उसको कौन सा विशेषाधिकार नज़र आ रहा था; ये बात समझ नहीं आई. दूसरी बात ये कि अगर उस युवक को समानता के अधिकार का ज्ञान था तो फिर उसे अनुच्छेद 15(3) के बारे में क्यों नहीं पता था. 

अनुच्छेद 15(1) में लिंग के आधार पर भेदभाव को वर्जित किया गया है, लेकिन अनुच्छेद 15(3) के अनुसार राज्य को इस बात की अनुमति है कि वह महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष व्यवस्था कर सकता है. 

संविधान- समिति की बहस में राजकुमारी अमृत कौर ने अनुच्छेद 15(3) की वकालत की थी. उन्होंने महिलाओं की अतिरिक्त जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए कुछ अतिरिक्त अधिकारों की माँग की थी, जिसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया गया था और अनुच्छेद 15(3) को मूल अधिकारों में शामिल किया गया था. 

किसी भी कानून का आधा- अधूरा ज्ञान रखने वाले और बिना उसके पीछे का कारण जाने बहस करने वालो से मेरा सामना कई बार हुआ है. शायद "अधजल गगरी छलकत जाए" इसी को कहते हैं. ना तो एटीएम गार्ड्स राज्य की श्रेणी में आते हैं, ना ही उनके द्वारा की गई व्यवस्था अनुच्छेद 15(3) के दायरे में आती है. यह एक सामान्य व्यावहारिक व्यवस्था थी, जिसके विरोध में संविधान- प्रद्दत अधिकारों की बात करना मुझे अजीब लगा.

मुझे कभी भी एटीएम की पंक्ति में कोई विशेषाधिकार पाने की प्रत्याशा नहीं रहती है, लेकिन जिस प्रकार उस युवक ने समानता के अधिकार की आड़ में अपनी हड़बड़ाहट जाहिर की उस से मन कड़वा हुआ. आख़िरकार मैंने भी अपनी पंक्ति में दसवें स्थान की वास्तविक स्थिति के बावजूद पचासवें स्थान तक प्रतीक्षा की थी. खैर, उस कड़वाहट का वर्णन यहाँ करके मैं इस व्यंग्यात्मक पोस्ट का मज़ा किरकिरा नहीं करना चाहती. 

पर सबसे दुःखद घटना ये हुई कि इतनी मशक्कत और समानता के अधिकार जैसे गंभीर मुद्दे पर बहस के बाद हाथ आया पहला गुलाबी नोट आधे घंटे भी मेरे पास ना टिक पाया और मकान- मालकिन के 'ब्लैक- होल सदृश बटुए' के सुपुर्द हो गया. 😢

पता नहीं कार्ल मार्क्स इस घटना पर क्या प्रतिक्रिया देते... 

आप अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट सेक्शन में अवश्य बताएँ.
 
DISCLAIMER 

संबंधित पोस्ट पढ़ने के लिए यहाँ CLICK करें.

Do Share the Post
Do Share the Post

5 comments:

भोजपुरी संस्कृति और गारी  YouTube पर TVF का एक नया शो आया है, "VERY पारिवारिक".  इस शो का गाना "तनी सून ल समधी साले तब जइहा त...