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Sunday, April 14, 2024

भोजपुरी संस्कृति और गारी 



YouTube पर TVF का एक नया शो आया है, "VERY पारिवारिक". 

इस शो का गाना "तनी सून ल समधी साले तब जइहा तनी सून ल...." को आज मैंने दसिओं बार सुना. यादें ताजा हो गईं. 

दरअसल भोजपुरी संस्कृति की एक परंपरा है कि जब रिश्तेदार खासकर समधी घर आते हैं और उनको भोजन परोसकर दिया जाता है तो साथ साथ गारी (गाली) गायी जाती है. जी हाँ, गारी गायी जाती है. मज़े की बात ये है कि जहाँ सामान्यतः गाली देना अपमानित करने का एक तरीका होता है, वही भोजपुरिया संस्कृति में गारी गाना प्रेम प्रदर्शित करने का एक तरीका होता है. 

गारी गाना प्रतीक है इस बात का कि हमने नए रिश्ते को दिल से स्वीकार कर लिया है, कि हमने सारे तक्कलुफ़ भुला दिये हैं, कि हमनें आपको इतना अपना मान लिया है कि sense of insecurity ख़त्म हो गई है. आप हमारे अपने है, इतने अपने कि हम आपको कुछ भी कह दे आप बुरा नहीं मानेंगे. हमारे- आपके बीच इतनी बेतकल्लुफ़ी आ गई है जितनी दोस्तों में होती है, हितैषियों में होती है. 

खास बात ये है कि भोजपुरी में रिश्तेदार को 'हीत' कहते हैं. कितना नजदीक है ये शब्द 'हितैषी' से... हितैषी जो आपका भला तो चाहता है, पर आपकी बातों का बुरा नहीं मानता. 

कहते हैं श्रीराम और उनके भाइयों की बारात जब अयोध्या से मिथिला गई थी, तो मिथिला नगरवासियों ने जी भरकर गारी गाई थी और इसप्रकार अयोध्या नगरवासी और मिथिला नगरवासी एक दूसरे के 'हीत' बने थे. 

मैं सोच रही हूँ कितना अच्छा हो कि जब दो देशों के प्रधानमंत्री किसी समझौते पर हस्ताक्षर करें तो नेपथ्य में गारी गाई जाए, मित्रता अवश्य ही प्रगाढ होगी. 

बहरहाल, तो आप कभी बिहार आयें और आपको भोजन के साथ गारी भी खाने को मिले तो खुश हो जाइए जनाब, समझिये हमने आपको तकल्लुफ़ की हदों के पार जाकर अपना लिया है. इसीलिए, तनी सुन ल ...  

Monday, March 25, 2024

रोटी पर चर्चा 


 हेलो कौवे!
हेलो काले कपड़े वाली लड़की!
मैं प्राची हूँ। 
I don't care.
So rude. हेलो ही तो बोल रही, चिढ़ क्यों रहे हो?
चिढू क्यों नहीं, तुम वही हो न, जिसके आ जाने से मम्मी का रूटीन गड़बड़ हो जाता है. सारा attention तुम्हारी तरफ हो जाता है. मैं neglected फील करता हूँ. 
Excuse me. वो मेरी मम्मी है, मैं deserve करती हूँ उनका attention.  
हुँह बड़ी आई मेरी मम्मी है. साल भर तो रहती नहीं हो यहाँ. रोज सुबह मम्मी को कांव- कांव मैं बोलता हूँ. वो जब बगिया में फूलों को पानी देती हैं, तो आसपास मैं मंडराता हूँ. वो जब मंदिर जाती हैं, तो साथ- साथ मैं जाता हूँ. 
हाँ जरूर, और साथ साथ घर वापस भी आते हो. फिर तबतक कांव- कांव का शोर डाले रहते हो, जबतक मम्मी रोटी बनाकर नहीं दे देती. 
वो तो उनका प्यार है, इसीलिए मैं सपरिवार रुका रहता हूँ, वरना उड़कर अपने और अपने परिवार के लिए दाना- पानी का इंतजाम कर सकता हूँ.
I agree to that. प्रकृति माता की सभी औलादों में मनुष्य को छोड़कर बाकी सब प्राणी आज भी आत्मनिर्भर हैं. 

... 

ओहो, तुम तो तारीफ सुनकर शर्माने लगे. 
खीखीखी, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम भी अच्छी हो. 
Thank You. तो अब ceasefire ???
हम्म्म। ठीक है. वैसे भी तुम जल्दी ही वापस चली जाओगी. 
उफ, यानि NO CEASEFIRE. 
मैं कौवा हूँ मेरी जान. NO CEASEFIRE.

Monday, January 22, 2024

राम आयें हैं. 


याद रहे ये वो राम हैं, जिन्होंने शबरी के जूठे बेर खाये थे. ये वो राम हैं, जिन्होंने NALSA Vs. UOI का निर्णय  आने से सदियों पहले किन्नरों को मान्यता दी थी. ये वो राम हैं, जो सिर्फ मनुष्यों के नहीं, बल्कि वानरों, भालुओं, गिलहरी, भांति- भांति के पक्षियों और इसी प्रकार के अन्य जीवों के प्रिय नेता हैं. जिनको समाज दुत्कार कर मुख्य- धारा से अलग कर देता है, वैसे प्राणियों को ह्रदय से लगाने वाले हैं राजा राम. ये वो राम हैं, जिन्होंने कब्ज़ा ज़माने से ज्यादा त्याग करने पर जोर दिया था.  अपना राज्य त्याग कर वनवास जानेवाले और युद्ध में दूसरे राज्य पर विजय प्राप्त कर भी उसपर कब्ज़ा जमाये बिना अपने घर लौट आने वाले राम हैं ये. हमारे पाठ्य पुस्तकों में जिस welfare- state की परिकल्पना की गई है, राम- राज्य प्रतीक है उस राज्य का. 
मर्यादा- पुरुषोत्तम श्रीराम. एक पत्नी का व्रत लेनेवाले सीता के राम. बलपूर्वक किसी स्त्री को हर लेने की बजाय स्वयंवर के नियमों का पालन कर स्त्री का ह्रदय जीतने की शिक्षा देने वाले हैं राम. लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के आदर्श भाई राम. कौशल्या, कैकेई और सुमित्रा माताओं के आदर्श पुत्र राम. पिता दशरथ के वचनों को पूरा करने के लिए प्राणों की बाजी लगा देने वाले राम. निषादराज के प्रिय मित्र हैं राम. सिद्धांतवादी होने के बावजूद सुग्रीव की मित्रता में कुछ सिद्धांतों को अनदेखा कर देने वाले हैं राम.  
वस्तुतः वाल्मिकी रामायण और तुलसीदास कृत रामचरित मानस में राम नामक जिस चरित्र का वर्णन है, वो मानवीय गुणों से परे और दैवीय गुणों से भरपूर हैं. देश- विदेश में लगभग 300 ऐसे ग्रंथ मौजूद हैं, जिनमें राम का वर्णन मिलता है. सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व की एक बड़ी जनसंख्या राम को मानती है. 
मेरे मन में जिस राम की छवि है, वो अरुण गोविल और दीपिका जी द्वारा अभिनित एवं रामानंद सागर द्वारा निर्देशित टीवी शो 'रामायण' में देख- सुनकर प्राप्त किये गए ज्ञान पर आधारित है. बचपन की स्मृतियों का एक अभिन्न हिस्सा हैं राम. इकलौते टीवी के सामने पूरे गांव को सदभावपूर्वक एकसाथ बैठना सिखाने वाले हैं राम. 

आज राम फिर से अपने घर आ गए हैं. फिर से याद करें, ये वो राम हैं, जिन्होंने शबरी के जूठे बेर खाये थे. ये वो राम हैं, जिन्होंने NALSA Vs. UOI का निर्णय  आने से सदियों पहले किन्नरों को मान्यता दी थी. ये वो राम हैं, जो सिर्फ मनुष्यों के नहीं, बल्कि वानरों, भालुओं, गिलहरी, भांति- भांति के पक्षियों और इसी प्रकार के अन्य जीवों के प्रिय नेता हैं. जिनको समाज दुत्कार कर मुख्य- धारा से अलग कर देता है, वैसे प्राणियों को ह्रदय से लगाने वाले हैं राजा राम. ये वो राम हैं, जिन्होंने कब्ज़ा ज़माने से ज्यादा त्याग करने पर जोर दिया था.
तो, आज जब राम आयें हैं, और हम उत्सव मना रहें हैं, याद रहे अपनी उत्सवधर्मिता में हम किसी को परेशान न कर बैठे. किसी को नीचा न दिखा बैठे. खुशियाँ मनाना सबका हक़ है. हम ख़ुशी मना रहें हैं एक मर्यादा- पुरुषोत्तम के व्यक्तित्व की, हमारा आचरण भी मर्यादित ही होना चाहिए. आचरण जब मर्यादित होगा तो हम सब पर और हम सब में राम आयेंगे. 
जय श्रीराम. 

Wednesday, January 17, 2024

 जाड़े की शाम 



उस धुंधली शाम में, 
पेड़ भी खामोश थे. 
पक्षी घोंसले में दुबके थे,
और वो भी खामोश थे. 

गली में खेलता हुआ बच्चा, 
माँ के बुलावे पर घर गया. 
दूध पीकर सो गया, 
और खामोश हो गया. 

दफ्तर वाले बाबू साहब, 
जल्दी- जल्दी घर लौटे. 
दिनभर बोल कर थके थे,
टीवी खोल खामोश हुए. 

सब्जी वाली अपनी झोपड़ी में, 
आग तापती चुप बैठी. 
सत्तू से काम चलाया, 
और निंदिआ में खामोश हुई. 

भौंकते हुए कुत्ते भी,
घरों के पीछे दुबक गए. 
रोटी मिली या न मिली,
ठण्ड से खामोश हुए. 

आज अचानक अपनी पुरानी डायरी हाथ लगी. पन्ना खुला और तारीख़ छपी थी, 14/01/2008. ज़िंदगी के उस पिछले पन्ने पर यह कविता लिखी थी. चेहरे पर मुस्कान फैल गई. मुझे बिल्कुल याद नहीं था कि कुछ 15- 16 साल पहले भी मेरी नज़रों में जाड़े की शाम ख़ामोश हुआ करती थी. आज भी ये ख़ामोशी मुझे पसंद है. ऐसा लगता है मानो परियों के देश आ गए हों. मानों प्रकृति माता अपने आवरण में हमें छुपा कर दुनिया की हर मुसीबत से सुरक्षा प्रदान कर रहीं हों. मानों ईश्वर स्वयं धरती पर उतर आयें हों हमसे मिलने के लिए... 
तो ये पोस्ट मेरी पुरानी यादों से निकली नई मुस्कान के नाम... 

Monday, December 25, 2023

 THE IRRESISTIBLE CALL

Ms. Introvert couldn't sleep the whole night. She had to catch a train the next day. The non- cozy, non- familiar train. The train doesn't give her comfort. The train throws her among so many unfamiliar faces and takes her to another place among another set of unfamiliar faces. 

Ms. Introvert didn't like the idea of traveling. But, she couldn't stay back. She was only eight years old. She had to travel with her family. Thousands of thoughts kept her awake throughout the night. She cursed the invention of the train. She prayed to God for some solution. All in vain…

She knew there was no way out. She has to travel in all possibilities. “People would laugh at me.” Fear gave her goosebumps. “How would I eat in a train?”. She cried silently. “How would I use the washroom on the train?” She cried more, but was careful at the same time that no one should be awake. “How would I reply if the person sitting in front of me would ask something?” Hopeless she was. 

Actually Ms. Introvert used to fall short of words while talking to strangers though she was the chirpiest person and queen of endless conversation in front of her mother. 


That fateful night passed by quickly. Time was running faster than usual. It was an early morning train, so everyone in the family was in a great rush. No one could read the fear written around Ms. Introvert’s face. They hurried and reached the railway station. It was a small railway station. The train had not arrived yet. The railway tracks were shining with the sunlight.


THAT WAS THE MOMENT. 

Ms. Introvert heard that irresistible call of the railway tracks.

Ms. Introvert vanished. 


Two decades have passed since that incident. 

This morning, one happy and confident girl got down at the same small railway station. This girl likes to travel by train. The cozy train seats give her comfort. The changing panorama outside the window is a treat to her eyes. Reading while traveling is so therapeutic to her. This girl has gone on so many solo trips as well. She can discuss anything with anyone confidently though she avoids doing so by wearing headphones all the time. She is more than eager to explore every place she has read in her Geography book. She is amazed at the fact that the world is woven by a network of railway tracks.

On this railway station, this confident girl smiled at Ms. Introvert who had vanished two decades ago.


Two decades ago, on that fateful morning, while waiting for the train and gazing the railway tracks shining with early morning sunrays; Ms. Introvert had the moment of realization. She had realized that deep down in her head, she wanted to travel the world. She wanted to explore every place she had read about in her Geography book. The irresistible call of the railway tracks helped her in overcoming her fear. The morning breeze relaxed her. 

This change in her personality was so silent that no one in her family could notice. But the railway tracks, the morning breeze and the sunshine witnessed the moment.

So, this morning when Ms. Introvert turned Ms. Confident smiled at herself; the same old railway tracks and the fresh morning breeze and the new sunshine giggled with her.


POV: sometimes revolutionary change takes place silently.


Note:Based on true incidents.

Name of Ms. Introvert turned Ms. Confident is Prachi. 





Thursday, October 26, 2023


एक प्रेमकथा 



सुबह-सुबह सूरज उससे मिलने आया. वो आलस की बाँहों में सो रही थी. सूरज ने बुरा नहीं माना. उसको पता है अक्टूबर में भले ही वो आलस को गले लगाए, दिसंबर- जनवरी में सूरज से मिलने को बेताब वो भागी- भागी छत पर जरूर आएगी, प्रतीक्षा करेगी; गोल- गोल घूम- घूमकर सूरज की किरणों से लिपटने की कोशिश करेगी. अपने प्रारब्ध पर सूरज को यकीन है. सूरज निश्चिन्त है उसके जीवन में अपने स्थान को लेकर. अतः उसके आलस की बाँहों में सोते रहने का उसने बिलकुल बुरा नहीं माना. सुबह- सुबह भागा- भागा आया तो था उससे  मिलने, पर वो  नहीं मिल पाई तो नाराज नहीं हुआ. चुपचाप उसके पीले दुपट्टे की स्वर्णिम आभा को और बढ़ा गया. पास लटकते बाकी दुपट्टों  की चमक भी बढ़ा गया. 

सूरज एक अनोखा प्रेमी है. वो insecure बिलकुल नहीं है. अपने प्रारब्ध से उसको शिकायत बिलकुल नहीं है. उसको पता है उसकी प्रेमिका सिर्फ दिसंबर- जनवरी में उसको गले लगाती है. फ़रवरी बीतते- बीतते प्रेमभरे दिन भी बीतने लगते हैं. अधिक- से- अधिक होली के त्योहार वाले दिन रंगो से सरोबार प्रेमिका उसको गले लगाती है और फिर कई महीनों की जुदाई शुरू हो जाती है. एक संयमित प्रेमी है सूरज. प्रेमिका से मिलने की बेताबी में अपनी तपिश कभी नहीं खोता. जगत के प्रति अपने कर्तव्य को कभी नहीं भूलता. सूरज को पता है उसकी दिनचर्या पर ब्रह्मांड की दिनचर्या निर्भर है. अगर प्रेमिका से मिलने की चाह में उसने सालोभर अपनी तपिश दिसंबर- जनवरी जितनी कम रखी तो क्या परिणाम हो सकते हैं. विश्व की आबादी जिस प्रकृति की आदि है, प्रतिकूल वातावरण मिलने पर नष्ट हो सकती है. ध्रुवों पर दिखनेवाले जिन northern lights की दुनिया दीवानी है, अगर वो सालोंभर दिखने लगा तो महत्ता कम हो जाएगी. प्रेम भी तो ऐसा ही है. निरंतर प्रेम से ऊब हो सकती है. सूरज को ये सब पता है, अतः वह संयमित है. एक दबी हुई चाह ये भी है कि तपिश बढ़ाने पर ही तो उसकी प्रेमिका को प्रिय तरबूज और आम जैसे फल मिलेंगे. अतएव ये सबके हित में है कि ये प्रेम- कहानी अक्टूबर में रंगबिरंगे दुप्पटों की निखार बढ़ाने से शुरू हो और होली के रंगो से सरोबार होकर कुछ महीनों के विश्राम पर चला जाए. 

आज वो सुबह- सुबह ये बताने भी आया है कि तुम्हे प्रिय चीजें जैसे आंवला, सनई, गाजर, मटर और गन्ने अब मिलने लगे हैं, तुम इनका सेवन करके मुस्कुराओगी और तुम्हे देखकर मैं मुस्कुराऊंगा. पर, जब वो उससे मिल नहीं पाया क्यूँकि वो आलस की बाँहों में सो रही थी, तो वो बस उसके रंग- बिरंगे दुपट्टों की चमक और बढ़ा गया. सूरज को विश्वास है कि दुपट्टों के निखार से प्रेमिका को संदेश मिल जाएगा. आखिर सूरज प्रेम में विश्वास जो करता है.  

 

Saturday, October 14, 2023

मैडम आपका तख्त आ गया

"मैडम आपका तख्त आ गया"- दिनभर में इतनी ज्यादा बार ये वाक्य सुना कि मुझे महसूस होने लगा मानो मेरे लिए 'तख्त- ए- ताऊस' आया हो. 

तो हुआ यूँ कि कार्यस्थल पर कुछ तख्तों की आवश्यकता थी. उस कार्य की प्रभारी मैं थी. इसी वजह से कॉन्ट्रैक्टर से बात करना और उस से भी पहले मैनेजमेंट के अधिकारियों और प्रिंसिपल मैडम से बात कर के इस कार्य को गति प्रदान करना मेरा काम था. इसी क्रम में इतनी ज्यादा बार ऑफिस में तख्त के बारे में बात हुई थी कि सबको ये बात याद हो गई थी. 

अब जब सुबह सुबह कार्यस्थल पहुँची तो देखा कि जिन तख्तों की आवश्यकता थी उनकी डेलिवरी कॉन्ट्रैक्टर ने कर दिया था और वो नीचे गलियारे में रखी थी. तख्त सुई जैसी चीज तो है नहीं जो दिखाई ना दे, लेकिन तबतक ऑफिस में जितने लोग पहुंचे थे, सबने मुझे बताया कि मेरा तख्त आ गया. 

उसके बाद मैं ऊपर चली गई और दो घंटे अपने कामों में व्यस्त रही. इस बीच सहकर्मिओ से मेरे तख्त और इसकी सही समय पर डेलिवरी के बारे में बात हुई. मुझे ये बताया गया कि मेरे तख्त पर और लोग बैठे हैं और ये भी कि मेरे नए तख्त पर हुए पेंट की खुशबू दूर- दूर तक फैली हुई है. इन बातों पर चर्चा करने में मजा तो मुझे भी आ ही रहा था. छात्राओं ने भी बताया कि नया तख़्त आ गया. 

फिर और कामों से मैं नीचे वाले ऑफिस में पहुंची. तबतक और लोग भी आ चुके थे. एक स्टाफ मुझे देखते ही बोल पड़े, "और मैडम, आपका तो चौकी- वौकी आ गया". मैं मुस्कराई. इस से पहले मैं कुछ कहती पास खड़े एक और सज्जन बोल पड़े, "ये ना कहिए मैडम कि टाइमली डेलिवरी हो गया आपके तख्त का, नहीं तो बहुत दिक्कत होता". मैंने कहा, "जी ये बात तो  है". 

(शाम को फ़ोन पर जब  मैंने दीदी को "और मैडम, आपका तो चौकी- वौकी आ गया" वाली बात बताई तो दीदी का  रिमार्क आया, "तुम्हारी चौकी- वौकी आ गई, नवरात्रि आ ही रही है; चौकी पर विराजमान हो जाओ".) 

अबतक ये तख्त नीचे ही था. मैं प्रिंसिपल मैडम के पास गई. उनके बोलने से पहले मैंने ही बता दिया कि मेरा तख्त आ गया. मैंने मैडम से ये भी विनती की कि मेरे तख्त को ऊपरी मंज़िल तक पहुँचवा दिया जाए.

उसके बाद मैंने कॉन्ट्रैक्टर को फ़ोन किया. वो छूटते ही बोल पड़े, "मैडम, आपका तख्त हम पहुँचवा दिए है". मुझे हँसी आ गई. मैंने कहा, "हाँजी हाँजी, बस उसी लिए कॉल किया था कि मेरा तख्त मिल गया है, लेकिन इसके साथ कुछ और ऑर्डर किया था वो नहीं मिला है". दरअसल बड़े तख्त के साथ कुछ छोटे तख्तों की भी आवश्यकता थी, जो अभी भी नहीं आया था. कॉन्ट्रैक्टर साहब मानों नींद से जागे. कहने लगे, "अच्छा वो$$$, वो तो अभी नहीं बना है". मैंने उनको निर्देश देकर फ़ोन रख दिया. 

इसके बाद मेरी ड्यूटी परीक्षा- वीक्षक के तौर पर थी, यानी दोपहर ढेड़ बजे से शाम पाँच बजे तक मैं इधर- उधर नहीं जा सकती थी. इसी बीच तख्त को ऊपरी मंजिल पर पहुँचाया जाने लगा. मैंने पहले ही काफी लोगों को बता रखा था कि तख्त कहाँ रखा जाना है, बावजूद इसके एक सहकर्मी ने कहा, "मैडम, आपका तख्त ऊपर रखा जा रहा है, आप चेक कर लीजिये सही जगह पर रखा या नहीं." मेरे ये कहने पर कि अभी फिलहाल मैं कहीं नहीं जा सकती, उन्होंने जोर देकर कहा कि मैडम परीक्षा के बाद जरूर ऊपर जाकर अपना तख़्त देख लीजिए. 

परीक्षा समाप्त होने के बाद कंट्रोलर रूम में एक स्टाफ ने फिर से बताया, "मैडम, आपका तख्त वहाँ रख दिए हैं जहाँ आपने बताया था". अब परीक्षा- नियंत्रक ने चुटकी ली, "मैडम का तख्त मैडम के घर पर न पहुँचाना चाहिए था, इधर- उधर कहाँ रख दिए"

तो ये थी मेरी 'तख़्त- ए- ताऊस' की दास्तां, जो अब मेरे सपने में भी आने लगा है. 

अगर आपको ये जानने में रूचि है कि तख़्त का कार्यस्थल पर क्या काम तो इस फोटो में उत्तर छुपा है. 


भोजपुरी संस्कृति और गारी  YouTube पर TVF का एक नया शो आया है, "VERY पारिवारिक".  इस शो का गाना "तनी सून ल समधी साले तब जइहा त...