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Thursday, September 12, 2024

कर्मभूमि

कर्मभूमि 

(कथा सम्राट प्रेमचंद रचित उपन्यास "कर्मभूमि" का नाट्य- रूपांतरण )


 
नोट:- लेखिका का कथा सम्राट प्रेमचंद से संबंध --दूसरी कक्षा में थी जब दीदी की पाठ्यपुस्तक से ईदगाह पढ़ा था और प्रेमचंद से पहला परिचय हुआ था. आठवीं कक्षा में थी जब इनका पहला उपन्यास 'गबन' पढ़ा था. उसके बाद से प्रेमचंद का साथ कभी नहीं छूटा. उनका रचा हर पात्र मेरे जीवन में साकार रूप में यहाँ- वहाँ टकराता रहता है. कहने की जरुरत नहीं कि कथा सम्राट प्रेमचंद की लेखनी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उस काल में थी जब ये कथानक लिखा गया था. 
(लेखिका की क्षमा याचना:- सबसे जरुरी बात सबसे पहले.
अपनी छोटी सी बुद्धि से प्रेमचंद के रचे पात्रों को modern twist देने का सम्मान भरा साहस कर रही हूँ. मकसद सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन है. वरना कथा सम्राट की लेखनी से छेड़छाड़ करने की न ही मेरी मंशा है और न ही उतना हुनर. औकात तो बिलकुल नहीं. )

 दृश्य 1 

(समय की तितली मंच पर आती है. )

समय की तितली:- मैं समय नहीं हूँ. मैं समय की तितली हूँ. उड़ते- फुदकते यहाँ वहाँ मंडराते मैंने देखी है युगों- युगों की कर्मभूमि. कर्मभूमि, जहाँ मनुष्यों ने किया है संघर्ष और सींचित किया है इस भूमि को अपने लहू से. कभी ये लहू पसीने के साथ बहा है और धरती को समृद्ध किया है तो कभी ये लहू किसी का सर काट के बहा है और धरती का सीना छलनी किया है. बहरहाल, हर युग में मनुष्य के कर्मों की साक्षी हूँ मैं.
आइये आपको दिखती हूँ अतीत की कर्मभूमि. 

(तितली फुदकते फुदकते मंच से चली जाती है. दूसरी तरफ से सलीम और अमरकांत मंच पर आते हैं. )

सलीम- अरे अमर, मेरे जिगर. किस बात की परेशानी है तुम्हें? मुँह क्यों लटकाए हो ?
अमर- ऐसा है सलीम, शादीशुदा आदमी का मुँह लटका ही रहता है. 
सलीम- भाईजान, नाशुक्रापन ठीक नहीं होता। इतनी अच्छी तो है भाभी. 
अमर- तुम्हे तो अच्छी ही लगेंगी, सच्चाई तो मैं जानता हूँ. 
सलीम- तो उस हकीकत से हमें भी रूबरू कराओ. 
अमर- भाई, मैं पराधीन भारत के स्वंत्रता संग्राम में भाग लेना चाहता हूँ. गरीबों के उत्थान के लिए कार्य करना चाहता हूँ जबकि सुखदा देवी और बाबूजी गरीबों का पैसा हड़प कर स्वयं ऐश्वर्य और भोग विलास का जीवन जीना चाहते हैं. ये लोग देश का नहीं सोचते. 
सलीम- देखो, बाबूजी का कुछ नहीं किया जा सकता. और भाभी को भी एक मुकम्मल जहाँ की खोज है तो इसमें गलत क्या है ?
            सुनो, भाभी आती हैं एक well- to- do family से. ग़ुरबत उन्होंने देखा नहीं. लेकिन तालीम हांसिल की है. तुम सही तरीके से अपना point of view उनके सामने रखो तो सही. she will understand. 
अमर- भाई, मैं देश के लिए शहीद होना चाहता हूँ. बाबूजी ने जबरदस्ती शादी करवा दी. वो भी ऐसी लड़की से, जिससे मेरे सिद्धांतों का कोई मेल नहीं. 
सलीम- भाई मेरे, वतन के लिए शहादत ही इकलौता तरीका नहीं है. 

(तभी पीछे से प्रोफेसर शांता आ जाती हैं )h

प्रोफेसर शांता- Yes, this is what I have taught you. 

(दोनों प्रोफेसर को greet करते हैं.)

प्रोफेसर शांता:- You can serve the nation by other ways also. Sacrificing your life is not always required. You can take care of your family and country both. Think of different ways my child. 
दोनों एक साथ- Yes Professor.
प्रोफेसर शांता:- Anyways, मैं जा रही हूँ बस्ती में साक्षरता mission पर. because freedom without education would be of no use. 
                And Salim, Congratulations for cracking Civil Services Examinations. You are one of the few Indians who have cleared it. 
सलीम:- Thank you Professor. I am your student. 
प्रोफेसर शांता:- You both are my brightest students... and Salim, avail this opportunity to serve the nation. This service is predominantly occupied by the English, who are not empathetic towards Indians. You can bring the Change.
and Amar, you also think of certain ways to reform the society instead of sacrificing your life. Bless you my kids. 

(प्रोफेसर  चली जाती हैं. )

अमर:- क्या बलिदान किया है न प्रोफेसर ने. विलायत से पढाई करके आई हैं, यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं, अच्छी तनख्वाह है. ऐश- आराम की ज़िंदगी जी सकती थी, पर ज़मीनी स्तर पर काम कर रही हैं. 
सलीम:- तुम भी ऐसे ही काम करो मेरी जान. अपनी जान लेने पर क्यों उतारू हो?
अमर:- हम्म्म, चलो कम से कम तुम्हे तो जीवन की दिशा मिल गई. अब training के लिए England जाओगे और गोरी मेम से आँखे लड़ाओगे दिलफेंक आशिक़ कहीं के. 
आँखे लड़ाने से याद आया, उनकी क्या खबर है, जिनसे तुम्हारी आँखे चार हुई थीं ?
सलीम:- हम तो फ़िदा हो गए उनकी तिरछी निगाहों पर, हमें क्या पता था सनम टेढ़ा ही देखते हैं। 
अमर:- (सर पकड़ लेता है) 
यानि वहाँ भी बात नहीं बनी. अबे इतनी जल्दी तो भारत में मौसम नहीं बदलते, जितनी जल्दी तुम्हारे दिल का मौसम बदल जाता है. छोड़ो, अब गोरी मेम लाना. नौकरी पर ध्यान दो. 
सलीम:- नौकरी करना कौन चाहता है. और गोरी मेम कौन लाना चाहता है. मैं नज़्मे लिखना चाहता हूँ और सक़ीना के सामने उन्हें गुनगुनाना चाहता हूँ बस. निक़ाह करना चाहता हूँ सक़ीना से. 
अमर:- हाँ तो करो जो करना चाहते हो, रोका किसने है?
सलीम:- अब्बा नहीं मानेंगे. 
अमर:- (नाउम्मीदी से सर हिलता है)   
चलो मेरे घर चलते हैं. 

दृश्य 2 

(मंच पर प्रकाश दूसरी ओर पड़ता है, जहाँ सुखदा, नैना, सकीना और सकीना की अम्मी मंच पर आती हैं.)  
सुखदा:- आओ सबलोग आँगन में ही बैठते है. अंदर काफी घुटन हो रही है. 

(सब चटाई पर बैठ जाते हैं. सुखदा के हाथ में किताब है. सकीना कढ़ाई कर रही है. सकीना की अम्मी आलू छील रहीं हैं और नैना आलू के चिप्स काट रही है. )

सुखदा:- आजकल मौसम ऐसा होने लगा है कि हरपल जी घबराता है. सकीना, अपनी सुरीली आवाज में कुछ सुनाओ, शायद कलेजे को ठंडक पड़े. 
सक़ीना:-  जी, शेख मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक़ का कुछ सुनाती हूँ. 
"अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे।
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे. "

सुखदा:- वाह, वाह, वाह. क्या बात है सक़ीना। कितना अच्छा सुनाया. तुम हर काम में निपुण हो. घरदारी के सारे काम जानती हो, सिलाई- कढ़ाई करती हो और सबसे बढ़कर इतनी सुंदर नज़्में सुनाती हो. सलीम भाई को इश्क़ है तुम्हारे इस हुनर से. देखा नहीं, कितनी प्यार भरी निगाहों से वो तुम्हे देखते हैं. कहो तो बात चलाऊँ।
सक़ीना:- ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया भाभी, लेकिन हमारा और उनका कोई मेल नहीं. वो महलों में रहनेवाले और हम  झोंपड़ी में. निकाह हो भी जाए तो आगे गुज़ारा नहीं हो पाएगा. हमें अपनी खुद्दारी बहुत प्यारी है. ऐसे इश्क़ को ठुकराना ही बेहतर. 
सुखदा:- देख रहीं हैं चाची। 
सक़ीना की अम्मी:- सुखदा बेटी, बात तुम्हारी दुरुस्त है लेकिन हम अपनी सक़ीना का कहा मानेंगे. जहाँ इसका दिल चाहेगा, वहीं निक़ाह पढ़वाएंगे. हुनर दिया है अल्लाह ने मेरी बेटी को. और पढ़ना- लिखना तुमने सिखा दिया.  झोपड़ी में छिपा खजाना है मेरी बेटी. कोई शहजादा भेजेंगे अल्लाह इसके लिए. 
सक़ीना:- मेरी प्यारी अम्मी. (गले लग जाती है.) 
सुखदा:- अरे- अरे. माँ- बेटी का प्यार देखकर मुझे मेरी माँ की याद आ गयी. बड़े नाज़ो से पाला है उन्होंने मुझे। अब ससुराल आकर पति ने मेरा मान नहीं रखा. वरना एक दौर था...

(उसकी बात अधूरी रह जाती है. बीच में हीं नैना उसके गले लग जाती है.)

नैना:- अरे भाभी, हम आपसे बहुत प्यार करते हैं. 
सुखदा:- जानती हूँ नैना. एक तुम ही हो जिसे मेरी कद्र है, वरना बाबूजी ने मुझे मेरी दौलत के लिए अपनी बहू बनाया था और तुम्हारे भईया, हुँह, पिता के सामने ना नहीं कर पाए तो बस शादी कर ली. समझने की कोशिश  भी नहीं की मुझे. बस अपनी धारणा बना ली कि मैं अमीर घर की हूँ तो गरीबों का शोषण ही करुँगी. अरे मुझसे बात तो करते. उन्हें क्या पता मैं कितनी आतुर हूँ देश सेवा के लिए. लेकिन नहीं, बाबूजी का गुस्सा मुझपर उतारते हैं. 
नैना:- हाँ भाभी, बाबूजी ने कभी हम दोनों भाई- बहनों की नहीं सुनी. भईया इसीलिए विद्रोही स्वभाव के होते जा रहे. 
    अच्छा, वो सब छोड़िए। मेरी प्यारी भाभी का मन अच्छा करने के लिए मैं एक गाना सुनाती हूँ. 

(नैना गाना गाती है. "जो मांगी थी दुआ" सभी वाह वाह करते हैं.  तभी अमर और सलीम घर पहुंचते हैं. सब आपस में दुआ- सलाम करते हैं.  )

अमर:- वाह मेरी प्यारी बहन, कितना मधुर गाती हो, कलेजे को ठंडक पड़ जाती है. 

( तभी सलीम सक़ीना की तरफ देखकर कहता है.)

सलीम:- सुना है बोले तो बातों से फूल झरते हैं,
            ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं. 
सुखदा:- वाह भाईसाहब, क्या सुनाया है. जवाब देने के लिए हमारी सक़ीना कोई कम है क्या? जवाबी शेर पेश करो बहन. 
सक़ीना:- कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से,
                ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो. 
सलीम:-  तू खुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तो जैसा,
                दोनों इंसां हैं, तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें. 
सक़ीना:-  उस अदा से भी हूँ मैं आशना, तुझे जिस पे इतना गुरुर है,
                मैं जिऊंगी तेरे बगैर भी, मुझे ज़िंदगी का शऊर है. 

(सभी वाह वाह कर ही रहे होते हैं कि लाला समरकांत घर आ जाते हैं. )

लाला समरकान्त:- नैना, बेटी कहाँ हो? 

(नैना जल्दी से कुर्सी खींचकर बाबूजी को बैठने को कहती है. सुखदा पानी का लोटा लेकर आती है. अमर थोड़ी दूर खड़ा हो जाता है.  सक़ीना और उसकी अम्मी भी थोड़ा दूर जाकर पीछे खड़े हो जाते हैं. 

लाला समरकान्त:- बहू, एक बहुत शुभ समाचार लाया हूँ. नैना बेटी का विवाह लाला मनीराम से तय कर दिया है. तुम तैयारियों में लग जाओ. 
सुखदा:- किंतु बाबूजी, लाला मनीराम काफी बड़ी उम्र के हैं. और तो और लोग कहते हैं, उन्होंने अपनी पहली पत्नी को मार डाला था. 
लाला समरकान्त:- सब अफवाह है बहू. लाला मनीराम ऊँची रसूख वाले व्यक्ति हैं. अरे उनकी उठना- बैठना लार्ड मिंटो तक के साथ है. जलन के मारे लोग उनको बदनाम करने की साजिश में लगे रहते हैं. लाला मनीराम से नैना का लगन करा के हमारा उठना बैठना भी अंग्रेज अफसरों के साथ हो जाएगा. हमारे व्यापार में मुनाफ़ा होगा। 
अब अमरकांत की तरह देशसेवा का बीड़ा उठाने से पेट नहीं पलता। पहले अपनी सेवा, फिर देश की सेवा. 
सुखदा:- बाबूजी, एक बार नैना की मर्ज़ी भी पूछ लेते. 
लाला समरकान्त:- ये तुम क्या कह रही हो बहू. बच्चों की मर्ज़ी नहीं पूछी जाती. यही है हमारे घर की परंपरा, प्रतिष्ठा, अनुशासन. 
तुम तैयारी करो. 

(लाला समरकान्त बाहर चले जाते हैं. अमर और सलीम निराशा से सर हिलाते खड़े रहते हैं. सुखदा अंदर से शादी की चुन्नी ले आती है. )

नैना सक़ीना से कहती है:- कितनी भाग्यशाली हो बहन. तुम्हारी माँ तुम्हारी मर्ज़ी का ध्यान रखती हैं. 

(सक़ीना सांत्वना से नैना का हाथ सहलाती है. सुखदा नैना को शादी वाली लाल चुन्नी ओढ़ाती है. सक़ीना की अम्मी  फूलों की टोकरी ले आती है.  नेपथ्य से बैंड बाजे की आवाज आती है और मंच पर लाला मनीराम, लार्ड मिंटो, लाला समरकान्त आते है. लाला समरकान्त बारात का स्वागत करते हुए आते हैं. बीच मंच पर मनीराम और नैना सात फेरे लेते हैं. सभी फूल फेंकते हैं. लाला समरकान्त का ध्यान बेटी के विवाह से ज्यादा लार्ड मिंटो की चापलूसी पर है. विवाह संपन्न हो जाता है. नैना और मनीराम को छोड़कर सभी लोग मंच से चले जाते हैं. मनीराम दारु की बोतल उठा लेता है. नैना हैरानी से देखती है. )

मनीराम:- ऐसे क्या घूर रही हो समरकान्त की बेटी. आँखे फोड़ दूँगा। कई सालों से तुम्हारा बाप व्यापार में मुझसे आगे निकल रहा था. उसकी बेटी से शादी करके मैं उसको नीचा दिखाऊंगा. समरकान्त की सारी दौलत अब मेरी. अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे। 

(मनीराम क्रूरता से हँसता है और नैना को धक्का मारकर गिरा देता है. उसके बाद दारू की बोतल नैना के हाथ में पकड़ा देता है और मंच के दूसरी तरफ जाता है, जहाँ लार्ड मिंटो बैठा है. ) 

मनीराम:- हुजूर हुजूर हुजूर, कैसे हैं आप. 
लार्ड मिंटो:- अरे मनीराम, टुम्हारा अभी अभी शाडी हुआ, और टुम हमसे मिलने चला आया. 
मनीराम:- अरे हुजूर, शादी- ब्याह तो लाला समरकांत की धन दौलत हड़पने के लिए किया है मैंने. असली आनंद तो हुजूर की सेवा में है. आप बस हमारा टेंडर पास करवा दें, हम आपको... 

(लार्ड मिंटो मनीराम की बात बीच में हीं काट देता है. )

लार्ड मिंटो:- Speaking of ढ़न- डौलत, did you collect tax  ? टुम tax collect किया ? Don't make excuses like rain नहीं हुआ, crop नहीं ऊगा. टुम tax collect करके लाएगा तभी हम टुम्हारा tender का सोचेगा. नहीं टो हम ये tender लाला समरकान्ट को डेगा।
मनीराम:- नहीं नहीं हुजूर, नाराज़ क्यों होते है. मैं कुछ भी करके लगान वसूल करूँगा. लाला समरकांत को ये टेंडर मत दीजिए. 

(मनीराम हाथ जोड़ता हुआ चला जाता है. )

लार्ड मिंटो:- Stupid Indians, It is so easy to rule this country. Just divide and rule.

(लार्ड मिंटो मंच से चला जाता है. मंच पर सुखदा, सक़ीना और सक़ीना की अम्मी आती हैं. )

सुखदा:- पता नहीं नैना ससुराल में कैसी होगी? 

(तभी सामने से नैना आ जाती है. )

सुखदा:- अरे नैना कैसी हो? (गले लगा लेती है. )
नैना:- भाभी, बचपन से बाबूजी का कहा माना, उसका ये परिणाम हुआ. अब मैं अपने दिल की सुनूंगी. मैं जा रही हूँ प्रोफेसर शांता की मुहीम में शामिल होने. अब ना मैं बाबूजी की सुनूंगी ना ही पति की. स्त्रियों को अपनी मर्जी से रहने दे, ऐसा समाज बनाने के लिए संघर्ष करना ही होगा.
सुखदा:- मैं भी यही सोच रही हूँ. घर की चारदीवारी में घुटने से अच्छा है, समाज के उत्थान के लिए कर्म किया जाए. 
सक़ीना और अम्मी एक साथ:- हम भी चलेंगे. 

(सब एकसाथ आगे बढ़ते हैं. सामने से प्रोफेसर शांता, अमर और सलीम आते हैं. सब एकसाथ मिल जाते हैं.)

सुखदा:- हम सब भी आपकी मुहीम में शामिल होना चाहती हैं. (अमर सम्मान भरी नज़रों से सुखदा को देखता है.)
प्रोफेसर शांता:- बहुत अच्छी बात है. 
नैना:- जी, हमें लगता है अगर आज हम अच्छे कर्म करेंगे तो हमारा भविष्य अच्छा होगा. 
            जाने कैसा होगा हमारा भविष्य 

(नैना सपनों में खो जाती है, तभी समय की तितली आकर चुटकी बजाती है.)

समय की तितली:- मैं दिखा सकती हूँ कैसा होगा भविष्य. ... मैं समय की तितली हूँ. परदे के गिरते ही परदे के उठते ही मैं दिखा सकती हूँ भविष्य. ये देखो. 

(तितली चुटकी बजाती है. पर्दा गिरता है. 
पर्दा उठता है. न्यूज़ एंकर ढोलकी शर्मा न्यूज़ पढ़ रही है. ) 

ढ़ोलकी शर्मा:- नमस्कार, न्यूज़ ताबड़तोड़ पर आपका स्वागत है. मैं हूँ आपकी होस्ट एंड दोस्त ढोलकी शर्मा. अब तक की सबसे बड़ी खबर आ रही है राष्ट्रपति भवन से. भारत के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर माननीय राष्ट्रपति श्रीमती आनंदिता भारतीय राष्ट्र को सम्बोधित करने वाली है. बस चंद पलों का इन्तजार और ये लीजिये... 

मंच पर दूसरी तरफ प्रकाश पड़ता है, जहाँ  माननीय राष्ट्रपति श्रीमती आनंदिता भारतीय बैठीं हैं.)  

श्रीमती आनंदिता भारतीय :- मेरे प्यारे देशवासियों
                                            नमस्कार 
भारत के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश और विदेश में रहनेवाले आप सभी भारत के लोगों को मैं हार्दिक बधाई देती हूँ. हमारी सीमाओं की रक्षा में तैनात सशस्त्र सेनाओं और अर्धसैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बलों के जवानों को मैं विशेष रूप से शुभकामनाएं देती हूँ. मैं राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में योगदान देने के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग के सभी नागरिकों को बधाई देती हूँ. 
जब हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं, तब एक राष्ट्र के रूप में हमने मिल- जुलकर जो उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, उनका उत्सव मनाते हैं. इन उपलब्धियों को प्राप्त करने में वर्तमान समाज के नागरिकों के योगदान के साथ- साथ स्वतंत्रतता- सेनानियों के योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं. हम पराधीन भारतीय समाज के उन सभी व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जिनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं है, किंतु जिनके त्याग की बदौलत हीं आज विश्व- मानचित्र पर हमारी सम्मानजनक उपस्थिति है.
संविधान के लागू होने के दिन से लेकर आजतक हमारी यात्रा अदभुत रही है. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास से हमारी सामरिक शक्ति अत्यंत सुढृढ़ हुई है तथा अंतरिक्ष में उपग्रहों की स्थापना से संचार प्रणाली में अभूतपूर्व परिवर्तन आये हैं. आज भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यस्थाओं में से एक है. ओलिंपिक जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भारतीय खिलाडियों विशेषकर महिलाओं ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है. हर क्षेत्र में अपना देश सफलता की नयी ऊंचाइयों को छू रहा है, तथापि कुछ चुनौतियां अभी भी हैं. 
मैं देशवासियों से निवेदन करती हूँ कि अपनी इस कर्मभूमि पर ईमानदारीपूर्वक अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते रहें। 
आप सबको पुनः गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ।
जय हिन्द, जय भारत. 

(पर्दा गिरता है. 
पर्दा उठता है. न्यूज़ एंकर ढोलकी शर्मा न्यूज़ पढ़ रही है. )

ढ़ोलकी शर्मा :- जी हाँ, पूरे देश में जश्न का माहौल है. लेकिन देश के कुछ हिस्सों में किसानों की स्थिति को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं, तो कहीं पर समाज में महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहें है. आखिर कबतक भारत का समाज ऐसा रहेगा.

इन्ही बड़ी खबरों के बीच एक और बड़ी खबर आ रही है मुंबई शहर से जहाँ Business tycoon निवेदिता अंबानी अपने आलीशान, भव्य Cultural Centre के उद्घाटन समारोह पर आ रहीं हैं.

(निवेदिता अंबानी मंच पर आती हैं. बहुत सारे मीडिया वाले उनकी फोटो वीडियो लेते मंच पर एक तरफ से दूसरी तरफ चले जाते हैं. )

निवेदिता अंबानी:- जय श्री कृष्णा
कैसे हैं आप सब ? Thank you so much for coming and being the most spectacular audience. You know मैंने बचपन से सोचा था कि I will create some place like this to preserve Indian culture and Indian heritage क्योंकि कहते हैं ना India is where it all started.
This world class Cultural Centre is my dream come true. 
And now, with immense pride and joy, I declare the Nivedita Ambani Cultural Centre open. It is my humble dedication to new India. 

(ठीक इसी वक्त नेपथ्य से गाना बजना शुरू होता है, "तन आनंदित मन आनंदित..." और निवेदिता अंबानी नृत्य करती हैं. 
जब इनका नृत्य समाप्त होता है तो समय की तितली चुटकी बजाकर इनको फ्रीज कर देती है) 

समय की तितली: अपने समय में जाओ
(निवेदिता अंबानी और ढोलकी शर्मा शरीर में कोई हरकत किए बिना सिर्फ पैर हिलाते हुए मंच से बाहर चली जाती हैं)

नैना: कितना सुंदर भविष्य है हमारा.
अम्मी: हां, पर ऐसा मुकम्मल आज़ाद हिंदुस्तान पाने के लिए हमें आज लड़ाई लड़नी होगी. 
सुखदा और अमर एकसाथ: तो चलो अपने कर्म करें.

(इतने में नैना सबसे आगे आ जाती है.)

नैना: अंग्रेजो, भारत छोड़ो 
सभी एक साथ: अंग्रेजो, भारत छोड़ो 

(तभी सामने से लॉर्ड मिंटो और लाला मनीराम आते हैं)

लॉर्ड मिंटो: टूम हमको ढ़ोखा दिया. टूम कहता टूम हमारा साठ है and your family is protesting against me. हम टूम्हारा टेंडर cancel करता 

मनीराम: नहीं हुज़ूर, ऐसा ना करें.
इसको तो...

(मनीराम बंदूक निकलता है और नैना को गोली मार देता है. नैना गिरती है. समरकान्त दौड़ता हुआ आता है) 

समरकान्त: मेरी बेटी को मार डाला (विलाप करता है) अब होगी क्रांति

समरकान्त और बाकी सब लोग लॉर्ड मिंटो और मनीराम पर टूट पड़ते हैं, तभी तितली सबको फ्रीज कर देती है. लॉर्ड मिंटो और मनीराम मंच से बाहर खिसक लेते हैं) 

समय की तितली: और इस तरह नैना जैसे असंख्य लोगों का लहू इस कर्मभूमि पर बहा और देश स्वतंत्र हुआ. 

(नेपथ्य से प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू जी की आवाज आती है : At the stroke of midnight hour, when the world sleeps, India will awake to life and freedom.
सभी लोग अनफ्रीज हो जाते है और गले मिलते हैं)

समय की तितली: ये थी कल और आज की कर्मभूमि. जवां दिल तब भी धड़कते थे, अब भी धड़कते हैं. पति पत्नी में मतभेद तब भी होते थे, अब भी होते हैं और सबसे बढ़कर... किसी भी युग में चुनौतियों से खाली नहीं होती है ये कर्मभूमि.
ये तुम्हारी कर्मभूमि है.

सभी एक साथ: ये हमारी कर्मभूमि है. 

पर्दा गिरता है.











Tuesday, July 9, 2024

An Emotional Note to Maggi



Dear Maggi, thank you for being there every time I need you. 

I know during summer vacation, We had a different relationship. I resorted to you just for fun after overeating homemade (Mom made) food.

BUT now, when vacation ends, I am on my own and I came home tired from work, you saved me from starving. 

You were there, when I needed something for midnight munching during winters. You were there when I wanted to enjoy rain but was not in a mood to get into complicated process of making पकौड़ा . 

Thank you for saving me during examinations and sickness when cooking anything else becomes a tedious task. 

Thank you for being a quintessential meal on mountains. 

Thank you for being so adaptive. 

Dear Maggi, thank you for being there.

Wednesday, June 5, 2024

  घर का दुआर


बालक सा नीम का पेड़ है, जो अपने हिस्से की शीतलता प्रदान करता है, पीछे शमी का पेड़ है जिसको पवित्रता पसंद है, उसके पीछे कनैल के फूल खिले है. इन फूलों को जीवन की सम विषम परिस्थितियों से फर्क नहीं पड़ता, बस निर्विकार भाव से खिल उठते है हर रोज. अब ये हमारी मनोदशा पर निर्भर करता है कि हमें इनका खिलना पुलकित करता है या उदास...

थोड़ी ही दूरी पर मात्र छह माह की आयु का केले का पौधा है. आयु से ज्यादा जिम्मेदारियां निभाता है ये. जिस आयु में मनुष्य का दूध भात होता है, पूजा पाठ के नियमों के पालन से छूट होती है, केले का पौधा उगने के साथ ही ईश्वर की कठिन आराधना में लीन हो जाता है. पीछे गमले में तुलसी माता हैं जिनकी उपस्थिति मानव जीवन को समृद्ध करती है और मृत्यु को भी पूर्ण करती है. मुंह में तुलसी और गंगाजल लेकर ही मनुष्य इस लोक से उस लोक की यात्रा पर निकलता है, दुर्गम सफर सरल हो जाता है तुलसी माता के प्रभाव से ऐसा कहते है.

थोड़ी दूरी पर नन्हा मुन्ना सा आम का पेड़ है. छोटा है तो लाडला है, पर कंधो पर जिम्मेदारियों का बोझ है. बड़े होकर मीठे फल देने ही हैं, ऐसी बातें इसे रोज सुननी पड़ती है. बेचारे की किस्मत मनुष्य के बच्चों जैसी है.

साथ में खड़ा है औषधीय गुणों से भरपूर अर्जुन का पेड़. कहते हैं इसकी पत्तियों के सेवन से हृदय रोग दूर होता है. बाजार में बिकता अर्जुनरिष्ट तो देखा ही होगा, उसका स्त्रोत है ये पेड़. अक्सर ही इसको संग्रहालय में रखे वस्तु के समान भाव मिलता है जब लोग आंखे बड़ी बड़ी करके इसको देखते हैं कि अच्छा अर्जुन नाम का भी पेड़ होता है. ऐसे में बगल में खड़ा नन्हा मुन्ना आम का पेड़ स्वयं की प्रसिद्धि पर गर्व करता है. आखिर सबलोग उसको जानते जो है. अर्जुन जैसा गुमनाम नहीं है आम.

प्रसिद्धि और गुमनामी की इस प्रतिस्पर्धा के बीच भी ये दोनों पेड़ मिलकर पास रखी चौकी पर और चापाकल पर क्षमता भर छांव बनाए रखते हैं.

अर्जुन की पत्तियों से टकराता है जवान हो चुके आम का पेड़, जिसपर फल आने लगे हैं. मीठे मीठे आम, नहीं उस से पहले आता है टिकोला, कैरी या अमिया... जो भी आप कहना चाहें. शुरू होता है चटनी का दौर, कभी पुदीने के साथ तो कभी धनिए के साथ. कसम से जिंदगी गुलज़ार रहती है इन पेड़ों के साथ. बीच बीच में हनुमान जी के दूतों का भी हमला होता रहता है, उस हमले का कोलाहल जीवन की एकरसता खत्म करता है. 

भौतिक चीजों की बात करें तो बेमेल सी कुर्सियां पड़ी हैं, बिल्कुल बेमेल जीवन सी... थोड़ी देर पहले पूरा परिवार इन्ही बेमेल कुर्सियों पर बैठा गरुड़ पुराण सुन रहा था. एक खाट पड़ा है जिसपर बैठ कर यह प्रसंग लिखा गया है. 

साइकिल है, बाइक है, सूखते कपड़े हैं, कुछ ईंटे रखी है, कुदाल है, पुरानी बाल्टी है,अधूरा खाट भी है, अधूरी बनी दीवार भी है... बड़ी ही गंभीरता से जीवन के अधूरेपन को इंगित करती हुई... या शायद ये इंगित करते हुए कि जीवन के लिए आवश्यक इतनी ही चीज़े हैं, ज्यादा तित्तीमा की जरूरत नहीं. हां, कुछ किताबे जरूर चाहिए. 

अक्सर ही यह अधूरापन मुझे सम्पूर्ण लगता है. अक्सर ही लगता है कि सबकुछ पूर्ण हो जाएगा तो जीवन कितना नीरस हो जाएगा...

ये है मेरे गांव वाले घर का द्वार...

मेरे विचार से दर्शनशास्त्र का कोई विद्यार्थी अगर यहां बैठ जाए, तो उसे अपना विषय ज्यादा समझ आएगा. 

दर्शनशास्त्र की विधार्थी न होने के बावजूद भी मैं यहां घंटो बैठ कर बहुत कुछ सोचती हूं. कभी खाट पर लेट जाती हूं तो ऊपर चांद तारों को ताक लेती हूं. इस विशाल ब्रह्मांड में मेरा अस्तित्व कितना छोटा है, इस बात का अंदाजा हो जाता है.

काफी ऐतिहासिक है ये द्वार (दुआर). खानदान के बड़े बुजुर्गों ने बड़ी चर्चाएं की हैं इस दुआर पर. तेज आवाज में बीबीसी न्यूज सुन सुनकर ज्यादा तेज आवाज में घटनाओं पर चर्चा करना हमारे बुजुर्गों का प्रिय शगल था. गप सेंटर नाम हुआ करता था इस दुआर का जब कच्ची मिट्टी का फर्श हुआ करता था और फूस वाली बाउंड्री हुआ करती थी, गाय भी रहती थी और गाय की नाद भी, भूसा रखने का अलग कमरा भी होता था. 

वक्त बदला, हालात बदले, ना गाय रही ना गाय का भूसा वाला कमरा न ही नाद. कच्चा दुआर पक्का हो गया. लेकिन जज्बात आज भी वही हैं इस जगह को लेकर, बल्कि भावनाएं और ज्यादा प्रगाढ़ हीं हुई हैं. 

ये है मेरे घर का दुआर

Tuesday, June 4, 2024

लोकतंत्र की महिमा 

दृश्य 1   

(यमलोक का दृश्य. यमराज एक फाइल पलट रहें हैं.)

यमराज- चित्रगुप्त जी, आंकड़ों के हिसाब से तो यमलोक में एक जीव की कमी है. आखिर हमारे दूत अबतक इस मनुष्य के प्राणों का हरण कर क्यों नहीं लाए ?

चित्रगुप्त- क्षमा करें महाराज, किन्तु प्राप्त सूचना के अनुसार इस मनुष्य ने प्लास्टिक सर्जरी के द्वारा मुख- परिवर्तन करवा लिया है, और अब हमारे दूत इस मनुष्य को पहचानने में अक्षम हैं. 

यमराज- अपराध, घोर अपराध. ये मनुष्य तो भगवान ब्रह्मा का काम स्वयं हीं करने लगे हैं. 

चित्रगुप्त- जी महाराज, पृथ्वीवासियों ने विज्ञान में इतनी उन्नति कर ली है. 

यमराज-  उन्नति. उन्नति से क्या तात्पर्य है आपका? क्या आप ये कहना चाहते हैं कि हम उनसे पिछड़े हुए हैं. 

चित्रगुप्त- मेरा ये तात्पर्य कदापि न था. 

यमराज- तात्पर्य आपका कुछ भी हो, परंतु हमें आभास हो रहा है कि आपको हमारी शकितयों पर संदेह है. अब हम स्वयं पृथ्वीलोक चलेंगे और उस मनुष्य के प्राणों का हरण कर के लाएंगे. 

चित्रगुप्त- जो आज्ञा महाराज. 

दृश्य 2 

यमराज- ये कौन सा स्थान है चित्रगुप्त जी?

चित्रगुप्त- ये भारतवर्ष के बिहार राज्य का छपरा जिला है महाराज. 

यमराज- खैर, स्थान कोई भी हो, हमें तो उस मनुष्य की तलाश है जो हमें- मृत्यु के देवता यमराज को धोखा देना चाहता है. किंतु, ये जगह- जगह दीवारों पर चित्र कैसे लगें हैं, और उधर कुछ लोग भाषण दे रहें हैं. आम जनता को लुभाने के प्रयत्न किये जा रहे हैं. कुछ असामान्य सा वातावरण है यहाँ. 

चित्रगुप्त- असामान्य सा तो कुछ भी नहीं है महाराज, किंतु यहाँ इलेक्शन होने वाले हैं. 

यमराज- इलेक्शन यानि चुनाव. लगता है पृथ्वीलोक पर आकर आप पर भी अँग्रेजी का भूत सवार हो गया है. कोई बात नहीं, परंतु कैसे चुनाव होनेवाले हैं, और उस से आम जनता को क्या मतलब है? अरे, चुनाव में तो बड़े- बड़े लोग इकट्ठे होते हैं, जिसे धरतीवासियों की भाषा में मीटिंग कहते हैं, और उस मीटिंग में सर्वशक्तिमान व्यक्ति नेता चुन लिया  है. आखिर आम जनता को क्या मतलब है चुनाव से?

चित्रगुप्त- जी नहीं महाराज, भारतवर्ष में लोकतंत्र है. यहाँ के हर नागरिक को समान अधिकार प्राप्त है. चाहे वो मोची हो या कंपनी का मालिक, चाहे वो रिक्शावाला हो या कॉलेज का प्रोफेसर, डॉक्टर हो या वकील- सबको हक़ है कि वो अपना नेता चुने. हर एक व्यक्ति- आदमी हो या औरत- जब 18 वर्ष की आयु का हो जाता है, तो उसे मतदाता पहचान पत्र यानि वोटर आईडी-कार्ड प्रदान किये जाते हैं और उसी को दिखाकर वोट दिए जाते हैं. 

यमराज- और अगर गलती से किसी का मतदाता पहचान पत्र न बन पाए तो... तब तो वह अपने अधिकारों से वंचित रह जाएगा. 

चित्रगुप्त- नहीं महाराज. इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि ये पृथ्वीवासी बड़े चतुर होते हैं. यदि इनका मतदाता पहचान पत्र नहीं बन पाए तो निर्वाचन आयोग ने अन्य 14 विकल्प खोल रखें हैं. लोग अपना पासपोर्ट, फोटोयुक्त पासबुक, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, जाति प्रमाणपत्र इत्यादि दिखाकर भी अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं. 

(तभी वहाँ एक बुढ़िया आती है.) 

बुढ़िया- अरे तुमलोग कौन हो और इसतरह बीच रास्ते में क्यों खड़े हो? नियमों की जानकारी नहीं है क्या? 

यमराज- ये क्या हो रहा है यहाँ पृथ्वीलोक में? यहाँ का हर निवासी नियमों और अधिकारों की बात कर रहा है. 

बुढ़िया- तो तुमलोग क्या किसी दूसरे लोक से आये हो?

यमराज- ऐ बुढ़िया, तुम क्या हमें नहीं पहचानती? हम मृत्यु के देवता यमराज हैं यमराज. धृष्टता के आरोप में हम तुम्हारे हीं प्राणों का हरण करेंगे और यमलोक का कोटा पूरा करेंगे. 

बुढ़िया- ऐसे कैसे हरण करेंगे. पहले अपना पहचान पत्र दिखाओ, फिर आगे मुँह खोलना. 

यमराज- अब वो तो हमारे पास नहीं है. 

(तभी वहाँ दो औरतें आती हैं, एक बुर्के में है और दूसरी घूँघट में.) 

दोनों एक साथ- क्या हुआ काकी, और ये बहुरूपिये कौन हैं?

बुढ़िया- अरे ये स्वयं को मृत्यु के देवता बताते हैं, लेकिन पहचान पत्र तो है ही नहीं इनके पास. 

बुर्केवाली- अरे हाँ, पहचान पत्र की ही बात तो मैं पूछना चाहती हूँ आपसे. काकी, वोट देने जाने पर तो वो लोग चेहरे से मिलान करेंगे न?

बुढ़िया- हाँ, वो तो करेंगे हीं, इसमें दिक्कत हीं क्या है?

घूँघटवाली- दिक्कत हीं तो है काकी. 

बुढ़िया- क्या?

बुर्केवाली- अब पराए मर्द के सामने चेहरा दिखाना, मुझे तो बहुत बुरा लग रहा है. 

घूँघटवाली- मुझे भी कुछ ठीक नहीं लग रहा है. 

बुढ़िया- अरे, तो ये किसने कह दिया कि पराए मर्द के सामने चेहरा दिखाना होगा. अरे वहाँ औरतों की पहचान पत्र की जाँच के लिए. 

दोनों औरतें- सच काकी, फिर तो हमलोग वोट देने जरूर चलेंगे. 

यमराज- ये औरतें क्या वार्तालाप कर रहीं हैं, चित्रगुप्त जी. 

चित्रगुप्त- महाराज, ये बहुत हीं जागरूक औरतें प्रतीत होती हैं. यहाँ हमारी दाल नहीं गलनेवाली. यहाँ से तो खिसकने में हीं भलाई है. 

यमराज- चलिए, हम छुपकर इनका वार्तालाप सुनते हैं. 

(दोनों चले जाते हैं.)

बुर्केवाली- अरे ये यमराज और चित्रगुप्त कहाँ गायब हो गए?

घूँघटवाली- लगता है काकी की नसीहतों से डर गए. 

(सब हँसते हैं.) 

बुढ़िया- अच्छा चलो- चलो, वरना वोट देने को देर हो जाएगी. 

बुर्केवाली- अच्छा काकी, मैंने सुना है कि मतदान का काम सुबह 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक होगा, लेकिन मान लो कि अगर लाइन लंबी हो, और 3 बज जाए, तो जो लोग पीछे खड़े हैं, वो तो खड़े हीं रह जाएँगे. 

बुढ़िया- हट पगली, ऐसा कुछ थोड़े न होगा. 3 बजे तक का समय निर्धारित है तो क्या हुआ, जबतक सभी लोग मतदान न कर लें, तबतक काम चलता रहेगा. अरे मैं तो कहती हूँ कि अगर ढ़ाई भी बज जाए, तो भी मतदान करने जरूर जाओ. 

घूँघटवाली- हाँ, लेकिन काकी, वोट तो मशीन पर डालना होता है, और मशीन का क्या भरोसा, कहीं ख़राब न हो जाए. 

बुढ़िया- ये तूने कायदे की बात पूछी है. अगर मशीन दो घंटे से ज्यादा ख़राब हो, तो उस बूथ पर दुबारा मतदान कराया जाएगा. 

बुर्केवाली- अरे ये तो बताओ काकी कि वोट डालते कैसे हैं?

बुढ़िया- जैसे ही बटन दबाने पर मशीन से आवाज निकले, अपने उम्मीदवार का बटन दबाये दियो. याद रखो, अगर हम कहते हैं कि हमें बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएँ चाहिए, तो उसके पहले कर्तव्य पालन तो करना ही होगा न. 

बुर्केवाली- हाँ काकी, ये बात तो है. वोट देना हमारा अधिकार भी है और कर्तव्य भी. अरे ये तो लोकतंत्र का महापर्व है. 

(तभी वहां एक लड़का आता है.) 

लड़का- हाँ महापर्व, महापर्व मनाओ तुमलोग. जैसे- छठ, दीवाली, होली, ईद, दशहरा मनाते हो न, वैसे महापर्व मनाओ. 

बुर्केवाली- क्यों जनाब, आप भी तो 18 साल के हो चुके हैं. आपका भी तो मतदाता पहचान पत्र बनकर आ गया है. आप वोट देने नहीं जायेंगे क्या?

लड़का- अरे एक मेरे वोट न डालने से क्या हो जाएगा. सभी तो दे रहे हैं न. मैं तो रोज़- रोज़ ऑफिस में काम करके थक जाता हूँ, ये तो समझ लो मेरी छुट्टी का दिन है. मैं तो आराम करूँगा. 

घूँघटवाली- इसे तो समझाना हीं बेकार है. चलो हमलोग चलते हैं. 

(तीनों औरतें चली जाती हैं, तभी वहाँ चित्रगुप्त और यमराज प्रकट होते हैं.)

यमराज- चित्रगुप्त जी, पृथ्वीलोक पर हमें जिस मूर्ख प्राणी की तलाश थी, वो हमें मिल गया है. यही है वो, पकड़िए इसे... 

लड़का- आपलोग कौन हैं भाई, और इस तरह मुझे क्यों पकड़ रहें हैं? 

यमराज- हम मृत्यु के देवता यमराज हैं.  

लड़का- यययमममरा$$$ज, ले....किन मुझे क्यों पकड़ रहे हैं, मैं तो अभी अभी 18 साल का हुआ हूँ. 

यमराज- ओ$$$, तो ये बात याद है तुझे कि तू 18  साल का हो गया है. 

लड़का- इसमें याद रखने वाली कौन सी बात है. 

यमराज- अरे मूर्ख, तेरे लोक की औरतें इतनी जागरूक हैं, और तू निरा मूढ़ है मूढ़. 

चित्रगुप्त- हाँ, तेरी माताएं- बहनें सभी अपना वोट डालने जा रही हैं और तू घर पे आराम करेगा. 

यमराज- हम पृथ्वीलोक के कानून से बहुत प्रभावित हुए. अरे इतने अच्छे नियम यमलोक तो क्या स्वर्ग में भी नहीं हैं.

चित्रगुप्त- और इसीलिए हम स्वर्ग जैसी पृथ्वी पर तुझ जैसे मूर्ख को नहीं रहने देंगे. 

यमराज- यहाँ तो हम एक दूसरे प्राणी की तलाश में आये थे, परन्तु अब तुझे ही यमलोक ले जाएँगे. 

लड़का- यमराज जी, चित्रगुप्त जी. मुझे माफ़ कर दीजिये. अब मैं समझ गया हूँ कि मेरा एक वोट कितना कीमती है. आपलोग प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिये. अब मैं वोट डालने जरूर जाऊँगा.  

यमराज- ये हुई न बात, चल हम तुझे प्राणदान देते हैं. पृथ्वीलोक का लोकतंत्र हमें बहुत पसंद आया. अब हम यमलोक में भी लोकतंत्र की स्थापना करेंगे. चलिए चित्रगुप्त जी. 

                अरे, किन्तु हमारे वाहन भैंसा कहाँ गया? 

चित्रगुप्त- महाराज, लगता है वह भी लोकतंत्र से प्रभावित हो गया है. अब वह अपने साथियों के बीच चुनाव करवाने गया है. 

यमराज- यानि हमें पैदल ही यमलोक जाना होगा. कोई बात नहीं, चलिए. 

            एक क्षण रुकिए चित्रगुप्त जी. हमें पृथ्वीवासियों को एक संदेश देना है. तो पृथ्वीवासियों, हम यदि लोकतंत्र की खातिर पैदल ही यमलोक जा हैं, तो आप मतदान केंद्र तक क्यों नहीं जा सकते? मतदान अवश्य करें. 

लड़का- वरना यमराज पकड़ ले जाएगा. 

(पर्दा गिरता है.) 


Note :- वैसे तो एक मित्र ने संदर्भ न बताने का मशवरा दिया था, फिर भी आज मन हो रहा. 03/10/10 यानि आज से लगभग चौदह वर्ष पहले लिखे गए इस नाटक के पन्ने आज यूँ ही एक पुस्तक से सरसराते हुए बाहर आ गए. मौका तो देखिये, आज 2024 लोकसभा चुनावों के परिणाम घोषित हो रहे हैं. तो मुझे लगा लोकतंत्र के इस महापर्व के चिरंजीवी होने की प्रार्थना कर लेनी चाहिए. 

अब इतने सालों बाद अपने लिखे में कई कमियाँ दिख रही. पहली आपत्ति तो पात्रों के नाम को लेकर है. किसी पात्र का नाम 'बुढ़िया' 'बुर्केवाली' 'घूँघटवाली' इत्यादि नहीं होना चाहिए. पहले तो सोचा कि type करते वक्त ये सब बदल दूँ, फिर लगा अपने पाठकों से ईमानदार रहना चाहिए. अब उस वक्त मेरी समझ इतनी थी तो इतनी ही सही. आपसे क्या पर्दा ... 

Sunday, April 14, 2024

भोजपुरी संस्कृति और गारी 



YouTube पर TVF का एक नया शो आया है, "VERY पारिवारिक". 

इस शो का गाना "तनी सून ल समधी साले तब जइहा तनी सून ल...." को आज मैंने दसिओं बार सुना. यादें ताजा हो गईं. 

दरअसल भोजपुरी संस्कृति की एक परंपरा है कि जब रिश्तेदार खासकर समधी घर आते हैं और उनको भोजन परोसकर दिया जाता है तो साथ साथ गारी (गाली) गायी जाती है. जी हाँ, गारी गायी जाती है. मज़े की बात ये है कि जहाँ सामान्यतः गाली देना अपमानित करने का एक तरीका होता है, वही भोजपुरिया संस्कृति में गारी गाना प्रेम प्रदर्शित करने का एक तरीका होता है. 

गारी गाना प्रतीक है इस बात का कि हमने नए रिश्ते को दिल से स्वीकार कर लिया है, कि हमने सारे तक्कलुफ़ भुला दिये हैं, कि हमनें आपको इतना अपना मान लिया है कि sense of insecurity ख़त्म हो गई है. आप हमारे अपने है, इतने अपने कि हम आपको कुछ भी कह दे आप बुरा नहीं मानेंगे. हमारे- आपके बीच इतनी बेतकल्लुफ़ी आ गई है जितनी दोस्तों में होती है, हितैषियों में होती है. 

खास बात ये है कि भोजपुरी में रिश्तेदार को 'हीत' कहते हैं. कितना नजदीक है ये शब्द 'हितैषी' से... हितैषी जो आपका भला तो चाहता है, पर आपकी बातों का बुरा नहीं मानता. 

कहते हैं श्रीराम और उनके भाइयों की बारात जब अयोध्या से मिथिला गई थी, तो मिथिला नगरवासियों ने जी भरकर गारी गाई थी और इसप्रकार अयोध्या नगरवासी और मिथिला नगरवासी एक दूसरे के 'हीत' बने थे. 

मैं सोच रही हूँ कितना अच्छा हो कि जब दो देशों के प्रधानमंत्री किसी समझौते पर हस्ताक्षर करें तो नेपथ्य में गारी गाई जाए, मित्रता अवश्य ही प्रगाढ होगी. 

बहरहाल, तो आप कभी बिहार आयें और आपको भोजन के साथ गारी भी खाने को मिले तो खुश हो जाइए जनाब, समझिये हमने आपको तकल्लुफ़ की हदों के पार जाकर अपना लिया है. इसीलिए, तनी सुन ल ...  

Monday, March 25, 2024

रोटी पर चर्चा 


 हेलो कौवे!
हेलो काले कपड़े वाली लड़की!
मैं प्राची हूँ। 
I don't care.
So rude. हेलो ही तो बोल रही, चिढ़ क्यों रहे हो?
चिढू क्यों नहीं, तुम वही हो न, जिसके आ जाने से मम्मी का रूटीन गड़बड़ हो जाता है. सारा attention तुम्हारी तरफ हो जाता है. मैं neglected फील करता हूँ. 
Excuse me. वो मेरी मम्मी है, मैं deserve करती हूँ उनका attention.  
हुँह बड़ी आई मेरी मम्मी है. साल भर तो रहती नहीं हो यहाँ. रोज सुबह मम्मी को कांव- कांव मैं बोलता हूँ. वो जब बगिया में फूलों को पानी देती हैं, तो आसपास मैं मंडराता हूँ. वो जब मंदिर जाती हैं, तो साथ- साथ मैं जाता हूँ. 
हाँ जरूर, और साथ साथ घर वापस भी आते हो. फिर तबतक कांव- कांव का शोर डाले रहते हो, जबतक मम्मी रोटी बनाकर नहीं दे देती. 
वो तो उनका प्यार है, इसीलिए मैं सपरिवार रुका रहता हूँ, वरना उड़कर अपने और अपने परिवार के लिए दाना- पानी का इंतजाम कर सकता हूँ.
I agree to that. प्रकृति माता की सभी औलादों में मनुष्य को छोड़कर बाकी सब प्राणी आज भी आत्मनिर्भर हैं. 

... 

ओहो, तुम तो तारीफ सुनकर शर्माने लगे. 
खीखीखी, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम भी अच्छी हो. 
Thank You. तो अब ceasefire ???
हम्म्म। ठीक है. वैसे भी तुम जल्दी ही वापस चली जाओगी. 
उफ, यानि NO CEASEFIRE. 
मैं कौवा हूँ मेरी जान. NO CEASEFIRE.

Monday, January 22, 2024

राम आयें हैं. 


याद रहे ये वो राम हैं, जिन्होंने शबरी के जूठे बेर खाये थे. ये वो राम हैं, जिन्होंने NALSA Vs. UOI का निर्णय  आने से सदियों पहले किन्नरों को मान्यता दी थी. ये वो राम हैं, जो सिर्फ मनुष्यों के नहीं, बल्कि वानरों, भालुओं, गिलहरी, भांति- भांति के पक्षियों और इसी प्रकार के अन्य जीवों के प्रिय नेता हैं. जिनको समाज दुत्कार कर मुख्य- धारा से अलग कर देता है, वैसे प्राणियों को ह्रदय से लगाने वाले हैं राजा राम. ये वो राम हैं, जिन्होंने कब्ज़ा ज़माने से ज्यादा त्याग करने पर जोर दिया था.  अपना राज्य त्याग कर वनवास जानेवाले और युद्ध में दूसरे राज्य पर विजय प्राप्त कर भी उसपर कब्ज़ा जमाये बिना अपने घर लौट आने वाले राम हैं ये. हमारे पाठ्य पुस्तकों में जिस welfare- state की परिकल्पना की गई है, राम- राज्य प्रतीक है उस राज्य का. 
मर्यादा- पुरुषोत्तम श्रीराम. एक पत्नी का व्रत लेनेवाले सीता के राम. बलपूर्वक किसी स्त्री को हर लेने की बजाय स्वयंवर के नियमों का पालन कर स्त्री का ह्रदय जीतने की शिक्षा देने वाले हैं राम. लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के आदर्श भाई राम. कौशल्या, कैकेई और सुमित्रा माताओं के आदर्श पुत्र राम. पिता दशरथ के वचनों को पूरा करने के लिए प्राणों की बाजी लगा देने वाले राम. निषादराज के प्रिय मित्र हैं राम. सिद्धांतवादी होने के बावजूद सुग्रीव की मित्रता में कुछ सिद्धांतों को अनदेखा कर देने वाले हैं राम.  
वस्तुतः वाल्मिकी रामायण और तुलसीदास कृत रामचरित मानस में राम नामक जिस चरित्र का वर्णन है, वो मानवीय गुणों से परे और दैवीय गुणों से भरपूर हैं. देश- विदेश में लगभग 300 ऐसे ग्रंथ मौजूद हैं, जिनमें राम का वर्णन मिलता है. सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व की एक बड़ी जनसंख्या राम को मानती है. 
मेरे मन में जिस राम की छवि है, वो अरुण गोविल और दीपिका जी द्वारा अभिनित एवं रामानंद सागर द्वारा निर्देशित टीवी शो 'रामायण' में देख- सुनकर प्राप्त किये गए ज्ञान पर आधारित है. बचपन की स्मृतियों का एक अभिन्न हिस्सा हैं राम. इकलौते टीवी के सामने पूरे गांव को सदभावपूर्वक एकसाथ बैठना सिखाने वाले हैं राम. 

आज राम फिर से अपने घर आ गए हैं. फिर से याद करें, ये वो राम हैं, जिन्होंने शबरी के जूठे बेर खाये थे. ये वो राम हैं, जिन्होंने NALSA Vs. UOI का निर्णय  आने से सदियों पहले किन्नरों को मान्यता दी थी. ये वो राम हैं, जो सिर्फ मनुष्यों के नहीं, बल्कि वानरों, भालुओं, गिलहरी, भांति- भांति के पक्षियों और इसी प्रकार के अन्य जीवों के प्रिय नेता हैं. जिनको समाज दुत्कार कर मुख्य- धारा से अलग कर देता है, वैसे प्राणियों को ह्रदय से लगाने वाले हैं राजा राम. ये वो राम हैं, जिन्होंने कब्ज़ा ज़माने से ज्यादा त्याग करने पर जोर दिया था.
तो, आज जब राम आयें हैं, और हम उत्सव मना रहें हैं, याद रहे अपनी उत्सवधर्मिता में हम किसी को परेशान न कर बैठे. किसी को नीचा न दिखा बैठे. खुशियाँ मनाना सबका हक़ है. हम ख़ुशी मना रहें हैं एक मर्यादा- पुरुषोत्तम के व्यक्तित्व की, हमारा आचरण भी मर्यादित ही होना चाहिए. आचरण जब मर्यादित होगा तो हम सब पर और हम सब में राम आयेंगे. 
जय श्रीराम. 

कर्मभूमि

कर्मभूमि  (कथा सम्राट प्रेमचंद रचित उपन्यास "कर्मभूमि" का नाट्य- रूपांतरण )   नोट:- लेखिका का  कथा सम्राट  प्रेमचंद से संबंध --दू...