The Restless Soul
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Thursday, September 12, 2024
कर्मभूमि
Tuesday, July 9, 2024
An Emotional Note to Maggi
Dear Maggi, thank you for being there every time I need you.
I know during summer vacation, We had a different relationship. I resorted to you just for fun after overeating homemade (Mom made) food.
BUT now, when vacation ends, I am on my own and I came home tired from work, you saved me from starving.
You were there, when I needed something for midnight munching during winters. You were there when I wanted to enjoy rain but was not in a mood to get into complicated process of making पकौड़ा .
Thank you for saving me during examinations and sickness when cooking anything else becomes a tedious task.
Thank you for being a quintessential meal on mountains.
Thank you for being so adaptive.
Dear Maggi, thank you for being there.
Wednesday, June 5, 2024
घर का दुआर
थोड़ी ही दूरी पर मात्र छह माह की आयु का केले का पौधा है. आयु से ज्यादा जिम्मेदारियां निभाता है ये. जिस आयु में मनुष्य का दूध भात होता है, पूजा पाठ के नियमों के पालन से छूट होती है, केले का पौधा उगने के साथ ही ईश्वर की कठिन आराधना में लीन हो जाता है. पीछे गमले में तुलसी माता हैं जिनकी उपस्थिति मानव जीवन को समृद्ध करती है और मृत्यु को भी पूर्ण करती है. मुंह में तुलसी और गंगाजल लेकर ही मनुष्य इस लोक से उस लोक की यात्रा पर निकलता है, दुर्गम सफर सरल हो जाता है तुलसी माता के प्रभाव से ऐसा कहते है.
थोड़ी दूरी पर नन्हा मुन्ना सा आम का पेड़ है. छोटा है तो लाडला है, पर कंधो पर जिम्मेदारियों का बोझ है. बड़े होकर मीठे फल देने ही हैं, ऐसी बातें इसे रोज सुननी पड़ती है. बेचारे की किस्मत मनुष्य के बच्चों जैसी है.
साथ में खड़ा है औषधीय गुणों से भरपूर अर्जुन का पेड़. कहते हैं इसकी पत्तियों के सेवन से हृदय रोग दूर होता है. बाजार में बिकता अर्जुनरिष्ट तो देखा ही होगा, उसका स्त्रोत है ये पेड़. अक्सर ही इसको संग्रहालय में रखे वस्तु के समान भाव मिलता है जब लोग आंखे बड़ी बड़ी करके इसको देखते हैं कि अच्छा अर्जुन नाम का भी पेड़ होता है. ऐसे में बगल में खड़ा नन्हा मुन्ना आम का पेड़ स्वयं की प्रसिद्धि पर गर्व करता है. आखिर सबलोग उसको जानते जो है. अर्जुन जैसा गुमनाम नहीं है आम.
प्रसिद्धि और गुमनामी की इस प्रतिस्पर्धा के बीच भी ये दोनों पेड़ मिलकर पास रखी चौकी पर और चापाकल पर क्षमता भर छांव बनाए रखते हैं.
अर्जुन की पत्तियों से टकराता है जवान हो चुके आम का पेड़, जिसपर फल आने लगे हैं. मीठे मीठे आम, नहीं उस से पहले आता है टिकोला, कैरी या अमिया... जो भी आप कहना चाहें. शुरू होता है चटनी का दौर, कभी पुदीने के साथ तो कभी धनिए के साथ. कसम से जिंदगी गुलज़ार रहती है इन पेड़ों के साथ. बीच बीच में हनुमान जी के दूतों का भी हमला होता रहता है, उस हमले का कोलाहल जीवन की एकरसता खत्म करता है.
भौतिक चीजों की बात करें तो बेमेल सी कुर्सियां पड़ी हैं, बिल्कुल बेमेल जीवन सी... थोड़ी देर पहले पूरा परिवार इन्ही बेमेल कुर्सियों पर बैठा गरुड़ पुराण सुन रहा था. एक खाट पड़ा है जिसपर बैठ कर यह प्रसंग लिखा गया है.
साइकिल है, बाइक है, सूखते कपड़े हैं, कुछ ईंटे रखी है, कुदाल है, पुरानी बाल्टी है,अधूरा खाट भी है, अधूरी बनी दीवार भी है... बड़ी ही गंभीरता से जीवन के अधूरेपन को इंगित करती हुई... या शायद ये इंगित करते हुए कि जीवन के लिए आवश्यक इतनी ही चीज़े हैं, ज्यादा तित्तीमा की जरूरत नहीं. हां, कुछ किताबे जरूर चाहिए.
अक्सर ही यह अधूरापन मुझे सम्पूर्ण लगता है. अक्सर ही लगता है कि सबकुछ पूर्ण हो जाएगा तो जीवन कितना नीरस हो जाएगा...
ये है मेरे गांव वाले घर का द्वार...
मेरे विचार से दर्शनशास्त्र का कोई विद्यार्थी अगर यहां बैठ जाए, तो उसे अपना विषय ज्यादा समझ आएगा.
दर्शनशास्त्र की विधार्थी न होने के बावजूद भी मैं यहां घंटो बैठ कर बहुत कुछ सोचती हूं. कभी खाट पर लेट जाती हूं तो ऊपर चांद तारों को ताक लेती हूं. इस विशाल ब्रह्मांड में मेरा अस्तित्व कितना छोटा है, इस बात का अंदाजा हो जाता है.
काफी ऐतिहासिक है ये द्वार (दुआर). खानदान के बड़े बुजुर्गों ने बड़ी चर्चाएं की हैं इस दुआर पर. तेज आवाज में बीबीसी न्यूज सुन सुनकर ज्यादा तेज आवाज में घटनाओं पर चर्चा करना हमारे बुजुर्गों का प्रिय शगल था. गप सेंटर नाम हुआ करता था इस दुआर का जब कच्ची मिट्टी का फर्श हुआ करता था और फूस वाली बाउंड्री हुआ करती थी, गाय भी रहती थी और गाय की नाद भी, भूसा रखने का अलग कमरा भी होता था.
वक्त बदला, हालात बदले, ना गाय रही ना गाय का भूसा वाला कमरा न ही नाद. कच्चा दुआर पक्का हो गया. लेकिन जज्बात आज भी वही हैं इस जगह को लेकर, बल्कि भावनाएं और ज्यादा प्रगाढ़ हीं हुई हैं.
ये है मेरे घर का दुआर
Tuesday, June 4, 2024
लोकतंत्र की महिमा
दृश्य 1
(यमलोक का दृश्य. यमराज एक फाइल पलट रहें हैं.)
यमराज- चित्रगुप्त जी, आंकड़ों के हिसाब से तो यमलोक में एक जीव की कमी है. आखिर हमारे दूत अबतक इस मनुष्य के प्राणों का हरण कर क्यों नहीं लाए ?
चित्रगुप्त- क्षमा करें महाराज, किन्तु प्राप्त सूचना के अनुसार इस मनुष्य ने प्लास्टिक सर्जरी के द्वारा मुख- परिवर्तन करवा लिया है, और अब हमारे दूत इस मनुष्य को पहचानने में अक्षम हैं.
यमराज- अपराध, घोर अपराध. ये मनुष्य तो भगवान ब्रह्मा का काम स्वयं हीं करने लगे हैं.
चित्रगुप्त- जी महाराज, पृथ्वीवासियों ने विज्ञान में इतनी उन्नति कर ली है.
यमराज- उन्नति. उन्नति से क्या तात्पर्य है आपका? क्या आप ये कहना चाहते हैं कि हम उनसे पिछड़े हुए हैं.
चित्रगुप्त- मेरा ये तात्पर्य कदापि न था.
यमराज- तात्पर्य आपका कुछ भी हो, परंतु हमें आभास हो रहा है कि आपको हमारी शकितयों पर संदेह है. अब हम स्वयं पृथ्वीलोक चलेंगे और उस मनुष्य के प्राणों का हरण कर के लाएंगे.
चित्रगुप्त- जो आज्ञा महाराज.
दृश्य 2
यमराज- ये कौन सा स्थान है चित्रगुप्त जी?
चित्रगुप्त- ये भारतवर्ष के बिहार राज्य का छपरा जिला है महाराज.
यमराज- खैर, स्थान कोई भी हो, हमें तो उस मनुष्य की तलाश है जो हमें- मृत्यु के देवता यमराज को धोखा देना चाहता है. किंतु, ये जगह- जगह दीवारों पर चित्र कैसे लगें हैं, और उधर कुछ लोग भाषण दे रहें हैं. आम जनता को लुभाने के प्रयत्न किये जा रहे हैं. कुछ असामान्य सा वातावरण है यहाँ.
चित्रगुप्त- असामान्य सा तो कुछ भी नहीं है महाराज, किंतु यहाँ इलेक्शन होने वाले हैं.
यमराज- इलेक्शन यानि चुनाव. लगता है पृथ्वीलोक पर आकर आप पर भी अँग्रेजी का भूत सवार हो गया है. कोई बात नहीं, परंतु कैसे चुनाव होनेवाले हैं, और उस से आम जनता को क्या मतलब है? अरे, चुनाव में तो बड़े- बड़े लोग इकट्ठे होते हैं, जिसे धरतीवासियों की भाषा में मीटिंग कहते हैं, और उस मीटिंग में सर्वशक्तिमान व्यक्ति नेता चुन लिया है. आखिर आम जनता को क्या मतलब है चुनाव से?
चित्रगुप्त- जी नहीं महाराज, भारतवर्ष में लोकतंत्र है. यहाँ के हर नागरिक को समान अधिकार प्राप्त है. चाहे वो मोची हो या कंपनी का मालिक, चाहे वो रिक्शावाला हो या कॉलेज का प्रोफेसर, डॉक्टर हो या वकील- सबको हक़ है कि वो अपना नेता चुने. हर एक व्यक्ति- आदमी हो या औरत- जब 18 वर्ष की आयु का हो जाता है, तो उसे मतदाता पहचान पत्र यानि वोटर आईडी-कार्ड प्रदान किये जाते हैं और उसी को दिखाकर वोट दिए जाते हैं.
यमराज- और अगर गलती से किसी का मतदाता पहचान पत्र न बन पाए तो... तब तो वह अपने अधिकारों से वंचित रह जाएगा.
चित्रगुप्त- नहीं महाराज. इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि ये पृथ्वीवासी बड़े चतुर होते हैं. यदि इनका मतदाता पहचान पत्र नहीं बन पाए तो निर्वाचन आयोग ने अन्य 14 विकल्प खोल रखें हैं. लोग अपना पासपोर्ट, फोटोयुक्त पासबुक, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, जाति प्रमाणपत्र इत्यादि दिखाकर भी अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं.
(तभी वहाँ एक बुढ़िया आती है.)
बुढ़िया- अरे तुमलोग कौन हो और इसतरह बीच रास्ते में क्यों खड़े हो? नियमों की जानकारी नहीं है क्या?
यमराज- ये क्या हो रहा है यहाँ पृथ्वीलोक में? यहाँ का हर निवासी नियमों और अधिकारों की बात कर रहा है.
बुढ़िया- तो तुमलोग क्या किसी दूसरे लोक से आये हो?
यमराज- ऐ बुढ़िया, तुम क्या हमें नहीं पहचानती? हम मृत्यु के देवता यमराज हैं यमराज. धृष्टता के आरोप में हम तुम्हारे हीं प्राणों का हरण करेंगे और यमलोक का कोटा पूरा करेंगे.
बुढ़िया- ऐसे कैसे हरण करेंगे. पहले अपना पहचान पत्र दिखाओ, फिर आगे मुँह खोलना.
यमराज- अब वो तो हमारे पास नहीं है.
(तभी वहाँ दो औरतें आती हैं, एक बुर्के में है और दूसरी घूँघट में.)
दोनों एक साथ- क्या हुआ काकी, और ये बहुरूपिये कौन हैं?
बुढ़िया- अरे ये स्वयं को मृत्यु के देवता बताते हैं, लेकिन पहचान पत्र तो है ही नहीं इनके पास.
बुर्केवाली- अरे हाँ, पहचान पत्र की ही बात तो मैं पूछना चाहती हूँ आपसे. काकी, वोट देने जाने पर तो वो लोग चेहरे से मिलान करेंगे न?
बुढ़िया- हाँ, वो तो करेंगे हीं, इसमें दिक्कत हीं क्या है?
घूँघटवाली- दिक्कत हीं तो है काकी.
बुढ़िया- क्या?
बुर्केवाली- अब पराए मर्द के सामने चेहरा दिखाना, मुझे तो बहुत बुरा लग रहा है.
घूँघटवाली- मुझे भी कुछ ठीक नहीं लग रहा है.
बुढ़िया- अरे, तो ये किसने कह दिया कि पराए मर्द के सामने चेहरा दिखाना होगा. अरे वहाँ औरतों की पहचान पत्र की जाँच के लिए.
दोनों औरतें- सच काकी, फिर तो हमलोग वोट देने जरूर चलेंगे.
यमराज- ये औरतें क्या वार्तालाप कर रहीं हैं, चित्रगुप्त जी.
चित्रगुप्त- महाराज, ये बहुत हीं जागरूक औरतें प्रतीत होती हैं. यहाँ हमारी दाल नहीं गलनेवाली. यहाँ से तो खिसकने में हीं भलाई है.
यमराज- चलिए, हम छुपकर इनका वार्तालाप सुनते हैं.
(दोनों चले जाते हैं.)
बुर्केवाली- अरे ये यमराज और चित्रगुप्त कहाँ गायब हो गए?
घूँघटवाली- लगता है काकी की नसीहतों से डर गए.
(सब हँसते हैं.)
बुढ़िया- अच्छा चलो- चलो, वरना वोट देने को देर हो जाएगी.
बुर्केवाली- अच्छा काकी, मैंने सुना है कि मतदान का काम सुबह 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक होगा, लेकिन मान लो कि अगर लाइन लंबी हो, और 3 बज जाए, तो जो लोग पीछे खड़े हैं, वो तो खड़े हीं रह जाएँगे.
बुढ़िया- हट पगली, ऐसा कुछ थोड़े न होगा. 3 बजे तक का समय निर्धारित है तो क्या हुआ, जबतक सभी लोग मतदान न कर लें, तबतक काम चलता रहेगा. अरे मैं तो कहती हूँ कि अगर ढ़ाई भी बज जाए, तो भी मतदान करने जरूर जाओ.
घूँघटवाली- हाँ, लेकिन काकी, वोट तो मशीन पर डालना होता है, और मशीन का क्या भरोसा, कहीं ख़राब न हो जाए.
बुढ़िया- ये तूने कायदे की बात पूछी है. अगर मशीन दो घंटे से ज्यादा ख़राब हो, तो उस बूथ पर दुबारा मतदान कराया जाएगा.
बुर्केवाली- अरे ये तो बताओ काकी कि वोट डालते कैसे हैं?
बुढ़िया- जैसे ही बटन दबाने पर मशीन से आवाज निकले, अपने उम्मीदवार का बटन दबाये दियो. याद रखो, अगर हम कहते हैं कि हमें बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएँ चाहिए, तो उसके पहले कर्तव्य पालन तो करना ही होगा न.
बुर्केवाली- हाँ काकी, ये बात तो है. वोट देना हमारा अधिकार भी है और कर्तव्य भी. अरे ये तो लोकतंत्र का महापर्व है.
(तभी वहां एक लड़का आता है.)
लड़का- हाँ महापर्व, महापर्व मनाओ तुमलोग. जैसे- छठ, दीवाली, होली, ईद, दशहरा मनाते हो न, वैसे महापर्व मनाओ.
बुर्केवाली- क्यों जनाब, आप भी तो 18 साल के हो चुके हैं. आपका भी तो मतदाता पहचान पत्र बनकर आ गया है. आप वोट देने नहीं जायेंगे क्या?
लड़का- अरे एक मेरे वोट न डालने से क्या हो जाएगा. सभी तो दे रहे हैं न. मैं तो रोज़- रोज़ ऑफिस में काम करके थक जाता हूँ, ये तो समझ लो मेरी छुट्टी का दिन है. मैं तो आराम करूँगा.
घूँघटवाली- इसे तो समझाना हीं बेकार है. चलो हमलोग चलते हैं.
(तीनों औरतें चली जाती हैं, तभी वहाँ चित्रगुप्त और यमराज प्रकट होते हैं.)
यमराज- चित्रगुप्त जी, पृथ्वीलोक पर हमें जिस मूर्ख प्राणी की तलाश थी, वो हमें मिल गया है. यही है वो, पकड़िए इसे...
लड़का- आपलोग कौन हैं भाई, और इस तरह मुझे क्यों पकड़ रहें हैं?
यमराज- हम मृत्यु के देवता यमराज हैं.
लड़का- यययमममरा$$$ज, ले....किन मुझे क्यों पकड़ रहे हैं, मैं तो अभी अभी 18 साल का हुआ हूँ.
यमराज- ओ$$$, तो ये बात याद है तुझे कि तू 18 साल का हो गया है.
लड़का- इसमें याद रखने वाली कौन सी बात है.
यमराज- अरे मूर्ख, तेरे लोक की औरतें इतनी जागरूक हैं, और तू निरा मूढ़ है मूढ़.
चित्रगुप्त- हाँ, तेरी माताएं- बहनें सभी अपना वोट डालने जा रही हैं और तू घर पे आराम करेगा.
यमराज- हम पृथ्वीलोक के कानून से बहुत प्रभावित हुए. अरे इतने अच्छे नियम यमलोक तो क्या स्वर्ग में भी नहीं हैं.
चित्रगुप्त- और इसीलिए हम स्वर्ग जैसी पृथ्वी पर तुझ जैसे मूर्ख को नहीं रहने देंगे.
यमराज- यहाँ तो हम एक दूसरे प्राणी की तलाश में आये थे, परन्तु अब तुझे ही यमलोक ले जाएँगे.
लड़का- यमराज जी, चित्रगुप्त जी. मुझे माफ़ कर दीजिये. अब मैं समझ गया हूँ कि मेरा एक वोट कितना कीमती है. आपलोग प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिये. अब मैं वोट डालने जरूर जाऊँगा.
यमराज- ये हुई न बात, चल हम तुझे प्राणदान देते हैं. पृथ्वीलोक का लोकतंत्र हमें बहुत पसंद आया. अब हम यमलोक में भी लोकतंत्र की स्थापना करेंगे. चलिए चित्रगुप्त जी.
अरे, किन्तु हमारे वाहन भैंसा कहाँ गया?
चित्रगुप्त- महाराज, लगता है वह भी लोकतंत्र से प्रभावित हो गया है. अब वह अपने साथियों के बीच चुनाव करवाने गया है.
यमराज- यानि हमें पैदल ही यमलोक जाना होगा. कोई बात नहीं, चलिए.
एक क्षण रुकिए चित्रगुप्त जी. हमें पृथ्वीवासियों को एक संदेश देना है. तो पृथ्वीवासियों, हम यदि लोकतंत्र की खातिर पैदल ही यमलोक जा हैं, तो आप मतदान केंद्र तक क्यों नहीं जा सकते? मतदान अवश्य करें.
लड़का- वरना यमराज पकड़ ले जाएगा.
(पर्दा गिरता है.)
Note :- वैसे तो एक मित्र ने संदर्भ न बताने का मशवरा दिया था, फिर भी आज मन हो रहा. 03/10/10 यानि आज से लगभग चौदह वर्ष पहले लिखे गए इस नाटक के पन्ने आज यूँ ही एक पुस्तक से सरसराते हुए बाहर आ गए. मौका तो देखिये, आज 2024 लोकसभा चुनावों के परिणाम घोषित हो रहे हैं. तो मुझे लगा लोकतंत्र के इस महापर्व के चिरंजीवी होने की प्रार्थना कर लेनी चाहिए.
अब इतने सालों बाद अपने लिखे में कई कमियाँ दिख रही. पहली आपत्ति तो पात्रों के नाम को लेकर है. किसी पात्र का नाम 'बुढ़िया' 'बुर्केवाली' 'घूँघटवाली' इत्यादि नहीं होना चाहिए. पहले तो सोचा कि type करते वक्त ये सब बदल दूँ, फिर लगा अपने पाठकों से ईमानदार रहना चाहिए. अब उस वक्त मेरी समझ इतनी थी तो इतनी ही सही. आपसे क्या पर्दा ...
Sunday, April 14, 2024
भोजपुरी संस्कृति और गारी
YouTube पर TVF का एक नया शो आया है, "VERY पारिवारिक".
इस शो का गाना "तनी सून ल समधी साले तब जइहा तनी सून ल...." को आज मैंने दसिओं बार सुना. यादें ताजा हो गईं.
दरअसल भोजपुरी संस्कृति की एक परंपरा है कि जब रिश्तेदार खासकर समधी घर आते हैं और उनको भोजन परोसकर दिया जाता है तो साथ साथ गारी (गाली) गायी जाती है. जी हाँ, गारी गायी जाती है. मज़े की बात ये है कि जहाँ सामान्यतः गाली देना अपमानित करने का एक तरीका होता है, वही भोजपुरिया संस्कृति में गारी गाना प्रेम प्रदर्शित करने का एक तरीका होता है.
गारी गाना प्रतीक है इस बात का कि हमने नए रिश्ते को दिल से स्वीकार कर लिया है, कि हमने सारे तक्कलुफ़ भुला दिये हैं, कि हमनें आपको इतना अपना मान लिया है कि sense of insecurity ख़त्म हो गई है. आप हमारे अपने है, इतने अपने कि हम आपको कुछ भी कह दे आप बुरा नहीं मानेंगे. हमारे- आपके बीच इतनी बेतकल्लुफ़ी आ गई है जितनी दोस्तों में होती है, हितैषियों में होती है.
खास बात ये है कि भोजपुरी में रिश्तेदार को 'हीत' कहते हैं. कितना नजदीक है ये शब्द 'हितैषी' से... हितैषी जो आपका भला तो चाहता है, पर आपकी बातों का बुरा नहीं मानता.
कहते हैं श्रीराम और उनके भाइयों की बारात जब अयोध्या से मिथिला गई थी, तो मिथिला नगरवासियों ने जी भरकर गारी गाई थी और इसप्रकार अयोध्या नगरवासी और मिथिला नगरवासी एक दूसरे के 'हीत' बने थे.
मैं सोच रही हूँ कितना अच्छा हो कि जब दो देशों के प्रधानमंत्री किसी समझौते पर हस्ताक्षर करें तो नेपथ्य में गारी गाई जाए, मित्रता अवश्य ही प्रगाढ होगी.
बहरहाल, तो आप कभी बिहार आयें और आपको भोजन के साथ गारी भी खाने को मिले तो खुश हो जाइए जनाब, समझिये हमने आपको तकल्लुफ़ की हदों के पार जाकर अपना लिया है. इसीलिए, तनी सुन ल ...
Monday, March 25, 2024
रोटी पर चर्चा
Monday, January 22, 2024
राम आयें हैं.
कर्मभूमि
कर्मभूमि (कथा सम्राट प्रेमचंद रचित उपन्यास "कर्मभूमि" का नाट्य- रूपांतरण ) नोट:- लेखिका का कथा सम्राट प्रेमचंद से संबंध --दू...
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कर्मभूमि (कथा सम्राट प्रेमचंद रचित उपन्यास "कर्मभूमि" का नाट्य- रूपांतरण ) नोट:- लेखिका का कथा सम्राट प्रेमचंद से संबंध --दू...
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जाड़े की शाम उस धुंधली शाम में, पेड़ भी खामोश थे. पक्षी घोंसले में दुबके थे, और वो भी खामोश थे. गली में खेलता हुआ बच्चा, माँ के बुलावे प...
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I thought I am the person who loves solitude, but this Lock- down scenario appears to prove me wrong. 😅 Now I am of the notion that th...
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राम ज्यादा आम खाता है क्या दीदी ? - यह मेरी अबतक की ज़िंदगी में पूछा गया सबसे तार्किक प्रश्न था. सवाल पूछा था उस छोटी सी बच्ची ने, जो...
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राम आयें हैं. याद रहे ये वो राम हैं, जिन्होंने शबरी के जूठे बेर खाये थे. ये वो राम हैं, जिन्होंने NALSA Vs. UOI का निर्णय आने से सदियों पह...