हिन्दी है तो मैं हूँ
आज हिन्दी दिवस है.
आज हीं के दिन संविधान सभा ने ये निर्णय लिया था कि हिन्दी हमारी आधिकारिक भाषा होगी, इसीलिए ये दिन हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है; ये बात हम सबको मालूम है.
सुबह से शुभकामना संदेश प्राप्त हो रहे हैं.
इन संदेशों में सिर्फ एक संदेश ऐसा प्राप्त हुआ है जिसमें बिना किसी लाग लपेट, बिना किसी राग द्वेष के सिर्फ हिन्दी दिवस की शुभकामना है. मन प्रसन्न हुआ शुद्ध रूप से हिन्दी दिवस को समर्पित ये संदेश पढ़कर.अधिकतर संदेशों और Social Media पर लगाए गए status को पढ़कर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो कोई जंग छिड़ी हुई है हिन्दी की दूसरी भाषाओं के साथ; मानो फलां भाषा ने हिन्दी भाषा को बड़ी दयनीय स्थिति में पहुंचा दिया है; मानो दूसरी भाषा को कोसे बिना हिन्दी दिवस के मायने खत्म हो जाएंगे.
क्यों?
ये प्रतिस्पर्धा हमारे दिमाग की उपज है. भाषाएं हमारी अभिव्यक्ति का साधन हैं. जितनी ज्यादा भाषाओं में हम खुद को अभिव्यक्त कर पायेंगे उतना अच्छा होगा. पृथ्वी के उतने स्थानों पर घूमने में उतनी आसानी होगी. ये भी कहते हैं कि ज्यादा भाषाएं जानने से मानसिक विकास भी ज्यादा होता है.
तो, अपनी भाषा को गले लगाइए, उसे प्यार कीजिए, उसका सम्मान कीजिए किंतु किसी और भाषा से तुलना करके उसका अपमान मत कीजिए.
जब ब्रह्मांड की कोख में हर रंग रूप जाति नस्ल के मनुष्य; हर प्रजाति के जीव; हर किस्म की जलवायु और हर भौगोलिक विविधता के लिए स्थान है तो हम अपने मस्तिष्क में भाषाई विविधता के स्थान तो बना ही सकते हैं.
यकीन मानिए, विविध भाषाओं को जानकर हम विविध संस्कृतियों का अध्ययन कर सकते हैं, विविध सिनेमा का लुत्फ़ उठा सकते हैं और सतरंगी साहित्य का आनंद ले सकते हैं.
अतएव हिन्दी दिवस मनाने का ये कतई मतलब नहीं है कि बाकी भाषाओं को कोसा जाए. वैश्वीकरण के दौर में हर भाषा की अपनी उपयोगिता है. बल्कि यूं कहें कि जरूरत है. एक भाषा से सारे काम नहीं हो सकते. एक भाषा पर सारे कामों का बोझ डालना ठीक भी नहीं है. जिस भाषा में सिनेमा देख कर मजा आता है, जिस भाषा में साहित्य पढ़कर मजा आता है, जिस भाषा में अपने मन की बात ज्यादा अच्छी तरह कह पाते हैं उस भाषा में ये सारे काम कर लेंगे और जो भाषा पासपोर्ट पर लिखने की है उससे वो काम ले लेंगे. उपयोगितानुसार काम बाँट लेंगे तो झगड़ा खत्म हो जाएगा. हां, कोई खास भाषा न आने पर खुद को हीन समझना गलत है.
अब आती हूँ हिन्दी भाषा से मेरे संबंध पर. वैसे तो मेरी मातृभाषा भोजपुरी है पर मेरे जीवन में भोजपुरी और हिन्दी का आगमन साथ साथ हुआ तो मातृभाषा का दर्जा हिन्दी को भी प्राप्त है.
जब कलम उठाई और क, ख, ग़ लिखना सीखा तो पहली रचना हिन्दी में ही लिखी और अबतक ज्यादातर हिन्दी में ही लिखती आ रही हूँ. अन्य भाषा का ज्ञान होने के बावजूद मेरी अभिव्यक्ति का सबसे सुविधाजनक माध्यम हिन्दी हीं है. मेरे उल्लास, दुःख, क्रोध, प्रेम इत्यादि हर भाव की अभिव्यक्ति का प्रमुख प्रमाणिक साधन हिन्दी ही है. सिनेमा सबसे ज्यादा हिन्दी में ही देखा है. साहित्य सबसे ज्यादा हिन्दी में ही पढ़ा है. कुछ अंग्रेजी में नहीं तो अन्य भाषा की हुई तो अनुदित कृति पढ़ी है. इस भाषा ने घर बैठे मुझे विश्व भ्रमण कराया है. मनुष्य होने का दर्जा हिन्दी ने दिलाया है मुझे. अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 को अमल में लाकर दिया है हिन्दी भाषा ने मुझे.
मैं अभिव्यक्त कर पाती हूँ इसीलिए मैं हूँ.
हिन्दी है तो मैं हूँ.

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