Total Pageviews

10,739

Wednesday, September 14, 2022

बारिश 

रिमझिम बरसती ये बूँदे,
धुँधली यादों को नहलाती हैं. 
बीते लम्हों की डोर से,
मन को बाँध जाती हैं.
 
मन ये चंचल पीछे भागे,
उन पलों की खोज में.
जिन्हे कभी हमने था जिया, 
जीवन- धारा की मौज में.
 
ये बरसते आँसू हैं,
जो मातमपुर्सी को निकले. 
या बरस रही नेमत हैं ये,
जो प्रकृति- माता से हैं मिले. 
 
हरदम ये बूँदे मुझको,
स्तब्ध- सी कर जाती हैं. 
बीते लम्हों की डोर से, 
मन को बाँध जाती हैं.

 


4 comments:

 शहतूत बचपन में खाए गए इस भूले बिसरे फल पर अचानक निगाह पड़ी... कुछ सेकंड्स लगे याद आने में कि ये तो शहतूत है. ये वही है जिसे हम तूत कहा करते...