तुम्हे यह प्रवृति ब्रह्मा ने,
क्यों कर दी हे मूषकराज?
वरदान मिला या अभिशाप,
यह हमको तुम बतलाओ आज.
व्यर्थ ही चीजों को काटते,
तुम्हे नहीं क्या ये आभास?
हमारे इस भारत देश में,
हर वस्तु है खासमखास.
विद्वान गणेश के वाहन हो तुम,
फिर सरस्वती से कैसा बैर?
क्यों पुस्तकों को काटने हेतु,
करते हो घर-घर की सैर?
तुम्हारा यह अतुलनीय बल,
कर सकता है हमारा उध्दार.
अपनी इस अद्भुत शक्ति से,
करो तुम देश का सुधार.
भ्रष्टाचारियों की खोह में,
घुसो अपनी फ़ौज समेत.
उनके गुप्त द्वार को कुचलो,
ताकि मीडिया ले उन्हें लपेट.
यह कार्यक्षेत्र है विस्तृत,
तुम वक्त की नज़ाकत पहचानो.
घर- घर में पूजे जाओगे,
ये बात तुम आज ही जानो.
गणपति के वाहन तुम,
हमारा जीना ना करो हराम.
तुम्हारी कुतरन- शक्ति को,
हम करते है दूर से प्रणाम.
यह कविता लगभग आठ वर्ष पूर्व लिखी गई थी, पर शायद मूषकराज तक पहुंची नहीं; क्युकिं श्रीमान चूहा महोदय मेरी उसी डायरी को काट बैठे जिसमे यह प्रार्थना संजोई गई थी. इसीलिए मुझे लगा कि यह प्रार्थना आप पाठकों के सामने प्रस्तुत की जाए. शायद आपमें से किसी की बात श्रीमान चूहा महोदय सुन लें.
नोट- मूषकराज तक यह प्रार्थना पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को शेयर करें और कॉमेंट सेक्शन में बताए कि आपकी बात उन तक पहुंची या नहीं. ब्लॉग को subscribe करें, ताकि अगली प्रार्थना सबसे पहले आपके email तक पहुंचे.
Ha g... Musak v/s Meaau
ReplyDelete👏👍Fir Kavita likhogi 🐀enpe to sunenge
ReplyDeleteMushak jee chuhedaani ko tor diye 😭
ReplyDeleteHahahaha 😂😂 majboot aur tikau chahiye...mushakraj ko aapne halke me liya 🤣
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