आज़ादी मुबारक
कुछ परंपराएं बहुत खूबसूरत होती हैं. इन्हीं खूबसूरत परंपराओं में से एक है स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम संदेश. देश के अभिभावक का संबोधन देशवासियों के नाम.
मैं बचपन से ये संदेश सुनती आ रही हूँ. तब से जब समझ में कुछ नहीं आता था. ये अलग बात है कि भाव विह्वलता के अतिरेक में बातें अब भी दिमाग से ज्यादा दिल तक पहुंचती हैं. लेकिन एक बात है जो हर बार खूब अच्छे से समझ आई है और वो है एक खुशनुमा एहसास. #Feelgood
बचपन में हम रेडियो पर सुना करते थे, बाद में टीवी पर और अब YouTube पर. सुनने या देखने के साधन अब ज्यादा उपलब्ध हैं. रेडियो या टीवी के साथ एक अनुशासन होता था कि अगर छूट गया तो छूट जाएगा. अब हाथ में मोबाइल, टैब और लैपटॉप है तो सुरक्षा का भाव रहता है कि अगर छूट गया तो फिर देख सुन लेंगे, लेकिन छूटता नहीं है. अच्छी बात है कि अबतक ये अनुशासन बना हुआ है.
सोचती हूँ इस अनुशासन के पीछे क्या भाव हो सकता है. राष्ट्रप्रेम अपनी जगह है, लेकिन शायद कृतज्ञता का भाव ज्यादा है. ज़िंदगी से कृतज्ञता इस बात की कि मैं एक आज़ाद देश में पैदा हुई, कि मेरा संविधान मुझे मूलभूत अधिकार देता है, कि मेरा कानून मुझे स्त्री होने का विशेषाधिकार प्रदान करता है, कि मुझे अभिव्यक्ति की आज़ादी है, कि मैं स्वतंत्र हूँ, कि मैं स्वच्छंद हूँ, कि मैं भारतीय हूँ.
शुक्रिया ज़िंदगी
हर बार राष्ट्रपति के मुंह से "मेरे प्यारे देशवासियों" संबोधन सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. लगता है देश को मैं प्यारी हूँ. मुझे तो मेरा देश प्यारा है हीं.
जब राष्ट्रपति के संबोधन में देश की उपलब्धियां गिनाई जाती है तो मैं गौरवान्वित हो उठती हूँ. जब अतीत की गलतियों से सीख लेने की बात आती है तो मैं मन ही मन सजग होकर प्रण लेने लगती हूँ कि कम से कम अपनी तरफ से कोई गलती नहीं करूंगी. जब देश की समस्याओं और आतंक या आपदा पीड़ितों की बात आती है तो देश की साझा पीड़ा से मेरे आंसू लुढ़क पड़ते हैं.
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का यह संबोधन मुझे मेरे देश और देशवासियों से चमत्कारिक रूप से जोड़ता है. आम दिनों में जो शिकायतें सरकारी नीतियों या फैसलों से रहती है वो गायब सी हो जाती है. मन में बस कृतज्ञता का भाव रहता है.
शुक्रिया ज़िंदगी कि मैं स्वतंत्र हूँ, कि मैं स्वच्छंद हूँ, कि मैं भारतीय हूँ.
हम सबको आज़ादी मुबारक.
🖊️ प्राची