भोजपुरी संस्कृति और गारी
YouTube पर TVF का एक नया शो आया है, "VERY पारिवारिक".
इस शो का गाना "तनी सून ल समधी साले तब जइहा तनी सून ल...." को आज मैंने दसिओं बार सुना. यादें ताजा हो गईं.
दरअसल भोजपुरी संस्कृति की एक परंपरा है कि जब रिश्तेदार खासकर समधी घर आते हैं और उनको भोजन परोसकर दिया जाता है तो साथ साथ गारी (गाली) गायी जाती है. जी हाँ, गारी गायी जाती है. मज़े की बात ये है कि जहाँ सामान्यतः गाली देना अपमानित करने का एक तरीका होता है, वही भोजपुरिया संस्कृति में गारी गाना प्रेम प्रदर्शित करने का एक तरीका होता है.
गारी गाना प्रतीक है इस बात का कि हमने नए रिश्ते को दिल से स्वीकार कर लिया है, कि हमने सारे तक्कलुफ़ भुला दिये हैं, कि हमनें आपको इतना अपना मान लिया है कि sense of insecurity ख़त्म हो गई है. आप हमारे अपने है, इतने अपने कि हम आपको कुछ भी कह दे आप बुरा नहीं मानेंगे. हमारे- आपके बीच इतनी बेतकल्लुफ़ी आ गई है जितनी दोस्तों में होती है, हितैषियों में होती है.
खास बात ये है कि भोजपुरी में रिश्तेदार को 'हीत' कहते हैं. कितना नजदीक है ये शब्द 'हितैषी' से... हितैषी जो आपका भला तो चाहता है, पर आपकी बातों का बुरा नहीं मानता.
कहते हैं श्रीराम और उनके भाइयों की बारात जब अयोध्या से मिथिला गई थी, तो मिथिला नगरवासियों ने जी भरकर गारी गाई थी और इसप्रकार अयोध्या नगरवासी और मिथिला नगरवासी एक दूसरे के 'हीत' बने थे.
मैं सोच रही हूँ कितना अच्छा हो कि जब दो देशों के प्रधानमंत्री किसी समझौते पर हस्ताक्षर करें तो नेपथ्य में गारी गाई जाए, मित्रता अवश्य ही प्रगाढ होगी.
बहरहाल, तो आप कभी बिहार आयें और आपको भोजन के साथ गारी भी खाने को मिले तो खुश हो जाइए जनाब, समझिये हमने आपको तकल्लुफ़ की हदों के पार जाकर अपना लिया है. इसीलिए, तनी सुन ल ...