महाभारत काल में अगर सुभद्रा को नींद नहीं आई होती तो पुत्र अभिमन्यु का अधूरा ज्ञान उसकी मृत्यु का कारण नहीं बनता.
विडंबना ये है कि बचपन से अबतक हज़ारो बार सुनी गई इस कथा का हम कलयुगी विद्यार्थियों की नींद पर कोई असर नहीं पड़ता और हम गाहे- बगाहे कुम्भकर्ण चचा के अवतार नज़र आते है.
और तो और, हमारी कलयुगी निद्रा देवी को लालच भी नहीं आता सफल परीक्षार्थियो का साक्षात्कार पढ़कर। महत्वाकांक्षी 'दिमाग जी' के निर्देश पर हम जैसे ही जमकर पढाई करने बैठते है, निद्रा देवी अपना तांडव शुरू कर देती है. इतनी प्रबलता से आक्रमण करती है कि प्रतीत होने लगता है, "अभिमन्यु को मौत तो इसीलिए आई थी कि उसकी माता को निद्रा आई थी, पर हम अगर अभी नहीं सोएंगे तो हमारी मौत जरूर आएगी".
वैसे नहीं सोने की नाकाम कोशिश से बेहतर यही होता है की हम 'सरेंडर' कर दे और हम यही करते भी है. दिलासा दिलाने के लिए महत्वाकांक्षी 'दिमाग जी' से हम ये कह देते है कि सफल परीक्षार्थी भी सोता रहा होगा, बस उसने यह बात पत्रिका वालो को नहीं बताई ताकि मम्मी की 'चप्पल', पापा का 'संस्कारहीन- आलस्य- प्रवीण' और रिश्तेदारो का 'भाग्यशाली निकला ये सुत्तकड़' इत्यादि आक्रमण न झेलना पड़े.
बहरहाल, महत्वाकांक्षी 'दिमाग जी' को यही सांत्वना दे कर हम सोते है कि जब उठेंगे तब अच्छी पढाई होगी, लेकिन पत्रिका में साक्षात्कार छपने जैसी किस्मत भी तो होनी चाहिए भाईसाहब. यहाँ तो उठते ही भूख लग जाती है और खाते ही निद्रा देवी का पुर्नआगमन हो जाता है. पढ़े तो कब पढ़े बेचारा विद्यार्थी.
भाग्यशाली था महाभारत काल का अभिमन्यु, जिसके अधूरे ज्ञान के लिए उसकी माता की निद्रा पर दोष गया. उसकी स्वयं की निद्रा पर कोई आंच नहीं आई.
हम कलयुगी विद्यार्थियों को वह सुख कहाँ. हाँ, बस सांत्वना के तौर पर 'कुकर भर दाल- भात- चोखा' पर दोषारोपण कर क्षणिक सुख- संतोष पाया जा सकता है.
DISCLAIMER
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Satyavachan
ReplyDeleteSahi baat
ReplyDelete👍🙂
ReplyDeleteSahi Baat Hai
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